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कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023

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तुम्हारे पास, हमारे पास,
सिर्फ़ एक चीज़ है –
ईमान का डंडा है,
बुद्धि का बल्लम है,
अभय की गेती है
हृदय की तगारी है – तसला है
नए-नए बनाने के लिए भवन
आत्मा के,
मनुष्य के,
हृदय की तगारी में ढोते हैं हमीं लोग
जीवन की गीली और
महकती हुई मिट्टी को।
जीवन-मैदानों में
लक्ष्य के शिखरों पर
नए किले बनाने में
व्यस्त हैं हमीं लोग
हमारा समाज यह जुटा ही रहता है।
पहाड़ी चट्टानों को
चढ़ान पर चढ़ाते हुए
हज़ारों भुजाओं से
ढकेलते हुए कि जब
पूरा शारीरिक ज़ोर
फुफ्फुस की पूरी साँस
छाती का पूरा दम
लगाने के लक्षण-रूप
चेहरे हमारे जब
बिगड़ से जाते हैं –
सूरज देख लेता है
दिशाओं के कानों में कहता है –
दुर्गों के शिखर से
हमारे कंधे पर चढ़
खड़े होने वाले ये
दूरबीन लगा कर नहीं देखेंगे –
कि मंगल में क्या-क्या है!!
चंद्रलोक-छाया को मापकर
वहाँ के पहाड़ों की उँचाई नहीं नापेंगे,
वरन् स्वयं ही वे
विचरण करेंगे इन नए-नए लोकों में,
देश-काल-प्रकृति-सृष्टि-जेता ये।
इसलिए अगर ये लोग
सड़क-छाप जीवन की धूल-धूप
मामूली रूप-रंग
लिए हुए होने से
तथाकथित 'सफलता' के
खच्चरों व टट्टुओं के द्वारा यदि
निरर्थक व महत्वहीन
क़रार दिए जाते हों
तो कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं। 

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रचनाएँ
कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं
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मुक्तिबोध की लंबी कविता 'कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं' का संकलन।
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कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं – 'सफल जीवन बिताने में हुए असमर्थ तुम! तरक़्क़ी के गोल-गोल घुमावदार चक्करदार ऊपर बढ़ते हुए ज़ीने पर चढ़ने की चढ़ते ही जाने की उन्नति के बारे में तुम्हारी ही ज़हरील

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कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 2 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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मुझको डर लगता है, मैं भी तो सफलता के चंद्र की छाया मे घुग्घू या सियार या भूत नहीं कहीं बन जाऊँ। उनको डर लगता है आशंका होती है कि हम भी जब हुए भूत घुग्घू या सियार बने तो अभी तक यही व्यक्ति ज़ि

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कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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तुम्हारे पास, हमारे पास, सिर्फ़ एक चीज़ है – ईमान का डंडा है, बुद्धि का बल्लम है, अभय की गेती है हृदय की तगारी है – तसला है नए-नए बनाने के लिए भवन आत्मा के, मनुष्य के, हृदय की तगारी में ढोते

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कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 4 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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सामाजिक महत्व की गिलौरियाँ खाते हुए, असत्य की कुर्सी पर आराम से बैठे हुए, मनुष्य की त्वचाओं का पहने हुए ओवरकोट, बंदरों व रीछों के सामने नई-नई अदाओं से नाच कर झुठाई की तालियाँ देने से, लेने से,

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