मैंने कह दिया सितमगर , ये
कुसूर था जुबाँ का
तुम मुझे मुआफ करदो , मेरा दिल
बुरा नहीं है |
अज्ञात
रहा यूँ ही नामुकम्मल मेरे इश्क
का फसाना
कभी मुझको नींद आई , कभी सो गया
जमाना
अज्ञात
शाखे गुल झूम के गुलजार में
सीधी जो हुई
खिंच गया आँख में नक्शा तेरी
अंगड़ाई का |
मुशीर झ्न्झान्वी
सिरहाने मीर के आहिस्ता बोलो
अभी टुक रोते रोते सो गया है |
( मीर तकी मीर की कब्र पर अंकित )
छत के
दिये कब के बुझ गये होते
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है |
वसीम बरेलवी
बात जाने पहुंचती कहाँ से कहाँ
तुमने अच्छा किया मेरे लब सी दिये
जुबैर अमरोहवी