*।।कृष्ण कहीं से आ जाएं।।*
चेतना में आज सबकें
कौरव षड्यंत्र चल रहा हैं
कौरवों सी क्रूरता से
हर तंत्र फल फूल रहा हैं
पांडवी ऊर्जा गति
निष्क्रिय निशदिन हो रही हैं
कालिया जरासंध का
साम्राज्य बढ़ता जा रहा हैं ,
स्नेह श्रम सदभाव का
अभाव होता जा रहा
भय आतंक के भाव में अब
कंस जीता जा रहा
नारियाँ शोषित बेचारों की
व्यथा को कौन सुनें
आस आने की कृष्णा के
आँखों से सबकें जा रहा ,
दूर करनें को सभी विपदा
कहीं से आ जाएं
खो चुकी जो धरा सम्पदा
देने कहीं से आ जाएं
साध कर जियें हम अपना
जिंदगी ज़िसके तरह
जग को तारने वालें
ओ कृष्णा कहीं से आ जाएं ।।
©बिमल तिवारी "आत्मबोध"
देवरिया उत्तर प्रदेश