🌹🌹1..श्री तुलसी देवी कवचं
🌹🌹2..श्री तुलसी स्तोत्र
🌹🌹3..श्री तुलसी नाम स्तोत्र हिन्दी पाठ सहित
🌹🌹4.. श्री तुलसी चालीसा---१
🌹🌹5..श्री तुलसी चालीसा---२
🌹🌹6.. तुलसी देवी माहात्म्य और विभिन्न मंत्र
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ॐ भगवती तुलसी दैव्यै विष्णु प्रियायै नमः
ॐ श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं श्रीं तुलसीलक्ष्म्यै नमः
ॐ श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं श्रीं लक्ष्मी नारायण सहितायै तुलसी देव्यै नमः
ॐ श्रीत्रिपुरायै विदमहे तुलसी पत्राय च धीमहि तन्नो तुलसी प्रचोदयात्
🌹🌹🌹1..श्री तुलसी देवी कवचं 🌹🌹🌹🌹🌹
।। श्री गणेशाय नमः ।। हरि ॐ तत्सत
अस्य श्री तुलसीकवच स्तोत्रमंत्रस्य ।
श्री महादेव ऋषिः । अनुष्टुप्छन्दः ।
श्रीतुलसी देवता । मन ईप्सितकामनासिद्धयर्थं जपे विनियोगः ।
तुलसी श्रीमहादेवि नमः पंकजधारिणी ।
शिरो मे तुलसी पातु भालं पातु यशस्विनी ।। १ ।।
दृशौ मे पद्मनयना श्रीसखी श्रवणे मम ।
घ्राणं पातु सुगंधा मे मुखं च सुमुखी मम ।। २ ।।
जिव्हां मे पातु शुभदा कंठं विद्यामयी मम ।
स्कंधौ कह्वारिणी पातु हृदयं विष्णुवल्लभा ।। ३ ।।
पुण्यदा मे पातु मध्यं नाभि सौभाग्यदायिनी ।
कटिं कुंडलिनी पातु ऊरू नारदवंदिता ।। ४ ।।
जननी जानुनी पातु जंघे सकलवंदिता ।
नारायणप्रिया पादौ सर्वांगं सर्वरक्षिणी ।। ५ ।।
संकटे विषमे दुर्गे भये वादे महाहवे ।
नित्यं हि संध्ययोः पातु तुलसी सर्वतः सदा ।। ६ ।।
इतीदं परमं गुह्यं तुलस्याः कवचामृतम् ।
मर्त्यानाममृतार्थाय भीतानामभयाय च ।। ७ ।।
मोक्षाय च मुमुक्षूणां ध्यायिनां ध्यानयोगकृत् ।
वशाय वश्यकामानां विद्यायै वेदवादिनाम् ।। ८ ।।
द्रविणाय दरिद्राण पापिनां पापशांतये
रोगिणां सर्वरोगहरायै आरोग्य प्रदायै ।। ९ ।।
अन्नाय क्षुधितानां च स्वर्गाय स्वर्गमिच्छताम् ।
पशुव्यं पशुकामानां पुत्रदं पुत्रकांक्षिणाम् ।। १० ।।
राज्यायभ्रष्टराज्यानामशांतानां च शांतये I
भक्त्यर्थं विष्णुभक्तानां विष्णौ सर्वांतरात्मनि ।। ११ ।।
जाप्यं त्रिवर्गसिध्यर्थं गृहस्थेन विशेषतः ।
उद्यन्तं चण्डकिरणमुपस्थाय कृतांजलिः ।। १२।।
तुलसीकानने तिष्टन्नासीनौ वा जपेदिदम् ।
सर्वान्कामानवाप्नोति तथैव मम संनिधिम् ।। १३ ।।
मम प्रियकरं नित्यं हरिभक्तिविवर्धनम् ।
या स्यान्मृतप्रजा नारी तस्या अंगं प्रमार्जयेत् ।। १४ ।।
सा पुत्रं लभते दीर्घजीविनं चाप्यरोगिणम् ।
वंध्याया मार्जयेदंगं कुशैर्मंत्रेण साधकः ।। १५ ।।
साSपिसंवत्सरादेव गर्भं धत्ते मनोहरम् ।
अश्वत्थेराजवश्यार्थी जपेदग्नेः सुरुपभाक ।। १६ ।।
पलाशमूले विद्यार्थी तेजोर्थ्यभिमुखो रवेः ।
कन्यार्थी चंडिकागेहे शत्रुहत्यै गृहे मम ।। १७ ।।
श्रीकामो विष्णुगेहे च उद्याने स्त्री वशा भवेत् ।
किमत्र बहुनोक्तेन शृणु सैन्येश तत्त्वतः ।। १८ ।।
यं यं काममभिध्यायेत्त तं प्राप्नोत्यसंशयम् ।
मम गेहगतस्त्वं तु तारकस्य वधेच्छया ।। १९ ।।
जपन् स्तोत्रं च कवचं तुलसीगतमानसः ।
मण्डलात्तारकं हंता भविष्यसि न संशयः ।। २० ।।
।। इति श्रीब्रह्मांडपुराणे तुलसीमाहात्म्ये तुलसीकवचं नाम स्तोत्रं श्रीतुलसी देवीं समर्पणमस्तु ।।
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🌹🌹🌹2...श्री तुलसी स्तोत्र 🌹 🌹🌹🌹🌹🌹
जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥1॥
नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥2॥
तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा ।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥3॥
नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम् ।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥4॥
तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम् ।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः ॥5॥
नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाजलिं कलौ ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥6॥
तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले ।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥7॥
तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥8॥
तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः ।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥9॥
नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे ।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥10॥
इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता ।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः ॥11॥
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी ।
धर्म्या धर्नानना देवी देवीदेवमनःप्रिया ॥12॥
लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला ।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः ॥13॥
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत् ।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥14॥
तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे ।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥15॥
इति श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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🌹🌹3...श्रीतुलसी नाम स्तोत्र हिन्दी पाठ सहित🌹🌹🌹
ध्यान
तुलसीं पुष्पसारां च सतीं पूज्या मनोहराम् ।
कृत्स्नपापेध्मदाहाय ज्वलदग्निशिखोपमाम् ॥॥
पुष्पेषु तुलनाऽप्यस्या नासीद्देवीषु वा मुने ।
पवित्ररूपा सर्वासु तुलसी सा च कीर्तिता ॥॥
शिरोधार्यां च सर्वेषामीप्सितां विश्वपावनीम् ।
जीवन्मुक्ता मुक्तिदा च भजे तां हरिभक्तिदाम् ॥॥
भगवान उवाच
वृन्दारूपाश्च वृक्षाश्च यदैकत्र भवन्ति च ।
विदुर्बुधास्तेन वृन्दा मत्प्रियां तां भजाम्यहम् ॥॥
पुरा बभूव या देवी ह्यादौ वृन्दावने वने ।
तेन वृन्दावनी ख्याता सुभगां तां भजाम्यहम् ॥॥
असंख्येषु च विश्वेषु पूजिता या निरन्तरम् ।
तेन विश्वपूजिताख्यां जगत्पूज्यां भजाम्यहम् ॥॥
असंख्यानि च विश्वानि पवित्राणि यया सदा ।
तां विश्वपावनीं देवीं विरहेण स्मराम्यहम् ॥॥
देवा न तुष्टाः पुष्पाणां समूहेन यया विना ।
तां पुष्पसारां शुद्धां च द्रष्टुमिच्छामि शोकतः ॥॥
विश्वेयत्प्राप्तिमात्रेण भक्त्यानन्दो भवेद्ध्रुवम् ।
नन्दिनी तेन विख्याता सा प्रीता भविता हि मे ॥॥
यस्या देव्यास्तुला नास्ति विश्वेषु निखिलेषु च ।
तुलसी तेन विख्याता तां यामि शरणं प्रियाम् ॥॥
कृष्णजीवनरूपा या शश्वत्प्रियतमा सती ।
तेन कृष्णजीवनीति मम रक्षतु जीवनम् ॥॥
फलश्रुति
अपुत्रो लभते पुत्रं प्रियाहीनो लभेत्प्रियाम् ।
बन्धुहीनो लभेद्बन्धुं स्तोत्रस्मरणमात्रतः ॥॥
रोगी प्रमुच्यते रोगाद्बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
भयान्मुच्येत भीतस्तु पापान्मुच्येत पातकी ॥॥
इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे प्रकृतिखण्डे नारदनारायणसंवादे
तुलसी स्तोत्रं सम्पूर्णम।।
हिंदी अनुवाद:
ध्यान
