11 अक्टूबर 2022
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महाराणा प्रताप के बारे में सारगर्भित जानकारी दी गई।
12 जनवरी 2023
महाराणा प्रताप की जीवनी :- नाम : महाराणा प्रताप जन्म : 9 मे, 1540 कुम्भलगढ़ दुर्ग पिता : राणा उदय सिंह माता : महाराणी जयवंता कँवर घोड़ा : चेतक महाराणा प्रताप सिंह ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार वि
आरंभिक जीवन : महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जैवन्ताबाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जा
हल्दीघाटी का युद्ध : हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास की एक मुख्य कड़ी है। यह युद्ध 18 जून 1576 को लगभग 4 घंटों के लिए हुआ जिसमे मेवाड और मुगलों में घमासान युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप की सेन
घोड़ा चेतक : महाराणा प्रताप की वीरता के साथ साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है| चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर 26 फुट गहरे दरिया से कूदकर महाराणा
मृत्यु : आखिरकार शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से महारणा प्रताप 19 जनवरी 1597 को चावंड में स्वर्ग सिधार गये...
महाराणा प्रताप... गिरा जहाँ पर खून वहाँ का पत्थर-पत्थर जिंदा है, गिरा जहाँ पर खून वहाँ का पत्थर-पत्थर जिंदा है, जिस्म नहीं है मगर नाम का अक्षर-अक्षर जिंदा है, जिस्म नहीं है मगर नाम का अक
महारानी जयवंताबाई महाराणा उदय सिंह की पहली पत्नी थी, और इनके पुत्र का नाम महाराणा प्रताप था। यह राजस्थान के जालौर की एक रियासत के अखे राज सोंगरा चौहान की बेटी थी। ... जयवंता बाई उदय सिंह को राजनी
अजबदे पंवार महाराणा प्रताप की पत्नी तथा अमरसिंह सिसोदिया की माँ थी। इनके पिता का नाम राव माम्रक सिंह तथा माता का नाम हंसा बाई था। अजबदे पंवार ने महाराणा प्रताप की राजनीतिक मामलों में काफी मदद की थी।
आदिवासी योद्धा पूंजा भील जिन्होंने हल्दीघाटी युद्ध किया। जिसके धनुष मात्र से अकबर की सेना में हड़कंप मच जाता था। ऐसे आदिवासी योद्धा को नमन। राणा पूंजा भील का जन्म मेरपुर में हुआ था। उनके पिता के
महाराणा प्रताप सिंह जी की वीर पुत्री के त्याग के बारे पढे।। वीर बाला चम्पा :- महाराणा प्रताप परिस्थितियों के कारण वन-वन भटक रहे थे किन्तु उन्होंने मुगलों के सामने झुकना मंजूर नहीं किया। महाराणा क
हल्दीघाटी के युद्ध में बिना किसी सैनिक के राणा अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो कर पहाड़ की ओर चल पडे. उनके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने अपना पराक्रम दिखाते हुए रास्ते में एक पहा
महाराणा प्रताप का अपने वफादार घोड़े चेतक के साथ एक अज्ञात बंधन था जिसे कुछ ही विरोधी समझ पाए थे. हल्दीघाटी की लड़ाई के दौरान चेतक ने महाराणा प्रताप की घातक चोटों के बावजूद उनकी जान बचाई थी. बाद