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कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं

गजानन माधव मुक्तिबोध

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मुक्तिबोध की लंबी कविता 'कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं' का संकलन।  

kahne do unhe jo yah kahte hain

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पुस्तक के भाग

1

कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं – 'सफल जीवन बिताने में हुए असमर्थ तुम! तरक़्क़ी के गोल-गोल घुमावदार चक्करदार ऊपर बढ़ते हुए ज़ीने पर चढ़ने की चढ़ते ही जाने की उन्नति के बारे में तुम्हारी ही ज़हरील

2

कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 2 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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मुझको डर लगता है, मैं भी तो सफलता के चंद्र की छाया मे घुग्घू या सियार या भूत नहीं कहीं बन जाऊँ। उनको डर लगता है आशंका होती है कि हम भी जब हुए भूत घुग्घू या सियार बने तो अभी तक यही व्यक्ति ज़ि

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कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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तुम्हारे पास, हमारे पास, सिर्फ़ एक चीज़ है – ईमान का डंडा है, बुद्धि का बल्लम है, अभय की गेती है हृदय की तगारी है – तसला है नए-नए बनाने के लिए भवन आत्मा के, मनुष्य के, हृदय की तगारी में ढोते

4

कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 4 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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सामाजिक महत्व की गिलौरियाँ खाते हुए, असत्य की कुर्सी पर आराम से बैठे हुए, मनुष्य की त्वचाओं का पहने हुए ओवरकोट, बंदरों व रीछों के सामने नई-नई अदाओं से नाच कर झुठाई की तालियाँ देने से, लेने से,

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