तू मन अनमना न कर
अपना ,इसमें तेरा अपराध नहीं ,
मेरी धरती के कागज
पर , तस्वीर अधूरी रहनी थी |
शायद मैंने गत जनमों में , अधबने
नीड़ तोड़े होंगे ,
प्रिय की पाती लाने वाले बादल वापस
मोड़े होंगे |
ऐसा अपराध किया होगा , जिसकी क्षमा
नहीं मिलती ,
तितली के पर नोंचे होंगे , हिरणों
के दृग फोड़े होंगे |
जीवन भर मुझे भटकना था मन में कस्तूरी रहनी थी |
भारत भूषण ( मेरठ
)