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लघुकथा

19 सितम्बर 2015

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featured imageटूटा फूटा जर्जर घर, दुर्बल परंतु जुझारू प्रकृति वाला गृहस्‍वामी, अपर्याप्‍त साड़ी में किसी तरह अपने शरीर को ढंके हुए हडिडयों का ढांचा सी दिखाई देने वाली गृहस्‍वामिनी और आठ बच्‍चे । किसी तरह जीने की चाह में जिंदगी को घसीटते हुए। गृहस्‍वामी का जुझारूपन एवं गृहस्‍वामिनी का सहयोग रंग लाया । हालातों से जुझते हुए दोनों के द्वारा बच्‍चों को पालते, पोशते यथाशक्ति पढ़ाते-लिखाते समय गुजरता गया और हालात में परिवर्तन हुआ परंतु बहुत शनै: शनै:। इतनी धीमी गति के बावजूद दोनों कब बुढ़ापे की दुनिया में पहुंच गए पता न चला और न कभी दोनों के इस संबंध में सोचने का अवसर त‍क प्राप्‍त हुआ। जिस तरह भी हो, बच्‍चे कुछ पढ़े लिखे, कुछ को नौकरी मिली तो कुछ ने छोटा-मोटा व्‍यवसाय कर अपने आप को व्‍यवस्थित एवं स्‍थापित करने में सफलता प्राप्‍त की । सबने अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार अपने आशियाने बनाए और अपनी-अपनी दुनिया में रम गए। गृहस्‍वामी एवं गृहस्‍वामिनी को प्रारंभ से ही उनकी जिंदगी, बचपन में दादी मॉं द्वारा सुनाई गई ने चिड़ा और चिडि़या की कहानी जैसी ही लगती जिंदगी, परंतु दोनों अक्‍सर यह भी सोचा करते थे कि वे दोनों पक्षी नहीं इंसान हैं और इंसान की योनि को सर्वश्रेष्‍ठ माना गया है जो हाल अक्‍सर चिड़ा और चिडि़या का होता है उनका नहीं होगा। जिस समाज में वे जीते थे उसकी कुछ अपेक्षाएं थी उनसे और उसी के अनुरूप उनकी भी कुछ अपेक्षाएं थीं अपने परिंदों से। यूं कहें कि उन्‍हें अपनी परवरिश और मेहनत पर कुछ ज्‍यादा ही भरोसा था तो गलत न होगा। उनकी सोच और विश्‍वास उस दिन पूरी तरह से टूटे जब सबसे छोटा बच्‍चे ने भी एक दिन दोनों के पैर छूते हुए अच्‍छी जिंदगी जीने का आशीर्वाद लिया और चला गया।
विवेक राजोरिया

विवेक राजोरिया

ह्रदय स्पर्शी व आज के समयानुसार यथार्थ

19 सितम्बर 2015

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drvijendrapratapsingh4675
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हिंदी तथा ओडि़या के वचनः व्यतिरेकी विश्लेषण

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रामविलास शर्मा का भाषाविज्ञान विमर्श

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-ः संक्षिप्ति:-डाॅ. रामविलास शर्मा हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार, यशस्वी आलोचक और ख्यातिप्राप्त के भाषाविद् एवं मनीषी विद्वान रहे हैं। हिंदी साहित्य के अंतर्गत बहुत कम हिंदी साहित्यकार ऐसे हैं, जिन्होंने भाषा चिंतन तथा विशेष रूप से हिंदी भाषा चिंतन पर विचार किया है। उनका चिंतन बहुमुखी था। वे विश्व

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शरद सिंह के उपन्यासों में स्त्री सशक्तीकरण के स्वर

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बेड़नी की व्यथा

28 सितम्बर 2015
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बेड़नीबस में चढ़ते हीचिरपरिचित आदत के अनुसारकिसी महिला के बगल वाली खाली सीट को पाने की ललकआधुनिक कही जाने वाली नारी का सामीप्‍य पाने की चिरपरिचित मानसिकता मनोइच्‍छा पूर्ण होती नजर आई सुंदर, अतिसुंदर, आकर्षक, सेक्‍सी आधुनिक परिधानों एवं अन्‍य अवयवों सहित बैठी युवतीलार टपकने वाली थीबड़ी मुश्किल से

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