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लौट आओं सुधी

23 फरवरी 2022

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विकास लैपटॉप पर सुबह से ही लगा हुआ था। वैसे तो कहने को आज रविवार है, और रविवार मतलब एक उम्मीदो से भरा दिन.. एक यही तो दिन होता है जिसका विकास बेसब्री से इंतजार करता हैं .. एेसा दिन जिसमें वों अपने ज़िन्दगी के बिखरते से पलो को सहेजने की कोशिश करता है लेकिन हर बार ये कोशिश नाकाम हो जाती है.. और रविवार कब सोमवार बन जाता है उसे पता ही नहीं चलता।

आज भी वो आफिस के काम में उलझा हुआ था। सुबह से पांच कप चाय पी चुका था वो, सुधा से छठवी कप के लिए आग्रह करने ही वाला था कि..

"सुनिये आप को तो टाइम मिलने से रहा.. मैं जा रही हूँ बच्चो को लेकर मां के घर दो दिन में आ जाउंगी, उनकी हालत नाज़ुक है, बच्चों की भी छुट्टी हैं वो कही जा तो पाते नही और आप को अपने काम से फुर्सत नही.. तो मैं ही जा रही.. बच्चो को लेकर.. नाश्ता टेबल पर है.. खाना भी बना दिया हैं और कल आॅफिस के लिए कपड़े आलमारी मे रख दिये है.. कल सुबह का नाश्ता कार्न फ्लेक्स ले लीजियेगा.."

इतना कहकर सुधा बिना मेरे कुछ कहे ही कमरे से चली गयी..।

मैने भी बस बिना कुछ कहे गर्दन हिला दिया.. और लैपटॉप पर ही देखते हुए..बोला.. "ठीक है वहाँ पहुंचकर फोन करके बता देना". .।

खैर वों बच्चो को लेकर चली गईं । काफी देर तक काम करने के बाद जब भूख रूपी एहसास को उसने महसूस किया तो लैपटाप बन्द करके वो सीधे टेबल पर रखे नाश्ते के तरफ बढ़ गया.. नाश्ता करने के बाद वो उठा और एक सिगरेट निकाल कर खिड़की पर आ गया.. सिगरेट पीते - पीते घड़ी की तरफ नजर गयी तो दोपहर के दो बज चुके थे।

घर मे घड़ी की टिकटिक के अलावा विकास के कानो मे सुधा की आवाजे दौड़ रही थी..

"सुनिये आप से एक बात कहू आप हमेशा एेसे ही रहियेगा.. हँसते हुए आपका चेहरा देख लेती हूँ तो जैसे मेरा मन बहारो सा खिल जाता है.. ये जो आप छोटी छोटी बातों मे मुझे चिढ़ाते है. . तरह- तरह के मुंह बना के अठखेलियां करते हैं.. और झूठ बोलकर मुझे रिझाने की कोशिश करते हैं.. यही तो मेरा श्रृंगार है. . सच पूछो तो इन सब के बिना मै अधूरी हूँ.. और हाँ मुझे केवल और केवल आप का साथ..चाहिये जिसमें शिकवे हो तकरार हो रूठना हो मनाना हो और फिर बेशुमार प्यार हो.. "

बस यही तो मांगा था उसने जब वो नई - नई दुल्हन बन के मेरे जीवन में खुशिया लेकर आयी थी।

उसने तो कभी दूसरी औरतो की तरह मँहगे कपड़े, ज्वैलरी, होटलों में जाना ये सब मांगा ही नहीं..

उसने अपने लिए कभी कोई फरमाइश नही की ना पहले और ना आज जब हमारी शादी के दस साल बीत चुके हैं।

हां लेकिन इन दस सालो में बहुत कुछ बदल गया है.. वो अब मेरे पास कम बच्चो के साथ ज्यादा समय बिताती हैं.. वो जो मेरे आॅफिस से आने के बाद चहकते हुये चाय का प्याला लिये, अपनी मुस्कुराहट की खुश्बू से मेरा मन मोह लेती थी.. उसके दमकते चेहरे को देखकर मै भी अपनी थकान भूल जाता था. .

अब सब बदल गया.. वो अब चुप रहती है.. मेरे चेहरे की लकीरो को पढ़ लेती है शायद इसीलिए पहले की तरह.. चहकना, मुस्कुराना छोड़ दिया है उसने..

घंटो अपने पूरे दिन की दिनचर्या.. कहानियाँ सुनाने वाली वो सुधा अब खुद एक खामोश सी कहानी बन गई थी, जिसको समझने का ना तो मेरे पास टाइम था.. और ना ही उसने कभी अपनी खामोशी तोड़ने की कोशिश की..

