जब नहीं होती है माँ,
तभी बहुत याद आती है माँ,
यूं तो हवा की तरह कब
साँसों में आती-जाती रहती थी?
कब पानी की तरह
अपनी ममता से
प्यास बुझाती रहती थी?
खाने की तरह कब हमारी
भूख मिटाती रहती थी?
कुछ पता ही नहीं चलता था,
उसका होना अपने वज़ूद से
इस कदर जुड़ा रहता था कि,
कभी अलगाव ही महसूस नहीं होता.
पर जब नहीं होती है माँ,
तभी बहुत याद आती है माँ...
आज नहीं होने पर
होता है महसूस कि माँ! तुम मेरे लिए चरागेजिन
थीं, जो मेरी ,
हर ज़रूरत को चुटकी में,
पूरा कर दिया कराती थीं
कब कैसे नींद न आने पर,
थपकियों से सुला दिया करतीं थीं|
सपनों को मेरे साकार कर
आकार दिया करती थीं,
सच ही माँ !
तुम चिरागेजिन हुआ करती थीं