कुछ अपने दर्द की भी कहानी लिखा करो ,
यू ना ज़िन्दगी को त्याग का श्रंगार बनाया करो ।
तस्वीर न बदलती फैम बदलने से ,
खुद को उम्मीदो पर खड़ा होकर तो देखो ।
दो पल की ये ज़िन्दगानी ,
हँसते हँसते जी कर तो देखो ।
यू तो आँखे आशब्दिक तौर पर सबकुछ बयां कर देती,
खुद को खुद की प्रेरणा बनाकर तो देखो ।
दो घूँट ज़हर के अमृत लगे ,
अपना नज़रिया बदल कर के तो देखो ।
एक बार जरा पीछे मुड़कर तो देखो ।
ज़िन्दगी की रेस मे खुद को फैस करो खुद से ,
खुद से ज़रा दो कदम आगे बढ़ा कर तो देखो ,
अगर ज़िन्दगी ने घसीट दिया बीस कदम दूर तुम्हें ।
दूसरो को अपनी प्राणधारण की मुस्कुराहट बनाने की जगह ,
खुद को अपने चेहरे की हँसी बनते तो देखो ।
दो पल जरा रूक कर माँ को पानी का एक गिलास पीलाकर तो देखो ,
क्या फर्क पड़ेगा दो मिनिट जरा देर हो गई काम पे जाने मे तो ।
जिन्दगी से शिकायते मिटा कर तो देखो ,
बन जाएगी ज़िन्दगी एक सपना ।
- टिशा मेहता
( पंद्रह वर्ष की हिन्दी तथा अंग्रेजी की लेखिका )
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