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मुक्तिबोध का जन्म श्यौपुर, ग्वालियर में हुआ। नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया तथा आजीवन साहित्य-सृजन और पत्रकारिता से जुडे रहे। मुक्तिबोध अपनी लम्बी कविताओं के लिए प्रसिध्द हैं। इनकी कविता में जीवन के प्रति विषाद और आक्रोश है। मुख्य संग्रह हैं : 'चांद का मुंह टेढा है तथा 'भूरी-भूरी खाक धूल। ये काव्य में नए स्वर के प्रवर्तक तथा मौलिक चिंतक हैं। इन्होंने निबंध, कहानियां तथा समीक्षाएं भी लिखी हैं। समस्त रचनाएं 'मुक्तिबोध रचनावली (6 खण्ड) में प्रकाशित हैं।

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कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं

कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं

मुक्तिबोध की लंबी कविता 'कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं' का संकलन।

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कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं

कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं

मुक्तिबोध की लंबी कविता 'कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं' का संकलन।

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अँधेरे में

अँधेरे में

गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रचलित महाकाव्य अंधेरे में का संकलन

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अँधेरे में

अँधेरे में

गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रचलित महाकाव्य अंधेरे में का संकलन

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एक स्वप्न कथा

एक स्वप्न कथा

एक स्वप्न कथा के पूर्ण संकलन।

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एक स्वप्न कथा

एक स्वप्न कथा

एक स्वप्न कथा के पूर्ण संकलन।

निःशुल्क

एक अंतर्कथा

एक अंतर्कथा

मुक्तिबोध की लंबी कविता 'एक अंतर्कथा' का संकलन।

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एक अंतर्कथा

एक अंतर्कथा

मुक्तिबोध की लंबी कविता 'एक अंतर्कथा' का संकलन।

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प्रतिनिधि कविताएँ

प्रतिनिधि कविताएँ

गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रतिनिधि कविताएँ।

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प्रतिनिधि कविताएँ

प्रतिनिधि कविताएँ

गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रतिनिधि कविताएँ।

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सहर्ष स्वीकारा है / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
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ज़िन्दगी में जो कुछ है, जो भी है सहर्ष स्वीकारा है; इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है। गरबीली ग़रीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब यह विचार-वैभव सब दृढ़्ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब म

विचार आते हैं / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
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विचार आते हैं लिखते समय नहीं बोझ ढोते वक़्त पीठ पर सिर पर उठाते समय भार परिश्रम करते समय चांद उगता है व पानी में झलमलाने लगता है हृदय के पानी में विचार आते हैं लिखते समय नहीं ...पत्थर ढोते

लकड़ी का रावण / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
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दीखता त्रिकोण इस पर्वत-शिखर से अनाम, अरूप और अनाकार असीम एक कुहरा, भस्मीला अन्धकार फैला है कटे-पिटे पहाड़ी प्रसारों पर; लटकती हैं मटमैली ऊँची-ऊँची लहरें मैदानों पर सभी ओर लेकिन उस कुहरे से

रात, चलते हैं अकेले ही सितारे / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
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रात, चलते हैं अकेले ही सितारे। एक निर्जन रिक्त नाले के पास मैंने एक स्थल को खोद मिट्टी के हरे ढेले निकाले दूर खोदा और खोदा और दोनों हाथ चलते जा रहे थे शक्ति से भरपूर। सुनाई दे रहे थे स्वर – बड

मृत्यु और कवि / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
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घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयकर है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती, जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर बहुत स

मैं तुम लोगों से दूर हूँ / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
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मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है। मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है, अकेले में साहचर्य का हाथ है,

मैं उनका ही होता / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
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मैं उनका ही होता जिनसे मैंने रूप भाव पाए हैं। वे मेरे ही हिये बंधे हैं जो मर्यादाएँ लाए हैं। मेरे शब्द, भाव उनके हैं मेरे पैर और पथ मेरा, मेरा अंत और अथ मेरा, ऐसे किंतु चाव उनके हैं। मैं ऊ

मेरे जीवन की / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
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मेरे जीवन की धर्म तुम्ही-- यद्यपि पालन में रही चूक हे मर्म-स्पर्शिनी आत्मीये! मैदान-धूप में-- अन्यमनस्का एक और सिमटी छाया-सा उदासीन रहता-सा दिखता हूँ यद्यपि खोया-खोया निज में डूबा-सा भूला-सा

मेरा असंग बबूलपन / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
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मुझे नहीं मालूम मेरी प्रतिक्रियाएँ सही हैं या ग़लत हैं या और कुछ सच, हूँ मात्र मैं निवेदन-सौन्दर्य सुबह से शाम तक मन में ही आड़ी-टेढ़ी लकीरों से करता हूँ अपनी ही काटपीट ग़लत के ख़िलाफ़ नित स

मुझे पुकारती हुई पुकार / गजानन माधव मुक्तिबोध

13 अप्रैल 2023
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मुझे पुकारती हुई पुकार खो गई कहीँ... प्रलम्बिता अंगार रेख-सा खिंचा अपार चर्म वक्ष प्राण का पुकार खो गई कहीं बिखेर अस्थि के समूह जीवनानुभूति की गभीर भूमि में। अपुष्प-पत्र, वक्र-श्याम झाड़-झंखड़ों

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