करके स्नान यमुना जल में ,पुजत शिव संग अर्धांगी
बन्द नयन ,बद्ध कोमल कर,विनती कर रही मधुरांगी
रमणीय बगिया बरसाने की , विराज रही जिसमें गौरांगी
संग में बैठी चतुर सखियां , ललिता ,विशाखा शिवांगी ।
मधुमय प्रात,सुंगंधित वात , मुदित हो चटक रही कलियां
कंचन वर्ण प्रभा में छुपा कंचन, खनकती चूड़ी , छनकी पायलिया
कालिंदी तीर,भर कर नीर , गृह को चली मंजुल सखियां
शतदल अधर मृदुल मन्द मुस्कान, जो देखे वो लेत बलाईयां ।
सिर के घड़े टूट पड़े , चलते पांव रुक गए
बोली सखी , कौन हठी यहां , मार कंकड़िया छुप गए
अरे ! सामने तो आओ सही , क्या दंड से भयभीत हुए
सखियां सहित राधा विस्मित हुई , जो सामने वो आ खड़े हुए ।
उदित आदित्य चौंक रहे , धरनी का ये कौन तमोहर
स्वर्णिम रश्मि चूम रही ,जिसका मुख मण्डल मनोहर
श्यामल वदन शोभित पीताम्बर ,हरित हुआ कटि धरोहर
विलगित क्यों ये नील कमल ,भ्रमित हुआ निकट सरोवर ।
झलक रही उसमे ,ओज,शौर्य, माधुर्य का उत्कर्ष
निरख छवि सौंदर्य को अनंग भी हो रहा आकर्ष
गाते विहंग,झूमते तरू, करती नृत्य अवनी सहर्ष
छोड़ मधु पुष्प को , गूंज रहा अली हो प्रेमाकर्ष ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹राधाष्टमी की हार्दिक शुभकामाएं 🙏🙏❤️❤️🥀🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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" प्रज्ञा पांडेय