मेरी डायरी के पन्ने पलटकर..
मेरी रचनाएँ पढते हुए..
तुमने उन्हें जाने किन निगाहों से देखा..
कि वो बार-बार.. शरमाकर..
मुझसे.. तुम्हारा ज़िक्र करती हैं..!
मेरी डायरी के खाली पन्नों को छूकर...
तुमने जाने किन अहसासों से भर दिया...
कि कलम.. अब लिख नहीं पाती कुछ उन पर..
क्यूंकि.. वे तो..
पहले ही भर चुके है ना..!
मेरी डायरी में रखा.. सूखा गुलाब का फूल...
फिर से खिल गया.. तुम्हारी मुस्कान से...
महक रही है डायरी मेरी..
तुम्हारे.. फिर से आने की प्रतीक्षा में..
और.. अनुग्रहित हूँ मैं...!!