निवेदन - कृपया मेरे ये चयनित शेर आप पुरुस्कार के लिए
विचारणीय सामग्री में सम्मिलित न करें | तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा | क्योकि ये तो
दूसरों के लिखे शेर हैं | मेरी स्वम् की रचनाएँ थोड़े हीं हैं |
संकलित शेर
घर जो किस्मत से तेरे घर के बराबर होता
तू न आता मगर आवाज तो आती तेरी
अज्ञात
अब तो एक ऐसा भी मजहब चलाया जाये
जिसमें इन्सान को इन्सान बनाया जाये
गोपाल दास नीरज
जिन्दगी बढ़ी एक पैर , मौत बढ़ गयी दो कदम ,
फासला यूं हुआ कम , जिन्दगी मौत के बीच का |
भारत भूषण ( मेरठ )
बस दीवार क्या गिरी मेरे मकान की
लोगों ने उसे आम रस्ता बना लिया
अज्ञात
जरा शोखिये हुस्न तो देखिये , लिए जुल्फे खम शुदा हाथ में
मेरे पास आके दबे दबे , मुझे सांप कह के डरा दिया
अज्ञात
अब
के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई ,
मेरा घर छोड़ कुल शहर में बरसात हुई
गोपाल
दस नीरज
नामाबर ( डाकिया ) तू ही बता , तूने तो देखा होगा
कैसे होते हैं वो खत , जिनका जबाब आता है
अज्ञात