|| भद्रकालीस्तुतिः ||❤🙏
ब्रह्मविष्णु ऊचतुः -
नमामि त्वां विश्वकर्त्रीं परेशीं
नित्यामाद्यां सत्यविज्ञानरूपाम् ।
वाचातीतां निर्गुणां चातिसूक्ष्मां
ज्ञानातीतां शुद्धविज्ञानगम्याम् ॥ १॥
पूर्णां शुद्धां विश्वरूपां सुरूपां
देवीं वन्द्यां विश्ववन्द्यामपि त्वाम् ।
सर्वान्तःस्थामुत्तमस्थानसंस्था-
मीडे कालीं विश्वसम्पालयित्रीम् ॥ २॥
मायातीतां मायिनीं वापि मायां
भीमां श्यामां भीमनेत्रां सुरेशीम् ।
विद्यां सिद्धां सर्वभूताशयस्था-
मीडे कालीं विश्वसंहारकर्त्रीम् ॥ ३॥
नो ते रूपं वेत्ति शीलं न धाम
नो वा ध्यानं नापि मन्त्रं महेशि ।
सत्तारूपे त्वां प्रपद्ये शरण्ये
विश्वाराध्ये सर्वलोकैकहेतुम् ॥ ४॥
द्यौस्ते शीर्षं नाभिदेशो नभश्च
चक्षूंषि ते चन्द्रसूर्यानलास्ते ।
उन्मेषास्ते सुप्रबोधो दिवा च
रात्रिर्मातश्चक्षुषोस्ते निमेषम् ॥ ५॥
वाक्यं देवा भूमिरेषा नितम्बं
पादौ गुल्फं जानुजङ्घस्त्वधस्ते ।
प्रीतिर्धर्मोऽधर्मकार्यं हि कोपः
सृष्टिर्बोधः संहृतिस्ते तु निद्रा ॥ ६॥
अग्निर्जिह्वा ब्राह्मणास्ते मुखाब्जं
सन्ध्ये द्वे ते भ्रूयुगं विश्वमूर्तिः ।
श्वासो वायुर्बाहवो लोकपालाः
क्रीडा सृष्टिः संस्थितिः संहृतिस्ते ॥ ७॥
एवम्भूतां देवि विश्वात्मिकां त्वां
कालीं वन्दे ब्रह्मविद्यास्वरूपाम् ।
मातः पूर्णे ब्रह्मविज्ञानगम्ये
दुर्गेऽपारे साररूपे प्रसीद ॥ ८॥
इति श्रीमहाभागवते महापुराणे ब्रह्मविष्णुकृता भद्रकालीस्तुतिः सम्पूर्णा ।
हिन्दी भावार्थ -
ब्रह्मा और विष्णु बोले--सर्वसृष्टिकारिणी, परमेश्वरी,
सत्यविज्ञान- रूपा, नित्या, आद्याशक्ति ! आपको हम प्रणाम करते
हैं । आप वाणीसे परे हैं, निर्गुण और अति सूक्ष्म हैं, ज्ञानसे
परे और शुद्ध विज्ञान से प्राप्य हैं ॥ १॥
आप पूर्णा, शुद्धा, विश्वरूपा, सुरूपा वन्दनीया तथा विश्ववन्द्या
हैं । आप सबके अन्तःकरणमें वास करती हैं एवं सारे संसारका
पालन करती हैं । दिव्य स्थाननिवासिनी आप भगवती महाकालीको
हमारा प्रणाम है ॥ २॥
महामायास्वरूपा आप मायामयी तथा मायासे अतीत हैं, आप भीषण,
श्यामवर्णवाली, भयंकर नेत्रोंवाली परमेश्वरी हैं ।
आप सिद्धियों से सम्पन्न, विद्यास्वरूपा, समस्त प्राणियोंके
हृदयप्रदेशमें निवास करनेवाली तथा सृष्टिका संहार
करनेवाली हैं, आप महाकाली को हमारा नमस्कार है ॥ ३॥
महेश्वरी ! हम आपके रूप, शील, दिव्य धाम, ध्यान अथवा
मन्त्रको नहीं जानते । शरण्ये ! विश्वाराध्ये! हम सारी सृष्टिकी
कारणभूता और सत्तास्वरूपा आपकी शरण में हैं ॥ ४॥
मातः ! द्युलोक आपक सिर है, नभोमण्डल आपका नाभिप्रदेश है ।
चन्द्र, सूर्य और अग्नि आपके त्रिनेत्र हैं, आपका जगना ही सृष्टि
के लिये दिन और जागरण का हेतु है और आपका आँखें मूँद लेना
ही सृष्टिके लिये रात्रि है ॥ ५॥
देवता आपकी वाणि हैं, यह पृथ्वी आपका नितम्बप्रदेश तथा
पाताल आदि नीचे के भाग आपके जङ्घा, जानु, गुल्फ और चरण
हैं । धर्म आपकी प्रसन्नता और अधर्मकार्य आपके कोपके लिये
है । आपका जागारण ही इस संसारकी सृष्टि है और आपकी निद्रा
ही इसका प्रलय है ॥ ६॥
अग्नि आपकी जिह्वा है, ब्राह्मण आपके मुखकमल हैं । दोनों
सन्ध्याएँ आपकी दोनों भ्रूकुटियाँ हैं, आप विश्वरूपा हैं,
वायु आपका श्वास है, लोकपाल आपके बाहु हैं और इस संसारकी
सृष्टि, स्थिति तथा संहार आपकी लीला है ॥ ७॥
पूर्णे! ऐसी सर्वस्वरूपा आप महाकालीको हमारा प्रणाम है । आप
ब्रह्मविद्यास्वरूपा हैं । ब्रह्मविज्ञानसे ही आपकी प्राप्ति सम्भव
है । सर्वसाररूपा, अनन्तस्वरूपिणी माता दुर्गे! आप हमपर प्रसन्न
हों ॥ ८॥
इस प्रकार श्रीमहाभागवतपुराण के अन्तर्गत ब्रह्मा और विष्णुद्वारा
की गयी भद्रकालीस्तुति सम्पूर्ण हुई ।