सुबह से ही वह कई दफ्तरों के चक्कर काटकर थक चूका था . विचारों की उधेड़बुन में वह रेलवे स्टेशन केप्लेट्फॉर्म पर चलते चलते काफ़ी दूर निकल गया . आउटर ऍक दरख्त की छॉव में बैठकर उसने सिगरेट सुलगा ली .सिगरेट का क्षण क्षण घटता आकार उसे ज़िंदगी के मानींद लगा . अचानक उसकी
आँखों में चमक आ गई .उसने सिगरेट बुझा दी और चल पड़ा उस दिशा में जहाँ भीड़ भाड़ थी .अब तक उसने अपने आप को इस कार्य के लिए तैयार कर लिया था .जन शताब्दी आने बाली थी .जैसे ही गाड़ी प्लेट्फॉर्म पर लगने लगी वह मुसाफिरो की भीड़ खो गया . थोड़ी ही देर में प्लेट्फॉर्म पर शोर मच गया ..........मेरी जेब कट गई .
वेणी शंकर पटेल ब्रज