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कुँवारी दुल्हन

30 मार्च 2022

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पंचमपुर गाँव में ब्राम्हण दीनानाथ का परिवार रहता था परिवार में चार सदस्य थे पंडित जी उनकी पत्नी शान्ती बड़ा लड़का मोहन छोटा लड़का रामू पंडित जी बहुत ही सरल स्वभाव के थे वो दिन भर खेत मे कड़ी मेहनत करते थे और खेत में काम करने के पश्चात जो समय मिलता उस समय में वो सहेर काम करने जाते थे जिससे पंडित जी को अच्छे खासे पैसे मिल जाते थे। पंडित जी का बड़ा लड़का मोहन सहेर मास्टर की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात गाँव के ही विद्यालय में बच्चों को पढ़ाता था मोहन की अब उम्र पच्चीस साल की हो गयी थी मोहन अपनी उम्र के हिसाब से बहुत कठिन मेहनत करता था रामू अभी छोटा ही था वह गाँव के विद्यालय में अभी अपने बड़े भाई के साथ ही पढ़ने जाता था परिवार बहुत खुशहाल था।
एक दिन सहेर से विद्वान शास्त्री ब्रजमोहन जी के यहाँ से मोहन के लिए रिस्ता आया मोहन घर पे नहीं था दीनानाथ भी खेत पे काम करने गए थे घर में रामू की माँ ने मेहमानों से परिचय पूछते हुए उन्हें घर में बिठाया उनकी खातिरदारी की कुछ ही देर में दीनानाथ जी भी खेत से घर आ गए अब दोनों लोग बातें करते करते खेत देखने निकल गए शास्त्री जी दीनानाथ जी की मेहनत देखकर बहुत प्रसन्न हुए।विद्यालय की छुट्टी का समय हो रहा था दोनों लोग घर वापस लौटने लगे तब तक मोहन विद्यालय से घर आ चुका था शास्त्री जी मोहन को देखते ही पसन्द कर लिया सब लोग बहुत खुश थे सबने मीठे बतासे खा कर मुँह मीठा किया।अगले ही महीने मोहन का विवाह शास्त्री ब्रजमोहन की लड़की कोमल के साथ हो गया सब अच्छे खासे रह रहे थे विवाह के कुछ महीने ही बीते थे कि पति पत्नी में लड़ाई झगड़ा होने लगा बात ये थी कि कोमल सहेर से थी उसे गाँव में चूल्हे पे खाना बनाने में दिक्कत होती थी जिससे खाना भी रामू की माँ शान्ती को ही बनाना पड़ता था आये दिन का ये लड़ाई झगड़े से पड़ोसी भी परेशान होने लगे रामू को ये सब पसन्द नहीं था रामू गाँव से पढाई पूरी करनें के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करनें के लिए सहेर चला गया और वहीं रहनें लगा रामू अब बीस साल का हो गया था। घर में रोज-रोज के लड़ाई झगड़े से परेशान होकर दीनानाथ जी भी बीमार रहनें लगे पंडित जी बीमारी उनके परम मित्र प्यारेलाल को पता चली वो उन्हें देखने के लिए अगले ही दिन बैलगाड़ी से पंचमपुर के लिए निकल पड़े प्यारेलाल अपनी इकलौती बेटी संध्या का विवाह बचपन से ही रामू के साथ करना चाहते थे बस दोनों के बड़े होनें का इंतजार था।प्यारेलाल अपने मित्र की ये हालत देखकर बहुत दुःखी हुए लेकिन कई सालों के बाद दोनों मित्र एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुए बातों-बातों में ही प्यारेलाल ने अपने मन की बात कह दी दीनानाथ जी आज मैं बहुत आस लेकर आया हूँ ये बचपन की दोस्ती आज रिश्तेदारी में बदल डालों पंडित जी बोले कुछ समझा नहीं प्यारे साफ साफ बताओ बात क्या है प्यारेलाल बहुत ही सरल वाणी में बोले मित्र मैं अपनी बेटी संध्या का विवाह आपके छोटे बेटे रामू के साथ करना चाहता हूँ पंडित जी बोले प्यारे तुझे तो सब हाल पता है मैनें ही अपने बड़े बेटे मोहन की सादी की जिससे मेरे घर में रोज विवाद होता है सारा घर परिवार बिखर गया मेरा फर्ज है कि मैं छोटे बेटे का भी विवाह कर दूँ लेकिन ये सादी मैं रामू के हाँ के बिना नहीं करूंगा प्यारेलाल को बात मंजूर थी अगले ही दिन दीनानाथ जी ने रामू को चिट्ठी लिखी औऱ घर वापस आने को कहा रामू को पिता जी की चिट्ठी मिलते ही विद्यालय से छुट्टी लेकर घर के लिए निकल पड़ा रामू के घर आते ही दीनानाथ ने प्यारेलाल को बुलावा भेजा प्यारेलाल अगले ही दिन दीनानाथ जी के घर पर आ गए रामू ने प्यारेलाल के पैर छुए और बैठ गया माँ ने रामू को उसके विवाह के बारे में बताया रामू ने तुरंत ही मना कर दिया और वहाँ से चला गया दीनानाथ जी ने कहा रामू अपने विवाह का फैसला खुद करेगा मैंने एक किया तो पछतावा मुझे हो रहा है दीनानाथ जी हाथ जोड़कर छमा माँगते हुए मित्र जोड़ी जहाँ होगी विवाह वहीं होगा होगा वहीं जो राम रचि राखा प्यारे समझ गया और घर चला गया। दिन गुजर शाम हो गयी जब रामू के पिता उनकी माता जी एक पास लेटे थे तो पिता ने पूछा बेटे विवाह से क्यों इनकार कर दिया क्या तुझे विवाह नहीं करना रामू ने कहा पिता जी विवाह तो सबको करना है जो दुनिया में पैदा हुआ लेकिन बिना जाने पहचाने लड़की का स्वभाव कैसा है मैं सादी नहीं करूँगा कहीं वो भी बड़ी भाभी के जैसी होगी तो मैं क्या करूँगा तो पंडित जी हँसते हुए कहा तो कहाँ ढूंढेगा ऐसी लड़की रामू ने कहा मुझे तलाश है जिस दिन वो लड़की मिल जाएगी मैं उसी से विवाह करूँगा दीनानाथ और शान्ती रामू की बात से सहमत थे छुट्टियाँ बिताने बाद रामू वापस सहेर चला गया।
रामू को बचपन से कवितायें लिखने का बहुत शौक था वो अक्सर किसी न किसी पे कविताएँ बनाया करता था रामू को रामू को सहेर में रहते अभी दो साल हुए थे तभी नए छात्रो दाखिल सुरु हो गया रामू के ही कक्षा में एक नई लड़की ने दाखिल लिया कक्षायें अब निरन्तर चलने लगी रामू उस लड़की को रोज चोरी नजर से देख रहा था शायद वो उसे पसन्द आने लगी थी एक दिन रामू अपने कमरे में सो रहा होता है और सपने में वो लड़की रामू का हाथ पकड़ती है तभी रामू की अचानक से आँख खुल जाती है रामू परेशान हो जाता है वो तुरंत ही कॉपी कलम लेता है वो उस लड़की पे कविता लिखता है अगले दिन जब विद्यालय जाता है दिन भर कुछ नहीं बोलता छुट्टी होने के वक्त उस कविता को उस लड़की के बैग में डाल देता है सब अपने अपने घर चले जाते अगले दिन जब रामू अपनी कक्षा में जाता है तो देखता है कि वो लड़की रामू की सीट पे बैठी है रामू दूसरी सीट पे बिठा जाता है रामू को दूसरी सीट पे बैठा देख कर वो लड़की भी रामू के सीट पे बैठ जाती है अभी तक दोनों एक दूसरे का नाम नहीं जानते है लड़की नाम पूछती है रामू अपना नाम बताता है फिर रामू लड़की से नाम पूछता है लड़की अपना नाम पूजा पूजा बताती है रामू कॉपी निकाल कर पढने लगता है लड़की बोलती है रामू कविता अच्छी लिखते हो रामू खुस होता है लड़की हँसती है और कहती है मुझपे क्यों लिखी रामू अपने सपने वाली बात बताता है दोनों खूब हसते है अब दोनों अच्छे दोस्त हो जाते है साथ ही पढ़ते साथ ही घूमने जाते थे ये शिलसिला कुछ महीने चला अब रामू को पूजा से ज्यादा लगाव होने लगा था उसकी अच्छी बुरी सारी आदतें जान चुका था शायद वो यही लड़की थी जिसकी रामू को तलास थी।

