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नूतन वर्षाभिनंदन

4 जनवरी 2016

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शनै:शनै अपनी गति से,

सरक गया यह साल भी।

खुशियाँ लाया कहीं तो,

दे गया कई त्रास भी।

         कितनों का खून बहा,

         कितनों के घर उजड़े।

             कितनों ने दर्द सहा,

         कितनों के बढे झगड़े।

अब आगत की इस दहलीज़ पर,

यह दो हज़ार सौलह खड़ा आकर।

लगा रहा गुहार शांति ओप्यार की,

चाह रहा है देना खुशियाँ संसार की।

         भूल कर पुरानी सभी पीड़ा,

         आओ उठाएँ अब नया बीड़ा,

         सम्माननीय है, यहाँ हर आगत,

         नव-वर्ष का करें हर्ष से स्वागत।

                         ----मंजु महिमा

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नववर्ष की हार्दिक शुभकमनाएँ एवं बधाइयाँ, आपका और हमारा साथ सदा यूं ही बना रहे !

2 जनवरी 2017

मंजु महिमा

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धन्यवाद एवं आभार...ओमजी और चंद्रेश जी आपको भी अनेक शुभकामनाएँ...

5 जनवरी 2016

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

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मंजु महिमा जी नव वर्ष की आप एवं आपके परिवार को बहुत सारी शुभकामनायें

5 जनवरी 2016

ओम प्रकाश शर्मा

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मंजु जी नव वर्ष पर अति सुन्दर रचना हेतु बधाई ! आप सभी को नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !

5 जनवरी 2016

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सभ्यता का चौराहा

4 जनवरी 2016
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क्या हम भटक नहीं गए हैं,इस सभ्यता के चौराहे पर आकर?जहाँ ‘न्यू इयर इव’ की तरह,मुखौटे लगाए लोग,एक दूसरे को जिन्हें पहचानते तक नहीं,‘हेप्पी न्यू इयर’ कह रहे हैं.  छुपाने का कर रहे हैं प्रयास,अपना दर्द, और फैला रहे हैं,भ्रांतियां केवल भ्रांतियां,खुशी की हर ओर,जो केवल एक दिन बस एक दिन छलक कर रह जाएंगी शर

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नववर्ष : जागरण वर्ष

4 जनवरी 2016
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मेरी माँ के पोर- पोर में पीर है,दर्द के दरिया में डूबी वह,नयनों में नीर है.मैंने जब कहा, ‘उससे,माँ! देख नव-वर्ष आया है,दस्तक दे रहा द्वार पर.’तो आहट स्वर में, वह बोली, ‘आने दे उसको भी...पूछ उससे क्या लेकर आया है?मेरे लिए फिर,पीड़ा तो नहीं लाया है?’वह बोला, ‘माँ! मैं आया हूँ लेकर,‘नवजागरण’ उठाउंगा तेर

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नूतन वर्षाभिनंदन

4 जनवरी 2016
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शनै:शनै अपनी गति से,सरक गया यह साल भी।खुशियाँ लाया कहीं तो,दे गया कई त्रास भी।        कितनों का खून बहा,        कितनों के घर उजड़े।             कितनों ने दर्द सहा,        कितनों के बढे झगड़े।अब आगत की इस दहलीज़ पर,यह दो हज़ार सौलह खड़ा आकर।लगा रहा गुहार शांति ओ’प्यारकी,चाह रहा है देना खुशियाँ संसार की।  

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समझे हम आज़ादी को

29 जनवरी 2016
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              आजादीनहीं सिखाती हमको,सभी जगहमनमानी करना.आज़ादीसिखाती है हमको,सदैवअनुशासन में रहना. आज़ादीनहीं सिखाती हमको,मार-पीट,ईर्ष्याऔर झगड़ना,आजादीसिखाती है हमको,प्यार,मोहब्बत,हिलमिलरहना. आज़ादीनहीं सिखाती हमको,जहाँ चाहेकूड़ा-करकट फैलाना.आजादीसिखाती है हमको,दूर करकूड़ा,स्वच्छता से रहना.    आज़ादीनहीं स

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माँ:मेरा चिरागेज़िन

10 मई 2016
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जब नहीं होती है माँ, तभी बहुत याद आती है माँ,यूं तो हवा की तरह कब साँसों में आती-जाती रहती थी?कब पानी की तरह अपनी ममता से प्यास बुझाती रहती थी?खाने की तरह कब हमारी भूख मिटाती रहती थी?कुछ पता ही नहीं चलता था,उसका होना अपने वज़ूद से इस कदर जुड़ा रहता था कि,कभी अलगाव ही महसूस नहीं होता.पर जब नहीं होती है

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