दिगपाल ने मेरे ज़हन में एक सवाल पैदा कर दिया, क्या दिगपाल सचमुच देशभक्त था और देश भक्ति के लिए फ़ौज़ में भर्ती हुआ था? बचपन में जब उसके फ़ौज़ में भर्ती होने की बात सुनी थी तो यही समझ आया था कि गरीबी की वज़ह और अच्छी नौकरी ना मिलने की वजह से वो फ़ौज़ में भर्ती हुआ था लेकिन आज फौज की इअतनी चर्चा हो रही है, इसलिए मेरे को सोचना पड़ा कि क्या लोग फौज में देशभक्ति के लिए शामिल होते है? घर में बैठकर फ़ौज़ की बहादुरी की बात करना, उनको सलाम करना देशभक्ति है या खुद फ़ौज़ में भर्ती होना? तिरंगा लेकर तिरंगा यात्रा निकाला और दंगे करना और हर बात को देशभक्ति से जोड़ देना ही आज देश भक्ति है. कितने ऐसे देशभक्त है जो फौज में जाना चाहते है? आज दिगपाल को लेकर मैं उसे सलाम करता हूँ कि उसने घर का नौकर होते हुए भी देशभक्ति दिखाई पर आज के ये पढ़े लिखे ऐसी देश भक्ति दिखा सकते है? या बस घर बैठ कर देश भक्ति की बाते कर सकते है. यहाँ मुझे याद आ गया मोहन राकेश का नाटक. एक माँ जिसका बेटा गरीबी की और बहन की शादी की वज़ह से अंग्रेजी फौज में भर्ती हो कर बर्मा लड़ने जाता है . माँ और बहन उसके आने या चिठ्ठी का इंतज़ार कर रही है. बर्मा में दोनों तरफ से लड़ने वाले हिन्दुस्तानी थे. अंग्रेज़ो की फौज में हिन्दुस्तानी , जापान से हिदुस्तान को बचाने के लिए लड़ रहे थे और दूसरी तरफ सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज जापानियों के साथ मिलकर भारत की आज़ादी के लिए अंग्रेजी फौज से लड़ रहे थे. दोनों ही तरफ से लड़ने और मरने वाले हिन्दुस्तानी ही थे. दोनों ही देशभक्ति के नाम पर लड़ रहे थे. कौन सच्चा देशभक्त है? क्या वो सब देशभक्ति के लिए लड़ रहे थे या अपनी गरीबी के लिए जान दे रहे थे. ऐसे भी कितने परिवार होंगे जिनका एक बेटा अंग्रेजी फौज में होगा और एक आज़ाद हिन्द फौज में. कौनसा बेटा देशभक्त रहा होगा और कौनसा गद्दार? वातानुकूल कमरों में बैठ, पकवान खाकर भारतीय सेना को सलाम करना देशभक्ति नहीं है, बल्कि सेना का अपमान है. फौज अपना काम कर रही है आप अपना फ़र्ज़ तो निभाइये. उनको सलाम करने की जगह खुद फौज में भर्ती होकर ज़रा जंग पर तो जाइये. मैं तुम्हे सलाम करूँगा. ( मेरी कहानी संग्रह " जाने अनजाने लोग " से - आलिम )