शब्दों के अँधियारे में, जो देखा होके मौन,
मन अँधियारा मिट गया, दीखा कैसा कौन ||
राह कई उलझन कई, है अनगिनत विकल्प
दिशा नजर आने लगी, साधा जब संकल्प ||
सम्पूर्ण जीवन अनवरत, नित नूतन संघर्ष
आस्था भीतर में हो, संघर्ष बनें सब हर्ष ||
आगे की चिंता किसलिए, क्यों अतीत से युद्ध
चिंता कोई भी ना टिके, रहे जो चिंतन शुद्ध ||
भय संशय से मुक्त हो, तब दीखे निज दर्पण
साहस बस भीतर रहे, सब कुछ ईश्वर अर्पण ||