ना तू दिल का आलम पूछ.. कि बनके ख्वाव खिलता हूँ..
मैं तुझसे जब भी मिलता हूँ.. हाँ पहली बार मिलता हूँ..
मेरी कीमत का जो सोचो.. हूँ सदियों की जमा पूँजी...
जो तुम बस प्यार से देखो.. सरे बाज़ार बिकता हूँ..
कभी दुश्मन कभी आशिक़.. कभी मौला कभी मुर्शिद..
जिस नीयत से तुम देखो.. मैं वैसा यार दिखता हूँ..
तेरी परवाह में दिन डूबे.. हैं रातें भीगी भीगी सी..
तू जब जब भी परेशाँ हो.. मैं हर इक साँस मिटता हूँ..
तुझे बेशक कि नफरत हो.. मुझे ना फ़िक्र कोई है...
मुकम्मल मैं इक आशिक़ हूँ.. मैं बस प्यार लिखता हूँ..