कोई कैसे कह दे...
कि वो किसी से.. कितना प्रेम करता है..!!
क्या यह विचार करना भी...
उसके प्रेम पर.. प्रश्न नहीं होगा..?
क्यों इस 'क्यों' के फेर में पड़कर...
अपने पावन प्रेम से बढ़कर...
अपनी बौद्धिकता से.. हृदय को हराए...
क्या यह निर्मल प्रीत का.. हनन नहीं होगा..?
कोई कैसे कह दे...
कोई कैसे.. अपने समर्पण की.. हदों को बतलाए..
क्यों करता है प्रेम.. आखिर.. क्यों वो समझाए..?
क्यों बेशर्त इस प्रेम में.. है अनगिनत शर्तें...
कभी ना हो ये पूरी.. चाहे साँसे थम जाए..!!
अब कैसे हो कोई मीरा...?
जब तक फिर से.. कोई कृष्ण नहीं होगा..!!
कोई कैसे कह दे...