इस कुदरत के भी क्या है कहने
पहने है इसने अनमोल गहने
बादल की चादरें ओढ़े हैं वादियां
मानो प्रकृति की छत हो कोई
धरती सुनहरी,सोंधी-सोंधी
खुशबू है इसकी
तन पर हरियाली है इसके छाए हुए
खनकते गहने की धुन है नदियों का
छल-छल कल-कल कर बहना
झरने भी झर-झर बहते अनोखा गीत सुनाते हैं
तरह-तरह के पेड़ पौधों से होता प्रकृति का सिंगार है
मानव जाति से प्रकृति और प्रकृति
से मानव जाति का होता उद्धार है।