तुलसी सभी फूलों का सार है वह सती है पूजनीय है मनोहर है।
सभी पापरूपी इंधन को जला डालने मैं समर्थ अग्नि है।।
इसकी तुलना ना तो फूलों से हो सकती है नाही देवी से हो सकती है।
इसलिए इस पवित्र देवी को तुलसी कहा गया।।
यह सबकी शिरोधार्या है अभीष्ट है विश्व को पावन करने वाली है।
सभी को जीवनमुक्ति प्रदान करने वाली मुक्ति और हरीभक्ति प्रदान करने वाली हैं।।
भगवान कहते हैं
जब वृंदा के वृक्ष एक जगह जमा हो जाते हैं।
तब श्रीहरि की प्रेमिका तुलसी को बुद्धिमान लोग वृंदा कहते हैं मैं उसकी सेवा कर रहा हूँ।।
पुरातन काल में जो वृंदावन में प्रकट हुई थी जिस कारण उसे वृंदावनी कहा जाता है।
उस सौभाग्यशाली देवी की मैं सेवा कर रहा हूँ।।
अनगिनत विश्व में उसकी हमेशा पूजा होती है इसलिए उसे विश्व पूजिता कहा जाता है।
इसलिए उस जगत पूजित देवी की मैं पूजा कर रहा हूँ।।
जिससे अनगिनत विश्व हमेशा पवित्र रहते हैं।
उस विश्व पावनी देवी की बिरहा में तड़पकर याद मैं कर रहा हूँ।।
जिसके अभाव में देव अनेक फूलों को पाकर भी प्रसन्न नहीं होते।।
उस शुद्ध और पुण्यरुपी देवी को देखने के लिए मैं चिंतित हूँ।।
जिसके सिर्फ प्राप्ति भर से ही भक्तों प्रसन चित्र हो जाता है।
जिस कारण से वे नंदिनी के नाम से प्रसिद्ध है वह देवी तुलसी मुझ पर प्रसन्न हो जाए।।
पूरे संसार में जिसकी कोई तुलना ना हो जिसके कारण उसका नाम तुलसी पड़ा हो।
उस प्रिया कि मैं शरण में जाता हूँ।।
जो कृष्ण जी की जीवनस्वरूपा है जो उनकी प्रियतमा है।
वह कृष्ण जीवनी देवी मेरे जीवन की रक्षा करें।।
तुलसी के आठ नाम वृंदा, वृंदावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी - ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं। कहते हैं कि जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
फलश्रुति
तुलसी जी के स्तोत्र के स्मरण मात्र से पुत्रहीन को पुत्र स्त्रीहीन को स्त्री प्राप्त होती है।
बंधुहीन को बंधु प्राप्त होते हैं।।
रोगी रोगों से मुक्त हो जाते हैं बंधन में फंसे हुए लोग बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।
डरा हुआ प्राणी डर से मुक्त हो जाता है और पापी मनुष्य पाप से मुक्त हो जाता है।।
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🌹🌹4..।। श्री तुलसी चालीसा --(--१ )🌹🌹🌹🌹
।। दोहा ।।
जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी।
नमो नमो हरी प्रेयसी श्री वृंदा गुन खानी।।
श्री हरी शीश बिरजिनी , देहु अमर वर अम्ब।
जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब ।।
। चौपाई ।
धन्य धन्य श्री तुलसी माता । महिमा अगम सदा श्रुति गाता ।।
हरी के प्राणहु से तुम प्यारी । हरीहीं हेतु कीन्हो ताप भारी।।
जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो । तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ।।
हे भगवंत कंत मम होहू । दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ।।
सुनी लख्मी तुलसी की बानी । दीन्हो श्राप कध पर आनी ।।
उस अयोग्य वर मांगन हारी । होहू विटप तुम जड़ तनु धारी ।।
सुनी तुलसी हीं श्रप्यो तेहिं ठामा । करहु वास तुहू नीचन धामा ।।
दियो वचन हरी तब तत्काला । सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला।।
समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा । पुजिहौ आस वचन सत मोरा ।।
तब गोकुल मह गोप सुदामा । तासु भई तुलसी तू बामा ।।
