मैं लड़की हूं ,किसी मां - बाप की बिटिया ,
दुनिया ने मुझे बहुत तरह से परिभाषित किया ।
सहती हूं, सुनती हूं समाज के ताने- बाने,
हर कोई दुखाता मेरा दिल जाने या अनजाने ।
मेरे लिए ,मेरे अधिकार के लिए लोगों ने बहुत कुछ किया,
हां, सच में बहुत कुछ किया
किसी ने अपनी कविताओं में मेरा महिमा गया
मुझे ईश्वर का वरदान बताया ,
मैं घर की खुशहाली हूं,पिता के आंगन की हरियाली हूं
मैं होठों की मुस्कान हूं, परिवार की मान- सम्मान हूं ।
किसी ने मेरे आंसू , दुःख- दर्द को गीतों में पिरोया ,
कहानियों में मेरे भावनाओं ,विचारो को संजोया।
किसी ने कटे पंख वाले पक्षी सा आसार हीन दिखाया
बिन पानी की तड़पती मछली सी लाचार बताया ।
मेरे लिए सड़कों पर प्रदर्शन कराया , नारा लगवाया ,
मेरे मुद्दों ने नेताओ को चुनाव जितवाया ।
लेकिन ,फिर भी हुआ क्या ?
मुझे न्याय और अधिकार मिला क्या ?
मेरे लिए समाज का विचार बदला क्या?
किसी ने दिल से मुझे कभी भी समझा क्या ?
मैं आज भी कोख में मारी जाती हूं,नवजात हालत में फेंकी जाती हूं,
मैं आज भी घर से निकलने में डरती हूं, नज़रों की भाल से चुभती रहती हूं,
मैं आज भी खुद को को बोझ समझती हूं,दहेज की आग में रोज ही जलती हूं,
मैं आज भी वासना में नोचीं जाती हूं, सड़को के किनारे मरी हुई पाई जाती हूं
मैं आज भी लोगों की नजर में एक खिलौना हूं, हर रोज किसी कोठे में मोल लगाई जाती हूं ।
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