कई लोग अज्ञानता व
मान-गुमान वश प्रश्न करते हैं कि क्या भगवान का अस्तित्व है ? यदि है तो भगवान को किसने बनाया ? भगवान हैं तो कहाँ
हैं ? भगवान हैं तो दिखते क्यों नहीं ? दिखते नहीं इसका मतलब तो यही होना चाहिए कि भगवान हैं ही नहीं । आदि ।
पिछले लेखों में हम
बता चुके है कि हर चीज को बनाने वाला कोई न कोई होता है, यह सत्य है । लेकिन शुरुआत या आरम्भ का मतलब यही है कि जिसके पहले कोई
न हो । ईश्वर शुरुआत है । आरम्भ है । इकाई है । अतः ईश्वर को बनाने वाला कोई नहीं
है । जैसे संख्याओं में एक इकाई है । एक का कोई सक्सेसर यानी पूर्ववर्ती नहीं होता
। इसी तरह ईश्वर का भी कोई पूर्ववर्ती नहीं है । यह तर्क गणतीय है । वैज्ञानिक है
।
जो लोग सामान्य गणित
की भी उचित जानकारी रखते हैं । वे आसानी से इस तथ्य को समझ सकते हैं कि केवल इकाई
से सारी सख्यायें उत्पन्न हो जाती हैं । इकाई सारी संख्याओं का जनक है । और इकाई
का कोई जनक नहीं है । शुरुआत का क्या कोई जनक हो सकता है ?
रही बात ईश्वर के न दिखने की तो इस आधार पर यह
कहना कि ईश्वर नहीं है, मूर्खता है । क्योंकि आज का विज्ञान भी इस बात का
समर्थन करता है कि न दिखने वाली चीजों का भी अस्तित्व होता है । जैसे ब्लैक मैटर
नहीं दिखता फिर भी ब्लैक मैटर,
श्वेत मैटर से भी
अधिक है । परमाणु के मूल कण नहीं दिखते केवल उनका प्रभाव दिखता है । फिर भी उनका
अस्तित्व है । आदि ।
रही भगवान के रहने
की बात तो भगवान हर जगह रहते हैं । उनके रहने का स्थान सीमित नहीं है । आपके अंदर, हमारे अंदर यानी सबके अंदर भगवान हैं । इतना ही नहीं भगवान कण-कण में
हैं । क्या यह तथ्य वैज्ञानिक है ?
हाँ बिल्कुल । यह
तथ्य भी वैज्ञानिक है । इतना ही नहीं सनातन धर्म की अधिकांश बाते वैज्ञानिक ही हैं
। अपना सनातन धर्म ही वैज्ञानिक है । विज्ञान है । क्योंकि इसके तथ्यों को विज्ञान
अपने में समेटे हुए है । सच कहा जाय तो इसके सिद्धांतों पर ही आज का विज्ञान
आधारित है । बस समझने की जरूरत है ।
दिक्कत केवल यह है कि जो लोग उच्च गणित और उच्च
विज्ञान जानते हैं, उन्हें भारतीय सदग्रंथों का या तो ज्ञान ही नहीं
है अथवा उचित ज्ञान नहीं है । बस थोड़ा-बहुत ऊपरी ज्ञान है । इसी तरह जो लोग
भारतीय सदग्रंथों यानी सनातन धर्म के सदग्रंथों का ज्ञान रखते हैं, उन्हें उच्च गणित और उच्च विज्ञान का या तो ज्ञान ही नहीं है अथवा
उचित ज्ञान नहीं है ।
हमारे संत, भक्त और सदग्रन्थ
कहते हैं कि भगवान कण-कण में वास करते हैं । हम जो देखते हैं और जो नहीं भी देखते
हैं, उन सबमें भगवान बसते हैं । भगवान के निर्गुण और
सगुण दो स्वरूप भी कहे गए हैं । जिनमें कोई भेद नहीं है । जो सगुण है वही निर्गुण
है । और जो निर्गुण है वही सगुण है ।
निर्गुण भगवान निराकार हैं । यानी उनका कोई आकार
नहीं है । कोई आकृति नहीं है । रूप नहीं है । हाथ नहीं है । फिर भी सब कुछ करने
में समर्थ हैं । पैर नहीं है फिर भी चलते हैं ।
मुँख नहीं है । फिर
भी बोलते हैं और सभी रसों का आनंद लेते हैं । आदि ।
हम यहाँ यह बताना चाहते हैं कि अज्ञान व अभिमान
बस इन तथ्यों को काल्पनिक नहीं मानना चाहिए । और न ही गलत समझना अथवा कहना चाहिए ।
उच्च विज्ञान भी ऐसे तथ्यों का समर्थन करता है ।
जब हम माइक्रो लेवल पर पहुँचते हैं तो इन तथ्यों का विज्ञान में भी समावेश मिलता
है । इन्हें यदि निकाल दिया जाय तो बहुत कुछ समाप्त हो जाए । माइक्रो फिजिक्स यानी
क्वांटम मेकेनिक्स ऐसे ही तथ्यों व सिद्धांतों पर आधारित है ।
परमाणु से अणु बनता है और अणु से पदार्थ । और
परमाणु छोटे-छोटे अन्य कणों से मिलकर बना होता है । जिसमें से एक इलेक्ट्रान
कहलाता है । इलेक्ट्रोन को परमाणु की इकाई भी कह सकते हैं
। इलेक्ट्रोन क्या है ? इसे ठीक से अब तक भी नहीं समझा जा सका है । न ही
अब तक इसे देखा जा सका है । हाँ इसका प्रभाव जरूर दिखता है । लेकिन यह नहीं दिखता
। इसके जो लक्षण क्वांटम फिजिक्स बताती है । वे निम्न हैं-
इलेक्ट्रोन का कोई आकार नहीं है । इसकी कोई आकृति
नहीं है । इसका कोई रूप नहीं है । फिर भी यह चलता है और बहुत कुछ करने में समर्थ
है । इलेक्ट्रोन कण-कण में है । हम में है, आप में है । जो कुछ
हम देखते हैं और जो नहीं देखते हैं,
उन सबमें है ।
इस प्रकार विज्ञान
कहता और मानता है कि कण-कण में इलेक्ट्रोन । और भारतीय सदग्रन्थ कहते हैं कि कण-कण
में भगवान । तो इसमें क्या गलत है ?
अतः अज्ञान व मान-गुमान वश कोई मिथ्या प्रलाप
नहीं करना चाहिए । बिना कोई भ्रम पाले ईश्वर और ईश्वर की सत्ता में विश्वास करना
चाहिए । और कण-कण में रमने वाले भगवान की लीला कथाओं को पढ़ते और सुनते हुए उनका
ध्यान करना चाहिए । और सत्कर्म करते हुए मानव जीवन को सार्थक करना चाहिए ।