कृष्ण रास लीला के माही । राधे शक्यो प्रेम लखी नाही ।।
दियो श्राप तुलसिह तत्काला । नर लोकही तुम जन्महु बाला ।।
यो गोप वह दानव राजा । शंख चुड नामक शिर ताजा ।।
तुलसी भई तासु की नारी । परम सती गुण रूप अगारी ।।
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ । कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ।।
वृंदा नाम भयो तुलसी को । असुर जलंधर नाम पति को ।।
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा । लीन्हा शंकर से संग्राम ।।
जब निज सैन्य सहित शिव हारे । मरही न तब हर हरिही पुकारे ।।
पतिव्रता वृंदा थी नारी । कोऊ न सके पतिहि संहारी ।।
तब जलंधर ही भेष बनाई । वृंदा ढिग हरी पहुच्यो जाई ।।
शिव हित लही करि कपट प्रसंगा । कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा ।।
भयो जलंधर कर संहारा। सुनी उर शोक उपारा ।।
तिही क्षण दियो कपट हरी टारी । लखी वृंदा दुःख गिरा उचारी ।।
जलंधर जस हत्यो अभीता । सोई रावन तस हरिही सीता ।।
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा । धर्म खंडी मम पतिहि संहारा ।।
यही कारण लही श्राप हमारा । होवे तनु पाषाण तुम्हारा।।
सुनी हरी तुरतहि वचन उचारे । दियो श्राप बिना विचारे ।।
लख्यो न निज करतूती पति को । छलन चह्यो जब पारवती को ।।
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा । जग मह तुलसी विटप अनूपा ।।
धरवो रूप हम शालिगरामा । नदी गण्डकी बीच ललामा ।।
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं । सब सुख भोगी परम पद पईहै ।।
बिनु तुलसी हरी जलत शरीरा । अतिशय उठत शीश उर पीरा ।।
जो तुलसी दल हरी शिर धारत । सो सहस्त्र घट अमृत डारत ।।
तुलसी हरी मन रंजनी हारी। रोग दोष दुःख भंजनी हारी ।।
प्रेम सहित हरी भजन निरंतर । तुलसी राधा में नाही अंतर ।।
व्यंजन हो छप्पनहु प्रकारा । बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा ।।
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही । लहत मुक्ति जन संशय नाही ।।
कवि सुन्दर इक हरी गुण गावत । तुलसिहि निकट सहसगुण पावत ।।
बसत निकट दुर्बासा धामा । जो प्रयास ते पूर्व ललामा ।।
पाठ करहि जो नित नर नारी । होही सुख भाषहि त्रिपुरारी ।।
।। दोहा ।।
तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी ।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बंध्यहु नारी ।।
सकल दुःख दरिद्र हरी हार ह्वै परम प्रसन्न ।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र ।।
लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम ।।
तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास ।।
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🌹🌹5..श्री तुलसी चालीसा --,,(-२)🌹🌹🌹🌹
श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय।
जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।
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नमो नमो तुलसी महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी।
दियो विष्णु तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश महाना।।
विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि, तिहूँ लोक की हो सुखखानी।
भगवत पूजा कर जो कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई।।
जिन घर तव नहिं होय निवासा, उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।
करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन।।
कातिक मास महात्म तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा।
तव पूजन जो करैं कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।
कर जो पूजन नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।
वृद्धा नारी करै जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।
श्रद्धा से पूजै जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई।
कथा भागवत यज्ञ करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै।।
छायो तब प्रताप जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल
चितधारी। तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन, सकल काज सिधि होवै क्षण में।।
औषधि रूप आप हो माता, सब जग में तव यश विख्याता,
देव रिषी मुनि औ तपधारी, करत सदा तव जय जयकारी।।
वेद पुरानन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया।
नमो नमो जै जै सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि।।
नमो नमो सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन छेनी।
नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।
नमो नमो भव पार उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि।
नमो नमो निज भक्त उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि।।
नमो नमो जय कुमति नशावनि, नमो नमो सुख उपजावनि।
जयति जयति जय तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।
निजजन जानि मोहि अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ।
करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु हमारी।।
शरण चरण कर जोरि मनाऊं, निशदिन तेरे ही गुण गाऊं।
क्रहु मात यह अब मोपर दाया, निर्मल होय सकल मम काया।।
मांगू मात यह बर दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।
जनूं नहिं कुछ नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा।।
बरह मास करै जो पूजा, ता सम जग में और न दूजा।
प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे।।
चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य लगावे।
करे आचमन गंगा जल से, ध्यान करे हृदय निर्मल से।।
पाठ करे फिर चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसा की।
यह विधि पूजा करे हमेशा, ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।
करै मास कार्तिक का साधन, सोवे नित पवित्र महि आसन ज
है यह कथा महा सुखदाई, पढ़े सुने सो भव तर जाई।।
तुलसी मैया तुम कल्याणी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।
भाव ना तुझे माँ नित नित ध्यावे, गा गाकर मां तुझे रिझावे।।
यह श्रीतुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।
गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।
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🌹6..माता तुलसी देवी का माहात्म्य और विभिन्न मंत्र
तुलसी वृक्ष को सनातन धर्म में परम पावन और पूजनीय माना जाता है जिसके बारे में पुराणों में विभिन्न कथाएं वर्णित है , कार्तिक मास में तुलसी देवी की बिशेष पूजा होती है तुलसी वृक्ष का औषधीय गुणों के कारण महत्त्व तो है ही लेकिन आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है
भगवान नारायण कृष्ण और राम एवं बिष्णु अवतारों में तुलसी के पत्तों के पूजा पूर्ण नहीं होती नैवेद्य आदि के
