अपने रंगों में रंगा रंगीला मन ,
अब कोई भी रंग नहीं चढ़ता है |
लाल गुलाल मोह ममता -
का , तुम मुझ पर मत डारो |
कच्चे रंगों वाली अपनी ,
यह पिचकारी मत मारो |
मेरे पुण्यों के सच्चे हैं सब रंग ,
अब कोई भी रंग नहीं चढ़ता है |
जो कुछ दिया वही पाया ,
इस जीवन की झोली में |
कितनी बार जलाये मैंने ,
कलुष मरण की होली में |
तप तप कर हो गई जिन्दगी चन्दन ,
अब कोई भी मैल नहीं चढ़ता है |
यह रंगना बाहर बाहर ,
यह झूठा आडम्बर
मैं अन्तर से रंगी , रंग -
रस डूबी भीतर बाहर |
भीगूँ जलूं सुगन्धित होगा चन्दन ,
अब कोई भी जहर नहीं चढ़ता है |
कुसुम सिन्हा