हाँ कभी - कभी कुछ शिकायतें कर देती लेकिन अगले ही पल.. मेरे बिना किसी जवाब के सामान्य हो जाती उन शिकायतों का अस्तित्व मिट जाता जब मै अपने आफिस का वर्क लोड उसके सामने रो देता..

वो मोम की तरह.. पिघल जाती और उसकी सारी शिकायतें, ख्वाहिशे उसके लौ मे जल जाती।

मै सब समझते हुये भी...... पत्थर हो गया .. या मशीन कह सकता हूं मै, अपने आप को.."भावना शून्य"। अपनी छोटी सी आमदनी में.. घर चलाना दिन भर जिन्दगी की जरूरतों की गणित में उलझ के मै अब खुद एक गणित का सवाल बन गया हूं जिसे ना मै सुलझा पा रहा था ना मेरा परिवार..।

पिछले चार दिनों से सुधा मायके चलने के लिए कह रही थी, उसकी माँ बीमार थी पैरालाइस अटैक आया था.. उनकी हालत गंभीर है.. यही कहा था सुधा ने और मैने संडे को चलने के लिए कहा था उससे..

लेकिन सुबह से ही मंडे को होने वाले प्रेजेंटेशन की तैयारी में लगे होने के कारण मै भूल गया था कि आज सुधा को उसके मायके ले जाना है..

सुधा ने भी दोपहर तक इंतजार किया लेकिन जब उसने देखा कि मै टस से मस नही हो रहा हुँ.. यहां तक कि नाश्ता करने भी नही उठा तो वो समझ गई कि आज का दिन भी एेसे ही जायेगा और गुस्से में बच्चों को लेकर चली गई.. खैर वो चली गई मुझे इस बात का बुरा नही लगा , बिना कुछ कहे मेरे बिना चली गई.. हमेशा मेरे साथ ही हर जगह जाने वाली सुधा आज मेरे बिना चली गई..

यें बात विकास के मन में दीवार में कील की तरह गड़ रही थी.. वो चाह कर भी.. अपनी शिकायतें दूर नहीं कर पा रहा था .. उसे पता था सुधा सही है उसकी शिकायतें लाजिमी है फिर भी सब कुछ जानते हुए भी वो नासमझ बन कर रह जाता था.. उसका पुरुषत्व उसको अपनी गलतियों को मानने की इजाज़त नहीं देता था.. . कही सुधा और महिलाओं की तरह उसके ऊपर हावी ना हो जाए.. कही वो उसकी विफलताओं के उलाहने ना देने लगे.. और भी ना जाने क्या- क्या मन में चलता रहता था।

शादी के बाद जो भी सेविंग्स थी उसको उसने बिजनेस में लगा दिया.. और दुर्भाग्य से बिजनेस डूब गया, यही से विकास के जीवन में कठिनाईयों का दौर शुरू हो गया था.. हालांकि सुधा ने हर मुसीबत में उसका साथ दिया। उसने खुद भी नौकरी की जिस समय विकास ने खुद को अंधेरो में कैद कर लिया.. डिप्रेशन में चला गया था वो उस समय सुधा ने ही उसको सम्हाला.. एक सुधा ही थी जिसने उसके आत्मविश्वास को बनाये रखा..।

उसने दुबारा नौकरी करने की सोची.. बहुत भटकने के बाद उसको एक नयी कम्पनी मे जाॅब मिल गई.. इसी बीच सुधा प्रेग्नेंट हो गई.. उसको विकास ने जाॅब छोड़ने के लिए कह दिया.. खैर सुधा मान गई.. दोनो बहुत खुश थे.. उनकी जिन्दगी का सबसे अनमोल पल था जब सुधा ने दो प्यारे बच्चो को जन्म दिया.. रिया व रितिक.. रितिक थोड़ा कमजोर था उसको पैदा होते ही icu वेंटिलेटर मे महीनों रखना पड़ा था..