साथ भी तुलसी पत्थर रखकर भोग अर्पित किया जाता है तुलसी देवी का वास तुलसी वृक्ष में माना जाता है तुलसी देवी वृक्ष ,पौधों , वनस्पति, औषधियों की अधिष्ठात्री देवी है उन्हें वृक्षेश्वरी, भी कहते हैं
तुलसी वृक्ष में दीपक नित्य सायंकाल दीपक जलाने का महत्व है इससे नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है
सायंकाल में गौघृत का दीपक तुलसी वृक्ष में प्रज्जवलित करने पर जो गैस उत्पन होती है जिससे पर्यावरण संरक्षण होता है
पुषपसारा, पावनी , कृष्ण जीवनी, आदि अनेक नाम है
जैसे शिव परिवार में गंगादेवी का महत्व है वैसे ही विष्णु परिवार में तुलसी देवी का स्थान है भगवान कृष्ण और नारायण के शीर्ष पर तुलसी देवी का स्थान माना जाता है
तुलसी की देवी रूप में साधना आराधना और पूजा से
भगवान लक्ष्मीनारायण की बिशेष कृपा प्राप्त होती है
जो तुलसी वृक्ष की रक्षा और देखभाल करता है भगवान नारायण भी उस भक्त का ध्यान रखते हैं
देवी रूप में वृक्ष रूप में तो पूजा भक्ति होती ही है
लेकिन अगर कोई साधनात्मक रूप से मंत्र जप स्तोत्र
करना चाहते हैं तो उसके लिए भगवान लक्ष्मीनारायण का चित्र/प्रतिमा शालीग्राम शिला के सामने कर सकता है
इसके अलावा तुलसी देवी के मंत्र जाप के लिए
श्रीयन्त्र सबसे अधिक उपर्युक्त है इसके साथ कनकधारा यंत्र और महालक्ष्मी यंत्र पर भी जाप कर सकते
जाप के लिए तुलसी माला, कमलगट्टा, स्फटिक, वैजन्ती, श्वेतचंदन आदि की माला श्रेष्ठ है
तुलसी देवी मंत्र
1..ओम भगवती तुलसी दैव्यै विष्णु प्रियायै नमः
2..ओम श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यै नमः
3..ओम श्रीं ह्लीं श्रीं तुलस्यै हरिप्रियायै नमः
4..ओम श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं श्रीं लक्ष्मी नारायण सहितायै तुलसी देव्यै नमः
(इस मंत्र को शालिग्राम शिला और श्रीयंत्र दोनों में से किसी के भी सामने जाप कर सकते हैं)
5..ओम श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं श्रीं तुलसीलक्ष्म्यै नमः
(इस मंत्र का श्रीयंत्र के सामने जाप करने से तुलसी देवी और लक्ष्मीजी की संयुक्त शक्ति और कृपा प्राप्त होती है)
6..ओम श्रीं ह्लीं तुलस्यै हरिप्रियायै सर्वसुख सौभाग्य प्रदायिन्यै नमः
7.=ओम वं श्रींं वं ऐं ह्मीं श्रीं क्लीं तुलसी देव्यै अमृतरूपायै आरोग्य प्रदायै नमः
8.. ओम श्रीं ह्लीं तुलसायै अमृतरूपिणी आरोग्य प्रदायै नमः
9..ओम श्रींत्रिपुरायै विदमहे तुलसीपत्राय धीमहि तन्नो तुलसी प्रचोदयात्
10..ओम श्रींत्रिपुरायै विदमहे तुलसी भद्राय धीमहि तन्नो तुलसी प्रचोदयात्
11..ओम तुलस्यै विदमहे श्रीत्रिपुरायै धीमहि तन्नो तुलसी प्रचोदयात्
12..ओम श्रीं तुलस्यै विदमहे बिष्णु पत्न्यै धीमहि तन्नो तुलसी प्रचोदयात्
13..ओम अमृतवासिन्यै विदमहे संजीवनी रूपायै धीमहि तन्नो तुलसी प्रचोदयात्
14..ओम अमृत संजीविन्यै विदमहे श्रीरूपायै धीमहि तन्नो तुलसी प्रचोदयात्
यह सभी मंत्रो का जाप अपनी भक्ति भावना के अनुरूप किया जा सकता है भगवान विष्णु और लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने हेतु , सात्त्विक नियमों का पालन करते हुए
यह सब भक्ति उपासना से संबंधित है इनका कोई बिशेष पद्बति नहीं है पवित्रता का पालन करते हुए कभी भी
कितना भी अपने सुविधानुसार जाप कर सकते हैं
नित्य पूजा में जाप कर सकते हैं अगर अनुष्ठान के रूप में करना हो कार्तिक मास या कभी भी शुभ मुहूर्त में शुरू कर सकते हैं
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