माँ बसुन्धरा को
नमन करें
दो फूल श्रधा के
अर्पण करें
न होने दें क्षरण
माँ का
सब मिलकर यह प्रण
करें।
कितना सुन्दर धरती
माँ का आँचल
पल रहा इसमें जग
सारा,
अपने मद के लिए
क्यों तू मानव
फिरता मारा-मारा
संवार नहीं सकते
इस आँचल को तो
विध्वंस भी तो ना
करें,
माँ बसुन्धरा को
नमन करें।
हिमगिरी शृंखलाओं
से निरंतर
बहती निर्मल जल
धारा,
सींच रहा इससे जड़
जीवन
उगता नित नयें
अंकुरों का संसार प्यारा,
यूँ ही सोम्यता
बनी रहे
सब मिल कर जतन
करें,
माँ बसुन्धरा को
नमन करें।
जल-जंगल पादप
लताएँ
जगाये हैं जीवन
ज्योति हमारी,
आज काट-काट कर
खंडित हो रहे
एक दिन पड़ेगी जीवन
पर भारी,
प्रदुषण के
बारूदों से
प्रकृति प्रवृति
को परवर्तित ना करें,
माँ बसुन्धरा को
नमन करें।
© सर्वाधिकार
सुरक्षित
बलबीर राणा
"अडिग"