इधर विकास जो आर्थिक तंगी से जूझ रहा था.. Icu का इतना बड़ा खर्च उठाने को लेकर परेशान था.. उसने पिता जी से मदद मांगी उन्होंने भी इन्कार कर दिया.. वो पहले से ही नाराज थे उसके सुधा से शादी करने के फैसले से.. अब विकास बिल्कुल अकेला पड़ चुका था।

उसने सुधा से ये बात छिपा कर रखी थी.. वो सुधा ही थी जब उसके इस लाचारी को समझ सकती थी उस दिन जब icu के बाहर वो हाथ रख कर रो रहा था तो.. सुधा ने उसके सर पर हाथ फेरते हुये उसे गले से लगा कर सांत्वना दी थी..इसके पहले की विकास कुछ कहता.. वो सुधा मेरे सिर मे दर्द है. .. बाबू जी. . वो वो.. सुधा बीच में ही बोल पड़ी मुझे सब पता है.. आप चिन्ता मत करिये.. मां जी का फोन आया था मेरे पास उन्होंने बताया कि बाबू जी ने पैसे देने के लिए मना कर दिया है, कोई बात नहीं ये मेरे शादी के गहने है मेरे पापा ने दिये थे.. ये किस दिन काम आयेगे वैसे भी आप तो जानते ही हैं मुझे गहनों का शौक कहा.. मेरे बेटे की जिन्दगी से बढ़ कर कुछ नही है.. जाइये और तुरन्त उसका इलाज पूरा कराइये. .

रितिक का इलाज पूरा हुआ वो स्वस्थ हो गया.. विकास के जीवन में खुशियों का मेला सा लग गया था, रितिक और रिया के शरारतों से पूरा घर गुलजार रहता था ये सब देख कर विकास अपने सारे दुख भूल जाता था, इसी बीच घर से फोन आया माँ का था पिता जी को हार्ट अटैक आया था.. मां रो रही थी.. "बेटा जल्दी आओ पिता जी की कंडीशन ठीक नही है" मां सही से बोल नही पा रही थी. . विकास ने मां को सांत्वना देते हुए कहा ठीक है हम लोग आ रहे हैं.. तुम चिन्ता मत करो.. कह कर विकास ने फोन काट दिया.. विकास को उस पल पिता जी की बात याद आ गई जब रितिक के इलाज के लिए उसने उनसे पैसे मांगे थे... और उन्होने साफ़ इंकार कर दिया था.. वो क्रोध से भर गया उसने तुरन्त फोन मिलाया और मां से कहा, " बाबू जी को मेरी क्या जरूरत है, उनका पैसा तो है उनके पास कह दो इलाज करा ले" .. विकास की इन बातों को सुधा ने सुन लिया था.. उसने तुरन्त विकास से फोन छीन कर मां से कहा," मां जी आप बिल्कुल चिंता ना करे हम लोग तुरन्त निकल रहे हैं इतना कह कर सुधा ने फोन काट दिया। "

एक बार फिर से विकास ने सुधा को समझने की भूल की थीं.. सुधा ऐसी ही है वो हमेशा मेरे और मेरे परिवार के भले के बारे में ही सोचतीं थीं, उस परिवार के बारे में जिसने सुधा को कभी स्वीकार नहीं किया।

लेकिन उसको कोई गिला शिकवा नहीं था। वो तो बस मेरे प्यार के रंग में रंग के अपने को समर्पित करतीं जा रहीं थीं।

और मैं उसके समर्पण को अपनी विफलताओं के खोखलें होते विचारों से कुचलता जा रहा था।

सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहना चाहता था। इसी सोच में डूबे विकास के कानों में फोन की घंटी बजी.. सुधा रोयें जा रहीं थीं.. वो आवाक था क्या हुआ बोलोंगी कुछ,,,, विकास ने पूछा ,,,,, माँ नहीं रहीं,,, मेरे घर पहुचने से पहले ही,,,, सुधा चीख कर रोने लगी.. विकास के पास सांत्वना देने के लिए भी शब्द नहीं थे होंठ काप रहे थे। उसकी वजह से वो अंतिम सांस लेती अपनी मां से मिल भी नहीं पायीं ,,,,, ये सोंच ही रहा था कि सुधा की आवाज ने उसको अन्दर तक झकझोर दिया,,,, मैं कभी माफ नहीं करूंगी तुम्हे,, मेरी माँ मेरा इन्तज़ार करते करते चली गई हमेशा के लिए, सिर्फ तुम्हारी वजह से। वो मां बाप जिन्होंने मेरी हर ख्वाहिश पूरी की.. तुम्हारे साथ शादी के मेरे फैसले को अपनी रजामंदी दे दी जबकी तुम अपने पैरों पर खड़े भी नहीं थे.. तुम्हारे लिए मैने अपने माँ बाप को दुख दिया उनके ना चाहते हुये भी तुमसे शादी किया और तुमने,,, तुमने इन दस सालों में मुझे दुख के सिवा क्या दिया???