एक दिन विद्यालय से छुट्टी होने के बाद रामू और पूजा साथ-साथ जा रहे थे तभ रामू अपने दिल की बात कह देता है पूजा सरमा जाती है और कहती है मेरे घर आना और पापा से बात करना रामू गदगद हो जाता है रामू गर्मियों की छुट्टी में गाँव आता है और अपने पिता से सारी बात बताता है दीनानाथ जी भी खुस होते है अगले महीने अच्छा दिन देखकर अपने बेटे के साथ सहेर पूजा के घर पहुँच जाते है पूजा रामू और उसके पिता जी को देखकर बहुत खुश होती है पूजा के पिता गोविंद जी भोजन कर रहे थे भोजन करके आये रामू ने पूजा के पिता जी के पैर छुए पूजा अपने पिता से रामू के बारे में बता चुकी थी दीनानाथ से मिलकर गोविंद बहुत खुश हुए और बोले रामू और पूजा एक दूसरे को बहुत चाहते है एक दूसरे के साथ ही रहकर खुस रहते है मैं चाहता हूँ कि इन दोनों की पढ़ाई पूरी होने के बाद जल्द से जल्द सादी कर दी जाए दीनानाथ गोविंद के गले से लग जाता है।
एक साल तक रामू और पूजा साथ साथ पढ़ाई करते है और पढ़ाई पूरी होने पर गोविंद अपनी लड़की पूजा की सादी रामू के साथ धूमधाम से करता है रामू अब अपनी प्रेमिका पूजा से विवाह करके गाँव चला आता है गाँव में अब रामू अपने पत्नी पूजा और अपने परिवार के साथ प्रेम से रहता है पूरा परिवार अब खुस है रामू को जिसकी तलाश थी वो तलाश अब खत्म हुई।

 

 

 

 

 

 

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कुँवारी दुल्हन
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कहानी में भोला और गंगा के प्यार को दिखाया गया है भोला की सर्प काटने से मृत्यु हो जाती है इस तरह गंगा भोला के नाम का सिन्दूर भरके उसकी याद में दिन गुजरने लगती है

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