कलम के सिपाही की विरासत को यूँ बदनाम ना करो,
सिपाही हो कलम के तुम यूँ किसी के प्यादे ना बनो.
ये दो लाइने कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद को समर्पित है, और उन पत्रकारों , लेखकों, कवियों और शायरों को उनका धर्म याद दिलाने के लिए जो आज चाटुकारिता के लिए सच से आँखे चुरा रहे है. मुंशी प्रेमचंद जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के सामने कभी सिर नहीं झुकाया. गरीबी में रहे और सच के लिए पूरी ज़िंदगी लड़ते रहे. देश के पहले सच्चे पत्रकार जिन्होंने सत्य की मशाल को अंग्रेज़ो, साहूकारों, स्वर्णो, राजा-महाराजाओं के अत्याचार के सामने बुझने नहीं दिया. ना ही कभी माफ़ी मांगी, ना ही अपनी आवाज़ को दबने दिया. (आलिम)