*अथ श्रीकाली कवच*
*विनियोग- ॐ अस्य श्री कालिका कवचस्य भैरव ऋषि: गायत्रीछन्दः श्री कालिका देवता हीं बीजाय हूं शक्तये क्लीं कीलकाय शत्रु संघ नाशनार्थे जपे पाठे च विनियोगः।*
*अथ ध्यान*
ध्यायेत काली महामाया त्रिनेत्राम बहुरुपिणीम्।
चतुर्भुजां ललजीव्ह्यां पूर्ण चंद्र निभाननां।।
नीलोत्पल दल श्यामां शत्रु संघ विदारणीं।
नरमुण्डं तथा खड्गं कमलं वरदं तथा।।
विभ्राणां रक्त वदनां
दंष्ट्राली घोर रुपिणीम्।
अट्टाट्टहासनिरतां सर्वदा च दिगम्बरां ।।
शवासन स्थितां देवी मुण्डमाला विभूषणां।
इतिध्यात्वा महादेवी ततस्तु कवचं पठेत्।।
ओम कालिका घोर रूपाद्या सर्व काम फलप्रदा सर्वदेव स्तुता देवी शत्रु नाशं करोतुमे ।
ओम ह्रीं स्वरूपिणीं चैव ह्रां ह्रीं ह्रां रूपिणी तथा।
ह्रां ह्रीं ह्रैं ह्रौं स्वरूपा च सदा शत्रून प्रणश्यति ।।
ॐ ऐं ह्रीं रूपिणी देवी भव बंधन विमोचिनी। ह्रीं सकळां ह्रीं रिपुनश्च साहन्तु सर्वदा मम।यया शुम्भो हतो दैत्यो निशुम्भश्च महासुरः। वैरीनाशाय वन्देतां कालिकाम शंकर प्रियाम ब्राम्ही शैवी वैष्णवी च वाराही नारसिंहिका। कौमार्यैंर्दी च चामुण्डा खादन्तु मम विद्विषा:।।
सुरेश्वरी घोर रूपा चंड मुण्ड विनाशिनी मुण्डमाला धृतान्गी च सर्वतः पातु माँ सदा।।
ह्रां ह्रीं कालिके घोर दंष् र्टे रुधिर प्रिये पूर्ण वक्त्रे रुधिर वृतस्तनि मम सर्व शत्रुन खादय-२ हिंस्र -२ मारय-२भिन्धि-२ छिन्धि-२ उच्चाटय-२विन्द्रावय-२ शोषय-२स्वाहा रां रीं कराये मदीय शत्रुन संमर्दय स्वाहा के जग जय जय जय किर किर किर किट किंट मर्द मर्द मोहय-२ हर हर मम रिपुन ध्वंस-२भक्ष त्रोटय-२ यातु धानिका चामुण्डा सर्व जनान राज पुरुषां स्त्रिया मम वश्यं कुरु -२ आश्वान गजान दिव्य कामिनी पुत्रान राज्यं श्रियं देहि-२नूतन -२धान्यं धनं यक्ष रक्ष क्षां क्षीं क्षुं क्षं क्षौं क्षं क्षः स्वाहा।।
क्रीं कालिकायै