क्या कसूर था मेरा बोलो तुम्हें प्यार करना यही कसूर था ना...

लो अब मै मुक्त करती हूं तुम्हें.. रहो अपनी दुनिया में

मै अब नहीं रहूंगी तुम्हारे साथ मेरे बूढ़े पिता की मेरी बहुत ज़रूरत है मां के बाद मै उनको नही खोना चाहती,,, और हां मै जाँब करने जा रही हूं यही रह के, तुम्हारी जो मर्जी आये वो करो।

फोन कट गया.. विकास वही धम्म से जमीन पर बैठ अपने लिये ज़मीन ढूढ़ रहा था,, आज उसे एहसास हो रहा था जैसे वो सचमुच इन्सान है उसके खोखले हो चुके दिल में आज भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा था.. आज बरसों बाद वो ज़मीन पर था और उसका आसमां रो रहा था।

वो असहाय महसूस कर रहा था..सुधा की बातों से वो टूट गया.. था... वो सुधा से बहुत प्यार करता था बस उसने कभी उसे महसूस नहीं होने दिया.. सुधी तुम लौट आओ तुम मेरी जिंदगी मेरा आसमां हो तुम्हारे बिना मै कैसे रह सकता हूं..

विकास वही फूट - फूट के रोने लगता है.. उसके आँसू उसके प्यार की गवाही दे रहे थे.. वो प्यार वो भावनाए जिसमे शून्यता की परत जम गई थी आज पिघल - पिघल के घर के खाली दीवारों पर बिखर कर अपना प्रायश्चित कर रही थी।

कई महीने बीत गए सुधा का कोई फोन नहीं आया।

विकास ने आफिस जाना छोड़ दिया.. लगभग उसने घर से निकलना भी छोड़ दिया. दिन भर.. घर में अन्धेरे कमरे में बैठा.. कुछ ना कुछ बड़बड़ता रहता...

एक दिन सुधा जब अपने आफिस से निकल कर जा रही थी तो दो लोगों की बातें उसके कान में पड़ी उनमे से एक जो विकास का कलीग था.. उसके आफिस में इन्टरव्यू के लिए आया था.. कह रहा था.. "यार मैने तो छोड़ दिया वो कम्पनी बहुत ज्यादा वर्क लोड था कही मेरी पत्नी भी छोड़ के चली गई तो मै भी विकास की तरह डिप्रेशन में चला जाऊगां.. भईया परिवार पहलें है.. भले पैसा कम मिले"

दूसरे ने कहा " अच्छा वही विकास जो एक महीने से आफिस नही आ रहा है.. लेकिन वो तो बहुत ही मेहनती है.. कैसे डिप्रेशन में... "

" अरे अब वो आयेगा भी नही.. क्योंकि उसके मुहल्ले वाले बताते हैं कि वो अपना मानसिक संतुलन लगभग खो चुका है.. बस हर समय "लौट आओ सुधी कहता रहता है "

सुधा.. जो ये सब चुपचाप सुनती रहती है.. रोते हुए सीधे अपने घर भागती हैं अपने विकास के पास।

जैसे ही दरवाज़ा नाॅक करती हैं ,, विकास को सामने देख हैरान हो जातीं हैं.. क्या हालत हो गई थी उसकी आंखे धस गई थी.. दाढ़ी बढ़ गई थी, वो हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया था। वो सुधा को देखते ही चिल्लाने लगा.. सुधी तुम लौट आयीं.. मुझे पता था तुम मुझे माफ़ कर दोगी..

मुझे माफ़ कर दो.. तुम मुझे छोड़कर अब कभी मत जाना.. कह के चिंघाड़ मार कर बच्चे की तरह सुधा से लिपट कर रोने लगता है "

सुधा उसको अपने बाहों में भरकर लेती हैं। एक रोते बच्चे की तरह उसे चुप कराती हैं..

" मै तुम्हे कभी छोड़ के नही जाऊगी",,,,,, सुधा

" तुम मुझे माफ़ कर दोगी ना"..,,,, विकास

" मैने तुम्हे बहुत दुख दिया है ना",,, विकास

" नही तुम बहुत अच्छे हो.. तुम्हारा कोई दोष नहीं मै ही तुम्हे समझ नही पायीं....

मै भूल गई थी कि " प्यार करने से ज्यादा प्यार को समझने की ज़रूरत होती हैं",,,,, सुधा

I love you विकास.... I love you कहतें हुये वो उसके सर को अपने गोद में रख लेती है।

समाप्त

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