(चाणक्य का लव-फ़ेलियर के आगे)
चाणक्य ने विचारमग्न होकर टहलना आरम्भ कर दिया। थोड़ी देर बाद महागुप्तचर वक्रदृष्टि लौटा तो उसके हाथ में एक गिलास पानी था।
एक गिलास पानी देखकर चाणक्य ने कुपित स्वर में कहा- 'महागुप्तचर, धीरे-धीरे आप कामचोर क्या, महाकामचोर होते जा रहे हैं। एक घड़ा पानी माँगा तो एक गिलास पानी लेकर आए हैं!'
महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने कहा- 'क्षमा करें, महामहिम। मौर्य देश की 'जल बचाओ योजना' के अन्तर्गत एक गिलास पानी लेकर आया हूँ। मुँह धुलने के लिए एक गिलास पानी ही पर्याप्त है।'
चाणक्य ने कुपित स्वर में कहा- 'एक चम्मच पानी लेकर आते। सिर्फ़ आँख धुल लेता!'
महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने अपनी जेब से चम्मच निकालकर चाणक्य को देते हुए कहा- 'लीजिए, महामहिम। आँख धुलने के बाद बाकी जो पानी बचेगा, मैं पी लूँगा!'
चाणक्य ने चम्मच फेंकते हुए बिगड़कर कहा- 'आपकी मति मारी गई है, महागुप्तचर। एक चम्मच या एक गिलास पानी इस्तेमाल करने से सीन में जान नहीं आएगी। एक घड़ा पानी होता तो चुल्लू से पानी निकालकर मुँह पर छींटा मारकर ठीक उसी प्रकार अपने आँसुअों को छिपाने का प्रयास करता जैसे सागर फ़िल्म में कमल हासन ने किया था। चौड़े मुँह वाला घड़ा इसीलिए मँगवाया था जिससे घड़े में हाथ डालकर चुल्लू से पानी निकालने में कोई परेशानी न हो।'
महागुप्तचर ने कुछ विचार करते हुए कहा- 'आपकी बात तो ठीक लगती है, महामहिम। किन्तु एक सन्देह अभी-अभी मेरे दिमाग़ में आया है। आप मुँह धुलकर अपने आँसू छिपाना किससे चाहते हैं? सागर फ़िल्म मैंने भी देखी है। मुँह धुलने वाले सीन में कहानी की हीरोइन डिम्पल मौजूद थी और कमल हासन मुँह धुलकर अपना आँसू डिम्पल से छिपा रहा था। यहाँ पर अजूबी कहाँ है जो आप अपना मुँह धुलकर अपने आँसू अजूबी से छिपाएँगे?'
चाणक्य ने महागुप्तचर वक्रदृष्टि की प्रसंशा करते हुए कहा- 'वाह-वाह, पहली बार आपने अक़्लमन्दी की बात की है। मुँह धुलने वाला सीन रद्द किया जाता है। अब हम यह सीन तब करेंगे जब अजूबी महामंत्री मधुबाला के भेष में मौर्य देश में होगी।'
महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने कहा- 'क्षमा करें, महामहिम। लगता है- लव-फ़ेलियर होने के कारण आपके दिमाग़ का सर्वर स्लो काम करने लगा है। मेरी समझ में तो आपको यह सीन करने की ज़रूरत अभी नहीं है, क्योंकि अजूबी ने अभी आपको फाइनल टाटा नहीं दिखाया है!'
चाणक्य की प्रश्नवाचक दृष्टि महागुप्तचर वक्रदृष्टि पर केन्द्रित हो गई।
महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने समझाया- "अँग्रेज़ लंगूर के लिखे उद्धरण के अनुसार अजूबी का कहना है- 'आत्मविश्वास छूटा, मुश्किल है मनाना। भरोसा टूटा, अब तेल नहीं लगाना।' इसका मतलब सिर्फ़ इतना है- आत्मविश्वास टूट जाने के कारण अजूबी अब आपको मनाने के लिए तेल नहीं लगाएँगी।"
चाणक्य ने कहा- 'ठीक है- अब हम अजूबी को मनाएँगे।'
महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने कहा- 'मनाएँगे कैसे? अजूबी बहुत दिनों से मौर्य देश में नहीं आ रही हैं।'
चाणक्य ने कहा- 'मौर्य देश में मनाने पर अजूबी नहीं मानेगी। इसके लिए हमें स्वाहा की राजधानी त्रिपल स्मार्ट नगर जाना होगा।'
महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने चाणक्य को सचेत करते हुए कहा- 'आपके पास स्वाहा का विशिष्ट वीज़ा नहीं है।'
चाणक्य ने कहा- 'विशिष्ट वीज़ा हो या न हो। जाना तो पड़ेगा ही। वरना आजकल लाइफ़टाइम वारण्टी के साथ मार्केट में प्यार मिलता कहाँ है? यह तो सिर्फ़ अजूबी है जो अपने प्यार को लाइफ़टाइम वारण्टी के साथ दे रही है। नहीं तो आजकल प्यार में एक घण्टे की वारण्टी देने को कोई तैयार नहीं होता। देर की तो लाइफ़टाइम वारण्टी वाला खरा प्यार हाथ से निकल जाएगा।'
महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने कहा- 'आप ठीक कहते हैं, महामहिम। अगर लोगों को लाइफ़टाइम वारण्टी वाले प्यार के बारे में पता चल गया तो लेने के लिए जबरदस्त मारकाट मच जाएगी। मगर बिना विशिष्ट वीज़ा के आपका स्वाहा में प्रवेश करना अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा।'
चाणक्य ने कहा- 'इतना रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। अगले महीने स्वाहा राष्ट्र के गठन का वार्षिकोत्सव बड़े धूम-धाम से मनाया जाएगा जिसमें सभी देशों के राजा-महाराजा भाग ले रहे हैं। ऐसे समय में बहुत भीड़ होगी। भीड़-भाड़ का लाभ उठाकर बिना विशिष्ट वीज़ा के स्वाहा में प्रवेश करना कोई बड़ी बात नहीं है।'
महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने पूछा- 'स्वाहा वार्षिकोत्सव के अवसर पर आप अपने बधाई संदेश में अजूबी से कहेंगे क्या?'
चाणक्य ने कहा- 'अभी तो पूरा एक सप्ताह बाकी है। तब तक कुछ न कुछ सोच ही लेंगे। जाइए, आप भी कुछ सोचिए।'
महागुप्तचर वक्रदृष्टि चाणक्य की जयजयकार करता हुआ वहाँ से चला गया।