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कोई कैसे कह दे..!

24 जून 2016

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कोई कैसे कह दे...

कि वो किसी से.. कितना प्रेम करता है..!!

क्या यह विचार करना भी...

उसके प्रेम पर.. प्रश्न नहीं होगा..?


क्यों इस 'क्यों' के फेर में पड़कर...

अपने पावन प्रेम से बढ़कर...

अपनी बौद्धिकता से.. हृदय को हराए...

क्या यह निर्मल प्रीत का.. हनन नहीं होगा..?

कोई कैसे कह दे...


कोई कैसे.. अपने समर्पण की.. हदों को बतलाए..

क्यों करता है प्रेम.. आखिर.. क्यों वो समझाए..?

क्यों बेशर्त इस प्रेम में.. है अनगिनत शर्तें...

कभी ना हो ये पूरी.. चाहे साँसे थम जाए..!!

अब कैसे हो कोई मीरा...?

जब तक फिर से.. कोई कृष्ण नहीं होगा..!!

कोई कैसे कह दे...

मुकुल शर्मा

मुकुल शर्मा

शुक्रिया मधुकर जी| आपका सुझाव बिल्कुल सही है|

25 जून 2016

शिशिर मधुकर

शिशिर मधुकर

अत्यन्त खूबसूरत भाव. लेकिन मेरे विचार से क्यों इस "कितने" के फेर में पड़कर होना चाहिए

24 जून 2016

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रचनाएँ
anubhuti
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एक प्रयास जीवन की अनुभूतियों को शब्दों में समेटने का !
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अनुग्रह..!

6 जून 2016
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मेरी डायरी के पन्ने पलटकर..मेरी रचनाएँ पढते हुए..तुमने उन्हें जाने किन निगाहों से देखा..कि वो बार-बार.. शरमाकर.. मुझसे.. तुम्हारा ज़िक्र करती हैं..!मेरी डायरी के खाली पन्नों को छूकर...तुमने जाने किन अहसासों से भर दिया...कि कलम.. अब लिख नहीं पाती कुछ उन पर..क्यूंकि.. वे तो.. पहले ही भर चुके है ना..!म

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इबादतें..!

8 जून 2016
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मेरे इश्क मेरे रब, मेरी आदतों की तरह..शामिल है तू रूह में, इबादतो की तरह...जिंदगी हो संग तेरे, तो जिंदगी है लगती..बिन तेरे गर जो गुज़रे, है आफतों की तरह...बोल-अमोल जो झर गए, उन अश्को से तुम्हारे..वादें वो इश्क के थे, पाक आयतों की तरह..ना बुत पूजे मैंने कोई, ना माँगी कभी दुआएं..पूजा है रब को मैंने, च

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अनायास..!

9 जून 2016
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उल्टा मटका.. खामोश सवेरा..संकोच से गाती चिड़िया... सहमे से पेड़... दम तोड़ते पत्ते...कुछ धूल भरी पुरानी चीज़े..एक उम्रदराज़ कुर्सी...एक तस्वीर.. मेरी और तुम्हारी..डायरी के खाली पन्ने..सूखा हुआ फूल..एक अधूरा चित्र.. सूखे हुए रंग..सब जीवंत हो उठते है..जब तुम...नज़रे मिलाते हो..! :)

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माँ तो बस माँ होती है..!

10 जून 2016
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जब कभी मैं..माँ के विषय में..लिखने का विचार करता हूँ...तो जैसे...शब्द भी डरने लगते है...अक्षर सब क्षरने लगते है....और कहते है मुझसे...कि...अस्तित्व का वर्णन हो सकता है...पर माँ को... कौन वर्णित कर सकता है...?संतो-अरिहंतो की दुआ होती है...बुद्धो की जैसे पनाह होती है.... पूछे जब कोई... मैं क्या उपमा द

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दर्द उसके हिस्से का..!

11 जून 2016
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सूखे में चटकती मिट्टी सी ...उसके चेहरे की रेखाएं...व्याकुल सी सहमी सी ....उसकी वो निगाहें...दर्द उसके हिस्से का...कम मैं कैसे करूँ ...सजा दूँ मैं खुद को...या..खुदा से लडूं ....इस उम्र में जब....सम्मान उसका अधिकार है...वो फैला रही है ...हाथो को...उसे कुछ....पैसो की दरकार है....कोई देता है ताने....कोई

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मैं बस प्यार लिखता हूँ..!

13 जून 2016
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ना तू दिल का आलम पूछ.. कि बनके ख्वाव खिलता हूँ..मैं तुझसे जब भी मिलता हूँ.. हाँ पहली बार मिलता हूँ..मेरी कीमत का जो सोचो.. हूँ सदियों की जमा पूँजी...जो तुम बस प्यार से देखो.. सरे बाज़ार बिकता हूँ..कभी दुश्मन कभी आशिक़.. कभी मौला कभी मुर्शिद..जिस नीयत से तुम देखो.. मैं वैसा यार दिखता हूँ..तेरी परवाह मे

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शब्दों के अँधियारे में..!

18 जून 2016
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शब्दों के अँधियारे में, जो देखा होके मौन,मन अँधियारा मिट गया, दीखा कैसा कौन ||राह कई उलझन कई, है अनगिनत विकल्प दिशा नजर आने लगी, साधा जब संकल्प ||सम्पूर्ण जीवन अनवरत, नित नूतन संघर्षआस्था भीतर में हो, संघर्ष बनें सब हर्ष ||आगे की चिंता किसलिए, क्यों अतीत से युद्धचिंता कोई भी ना टिके, रहे जो चिंतन शु

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कोई कैसे कह दे..!

24 जून 2016
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कोई कैसे कह दे...कि वो किसी से.. कितना प्रेम करता है..!!क्या यह विचार करना भी...उसके प्रेम पर.. प्रश्न नहीं होगा..?क्यों इस 'क्यों' के फेर में पड़कर...अपने पावन प्रेम से बढ़कर...अपनी बौद्धिकता से.. हृदय को हराए...क्या यह निर्मल प्रीत का.. हनन नहीं होगा..?कोई कैसे कह दे...कोई कैसे.. अपने समर्पण की..

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रिश्ता नाजुक सा था..!

29 जून 2016
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ना छुपाया गया, ना बताया गया..रिश्ता नाजुक सा था, ना निभाया गया..साँसे बेबस सी थी, बेकरारी भी थी..हालत मेरी जो थी, क्या तुम्हारी भी थी.?दिल बहुत था दुःखा, सब दिल में रखा..दर्द आँखों से मुझसे, ना बहाया गया..रिश्ता नाजुक सा था...की कई कोशिशें, पर समझ ना सका..मैं यूँ घुट घुट जिया, कि तड़प ना सका..कोई बात

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