शब्दों का अपने-आप में कोई खास महत्व नही। चारों ओर शब्द ही शब्द हैं। मगर, फिर भी उनका किसी पर असर हो, इसके लिए शब्दों की अच्च्छाई और उपयोगिता तभी बन पाती है जब शब्दों को बेहद उम्दा और ढेर सारे प्यार, आस्था और अपनेपन से स्वीकार किया जाए।शब्द तभी कामयाब और असरदार होते हैं जब उनको सुनने वाले की कहने वाल
सितंबर महीने की पहली किताब थी - रबिन्द्रनाथ टैगोर की लिखी 'द होम एंड द वर्ल्ड'। यूं तो टैगोर का नाम सभी ने सुना है। गीतांजली के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला था। उनका लिखा गीत 'जन गण मन' हमारा राष्ट्रगान बना और उन्हीं का लिखा एक और गीत 'आमार शोनार बांग्ला' पाकिस्तान
अगस्त महीने की आखिरी किताब थी जीनेट वॉल्स की लिखी 'द ग्लास कैसल'। जीनेट वॉल्स एक अमरीकी जर्नलिस्ट हैं और ये उनका लिखा संस्मरण है। एक किताब जो उनके और उनके पिता के रिश्ते के बीच कुछ तलाश करती हुई सीधे दिल में उतरती है और कुछ हद तक उसे तोड़ भी देती है।इंसान एक परिस्थितिजन्य पुतला है। उसका व्यक्तित्व पर
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बोध कथाएं प्रेरक होती हैं और वे एक सीख देती हैं। उस सीख को जीवन में अपनाने से जीवनपथ उन्नति की ओर अग्रसर होता है। वस्तुतः बोध कथाओं की सीख को जीवन में व्यवहार में लाने पर वे सार्थक हो जाती हैं और पढ़ने वाले का जीवन सार्थक हो जाता है। बोधामृत नामक पुस्तक में प्रेरक व जीवनोपयोगी 101 बोधकाथाएं आपके उपय
अगस्त के लिए चार किताबों का लक्ष्य था और येकिताबें सोचीं थीं:1. Metamorphosis (फ्रैंज काफ्का)2. गुनाहों का देवता (धर्मवीर भारती)3. मेरे मंच की सरगम (पीयूष मिश्रा)4. Home and the World (रबिन्द्रनाथटैगोर) इनमें से 'मेरे मंच कीसरगम' और 'Home and the World' की delivery ही नहीं हो पाई।इसलिए इन दो किताबों