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नववर्ष : जागरण वर्ष

4 जनवरी 2016

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मेरी माँ के पोर- पोर में पीर है,

दर्द के दरिया में डूबी वह,

नयनों में नीर है.

मैंने जब कहा, ‘उससे,

माँ! देख नव-वर्ष आया है,

दस्तक दे रहा द्वार पर.’

तो आहट स्वर में,

वह बोली, ‘आने दे उसको भी...

पूछ उससे क्या लेकर आया है?

मेरे लिए फिर,

पीड़ा तो नहीं लाया है?’

वह बोला, ‘माँ! मैं आया हूँ लेकर,

‘नवजागरण’

उठाउंगा तेरे हर,

सोए नन्हे को,

जिसे तूने सुला दिया था,

आज़ादी की लोरियाँ,

सुना-सुनाकर.

आज मैं उन्हें सुनाऊँगा,

जागरण के गीत.

जगाऊँगा उन्हें,

जो सपनों में खो रहे हैं,

जो नींद में चल रहे हैं.

उन्हें,

जो चरस-अफ़ीम व स्वर्ण के

नशे में धुत्त हो रहे हैं,

जो नहीं जानते हैं कि

वे क्या कर रहे हैं..

उन्हें,

जो भ्रष्टाचार के दलदल में धँस रहे हैं,

जो अपने ही भाइयों से ही लड़ रहे हैं.

उन्हें,

जो जागकर भी सो रहे हैं,

जो अपनी पहचान खो रहे हैं.

माँ! मैं जागरण का वर्ष हूँ,

शंखनाद कर,

जगाऊंगा सबको,

विदेशियों की कुत्सिकता से,

बचाऊंगा तुझको.

हर लूँगा तेरी हर पीर,

पौंछ ले तू नैनों का नीर.’

आश्वस्त हो माँ,

बोली, ‘आच्छा है तू आगया,

समय पर जाग गया,

फूँक दे बेटा,

यह जागरण का शंख,

जन-जन जागे

मेरी यह पीर भागे,

मैं आहत हूँ,

पर, आश्वस्त हूँ अब

तू ले आएगा,

अवश्य यह क्रान्ति,

ओम् शांति, ओम् शांति.

-------------------------------मंजु महिमा.

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मंजु महिमा

मंजु महिमा

आभार सभी सुधिजनो का …्…्…्…्।्

5 जनवरी 2016

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

...पर, आश्वस्त हूँ अब तू ले आएगा, अवश्य यह क्रान्ति,ओम् शांति, ओम् शांति....उत्कृष्ट रचना !

5 जनवरी 2016

मदन पाण्डेय 'शिखर'

मदन पाण्डेय 'शिखर'

सुबह –सुबह जागा, माँ घर में नहीं मिली, सारा दिन ढूंढा – दरिया किनारे दिखी, बीते बर्ष की यादें, लहरों में छट- पटाती, नवीन वर्ष- रश्मि, उमड़-उमड़ कर आती, काश कि सपना, माँ का पूरा हो पता, आपका यह शंखनाद, अम्बर में गूंज जाता.... बधाई .... सुन्दर अभिव्यक्ति,

4 जनवरी 2016

4 जनवरी 2016

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सभ्यता का चौराहा

4 जनवरी 2016
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क्या हम भटक नहीं गए हैं,इस सभ्यता के चौराहे पर आकर?जहाँ ‘न्यू इयर इव’ की तरह,मुखौटे लगाए लोग,एक दूसरे को जिन्हें पहचानते तक नहीं,‘हेप्पी न्यू इयर’ कह रहे हैं.  छुपाने का कर रहे हैं प्रयास,अपना दर्द, और फैला रहे हैं,भ्रांतियां केवल भ्रांतियां,खुशी की हर ओर,जो केवल एक दिन बस एक दिन छलक कर रह जाएंगी शर

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नववर्ष : जागरण वर्ष

4 जनवरी 2016
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मेरी माँ के पोर- पोर में पीर है,दर्द के दरिया में डूबी वह,नयनों में नीर है.मैंने जब कहा, ‘उससे,माँ! देख नव-वर्ष आया है,दस्तक दे रहा द्वार पर.’तो आहट स्वर में, वह बोली, ‘आने दे उसको भी...पूछ उससे क्या लेकर आया है?मेरे लिए फिर,पीड़ा तो नहीं लाया है?’वह बोला, ‘माँ! मैं आया हूँ लेकर,‘नवजागरण’ उठाउंगा तेर

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नूतन वर्षाभिनंदन

4 जनवरी 2016
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शनै:शनै अपनी गति से,सरक गया यह साल भी।खुशियाँ लाया कहीं तो,दे गया कई त्रास भी।        कितनों का खून बहा,        कितनों के घर उजड़े।             कितनों ने दर्द सहा,        कितनों के बढे झगड़े।अब आगत की इस दहलीज़ पर,यह दो हज़ार सौलह खड़ा आकर।लगा रहा गुहार शांति ओ’प्यारकी,चाह रहा है देना खुशियाँ संसार की।  

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समझे हम आज़ादी को

29 जनवरी 2016
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              आजादीनहीं सिखाती हमको,सभी जगहमनमानी करना.आज़ादीसिखाती है हमको,सदैवअनुशासन में रहना. आज़ादीनहीं सिखाती हमको,मार-पीट,ईर्ष्याऔर झगड़ना,आजादीसिखाती है हमको,प्यार,मोहब्बत,हिलमिलरहना. आज़ादीनहीं सिखाती हमको,जहाँ चाहेकूड़ा-करकट फैलाना.आजादीसिखाती है हमको,दूर करकूड़ा,स्वच्छता से रहना.    आज़ादीनहीं स

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माँ:मेरा चिरागेज़िन

10 मई 2016
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जब नहीं होती है माँ, तभी बहुत याद आती है माँ,यूं तो हवा की तरह कब साँसों में आती-जाती रहती थी?कब पानी की तरह अपनी ममता से प्यास बुझाती रहती थी?खाने की तरह कब हमारी भूख मिटाती रहती थी?कुछ पता ही नहीं चलता था,उसका होना अपने वज़ूद से इस कदर जुड़ा रहता था कि,कभी अलगाव ही महसूस नहीं होता.पर जब नहीं होती है

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