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कीमत एक लम्हें की

26 अक्टूबर 2021

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                                                                                                    ~ कीमत एक लम्हें की ~  



जब भी ईश्वर के द्वारा बनाई इस सुन्दर प्राकृति, जीवन और अनन्त रचनाओं के बारे में सोचता हूँ तो समझ आता है कि सबसे श्रेष्ठ और बलवान रचना समय है।समान्यतः ईश्वर ने सभी को पर्याप्त और सीमित समय दिया है लेकिन कुछ इसके सदुपयोग से अपने जीवन में अनन्त ऊँचाइयों को छूते हैं तो कुछ इसके दुरूपयोग से अपने जीवन में अंधकार और असफलता को निमंत्रण देते हैं। 

           समय एक समान रूप से चलता है लेकिन प्रत्येक व्यक्ति को अपनी परिस्थिति के अनुसार समय अलग -अलग गति से चलता प्रतीत होता है।हमारे जीवन में प्रत्येक क्षण की कीमत है और जिस व्यक्ति ने इसकी महत्ता को समझ लिया उसकी तरक्की कोई नहीं रोक सकता, इसी महत्ता को मैं अपने साथ घटित एक घटना के माध्यम से समझाने जा रहा हूँ....।                   


                              ये बात उन दिनों की है जब मैं अपनी छुट्टियों के दिन पूरे करके अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने वापस शहर जाने वाला था। मेरे शहर जाने की खुशी मैं अपने घरवालों के चेहरे पर देख पा रहा था लेकिन साथ ही घर में मेरी कमी खलने का दुख भी उनके चेहरे पर झलक रहा था । घर में एक अलग ही प्रकार का माहौल बन गया था, मां मेरे लिए पोहे और कुछ व्यंजन तैयार कर रही थी और मैं अपनी बहन से विभिन्न विषयों पर चर्चा कर रहा था क्योंकि ये मेरी प्रिय इच्छाओ में से एक है लोग अक्सर कहते हैं कि मैं स्वभाव से एक शांत प्रकृति का तथा उत्सुक लड़का हूं और मुझे भी ऐसा लगता है,मेरा भी मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति को उत्सुक होना चाहिए जिससे वह नई चीजों को सीखें और जानें। 

रात का समय था, मैं पिताजी के पास गया और मेरा टिकट कराने को कहा उन्होंने अपने एक करीबी मित्र से कहकर अगले दिन के लिए मेरा टिकट करा दिया। 

                     उस रात मुझे देर से नींद आई लेकिन मैं सुबह जल्दी जग गया, स्नान और पूजा पूरी करके मैं पिताजी के पास गया और कुछ पैसे देने का आग्रह किया। पिताजी ने मुझे ₹3000 महीने के खर्चे और पढ़ाई के लिए दे दिया।मैं अपना जरूरी का सामान इकट्ठा कर रहा था,अभी सुबह के 9:00 बजे थे और स्टेशन पर गाड़ी आने में 2 घंटे का समय था लेकिन मैं कोई लापरवाही नहीं चाहता था इसलिए मैंने 10:30 बजे निकलने का निर्णय किया लेकिन फोन पर ट्रेन का स्टेटस देखने पर पता चला कि ट्रेन आधे घंटे देर से आएगी तो मैं बेफिकर मन से भोजन करने लगा और बातों ही बातों में समय कब गुजर गया पता ही नहीं लगा।उस समय 10:40 बज रहे थे जब मैंने दोबारा ट्रेन का स्टेटस देखा और पता लगा कि जो गाड़ी आधे घंटे देर से आने वाली थी अब वह अपने समय यानी 11:00 बजे ही आएगी यह देखकर मैं थोड़ा घबरा गया था और कुछ देर सोचने के बाद मैं घर वालों का आशीर्वाद लेकर,पिताजी की मोटर गाड़ी पर बैठकर निकल पड़ा और यही से शुरू हुआ मेरा भागदौड़ और धड़कनें बढ़ा देने वाला सफर…

हमारे पास केवल 15 मिनट का समय था और 8 किलोमीटर की दूरी तय करनी थी जो कोई बड़ी बात नहीं थी। पिताजी गाड़ी रफ्तार बढ़ाते हुए तेजी से स्टेशन की तरफ चल पड़े, वह मुझे जल्दी पहुँचाने का  भरसक प्रयास कर रहे थे लेकिन रास्ता खराब और ज्यादा ट्रैफिक वाला होने के कारण गाड़ी को गति नहीं दे पा रहे थे। मैं अपनी नजरें लगातार घड़ी और ट्रेन के स्टेटस पर टिकाए हुए था,मेरी धड़कनें तेज थी और मन में जल्दी स्टेशन पहुंचने की बेचैनी भी थी उस वक्त मुझे 1मिनट मानो 1 सेकंड की भांति लग रहा था और उस वक़्त गुजर रहे एक-एक सेकंड को मैं महसूस कर पा रहा था।अब मेरे पास बस 5 मिनट का समय था और दूरी अभी भी लगभग 3 किलोमीटर की बाकी थी ••••

खराब रास्ता और ट्रैफिक हमारे रास्ते की बाधा बन रहे थे लेकिन हमने उम्मीद नहीं छोड़ी और अपना प्रयास जारी रखा।मेरी धड़कनें अब दोगुनी रफ्तार से चल रही थी और मन में मानों विचारों का तूफान उमड़ रहा था मेरे मन में नकारात्मक विचार आ रहे थे कि कहीं अगर मैं समय पर नहीं पहुंचा और मेरी ट्रेन छूट गयी तो क्या होगा? ये सोचते हुए मैं बढ़ता जा रहा था, मैं हर हाल में बस समय पर पहुंचना चाहता था। 

अभी भी 1 किलोमीटर की दूरी थी और समय मात्र डेढ़ मिनट का था अब मेरा पहुंचना असंभव सा लग रहा था अभी हमलोग स्टेशन से लगभग 100 मीटर की दूरी पर थे कि हमारे कानों में गाड़ी खुलने की आवाज पहुंची मेरी धड़कनें और तेजी से धड़कनें लगी, हम जैसे तैसे पहुंच गये, मैं गाड़ी से तुरंत उतरा और स्टेशन की ओर घबराये मन से देखा और उसके बाद जो हुआ वो मुझे एकदम से संनन कर गया ...मैंने देखा कि लगभग 40 मीटर की दूरी पर ट्रेन हॉर्न बजाते हुए निकल पड़ी है और अपनी रफ्तार लगातार बढ़ाये जा रही है और देखते ही देखते क्षण भर में मेरी नजरों से दूर चली गई, मैं हाथ में सामान लिए और कंधे पर बैग टांगे बस देखता ही रह गया, चाह कर भी कुछ कर न सका और मैं खडा ही रह गया...अब मेरी आंखों के सामने पिछले 15 मिनट की भागदौड़, वो प्रयास और वो सारी मेहनत दिखने लगी जो अब पूरी तरह व्यर्थ थी ..... 

 मैं उदास मन से उस खाली पटरी को देर तक बस देखता ही रह गया बस देखता ही रह गया ••••

 

 

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उस दिन मुझे एक लम्हे की कीमत समझ आयी और मैंने जीवन पर्यंत ऐसी गलती ना दोहराने और समय की कद्र करने की कसम खाई। उस दिन केवल मेरी ट्रेन छूटी थी लेकिन सीख बहुत बड़ा देके गयी… 

आज भी जब वो लम्हा याद करता हु तो दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं और वो लम्हा आँखों के सामने नजर आ जाता है। 

 

                                                                                                                मेरी कलम से 🖊

                                                                                                                      (Vishal Giri) 

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