मेरी माँ के पोर- पोर में पीर है,
दर्द के दरिया में डूबी वह,
नयनों में नीर है.
मैंने जब कहा, ‘उससे,
माँ! देख नव-वर्ष आया है,
दस्तक दे रहा द्वार पर.’
तो आहट स्वर में,
वह बोली, ‘आने दे उसको भी...
पूछ उससे क्या लेकर आया है?
मेरे लिए फिर,
पीड़ा तो नहीं लाया है?’
वह बोला, ‘माँ! मैं आया हूँ लेकर,
‘नवजागरण’
उठाउंगा तेरे हर,
सोए नन्हे को,
जिसे तूने सुला दिया था,
आज़ादी की लोरियाँ,
सुना-सुनाकर.
आज मैं उन्हें सुनाऊँगा,
जागरण के गीत.
जगाऊँगा उन्हें,
जो सपनों में खो रहे हैं,
जो नींद में चल रहे हैं.
उन्हें,
जो चरस-अफ़ीम व स्वर्ण के
नशे में धुत्त हो रहे हैं,
जो नहीं जानते हैं कि
वे क्या कर रहे हैं..
उन्हें,
जो भ्रष्टाचार के दलदल में धँस रहे हैं,
जो अपने ही भाइयों से ही लड़ रहे हैं.
उन्हें,
जो जागकर भी सो रहे हैं,
जो अपनी पहचान खो रहे हैं.
माँ! मैं जागरण का वर्ष हूँ,
शंखनाद कर,
जगाऊंगा सबको,
विदेशियों की कुत्सिकता से,
बचाऊंगा तुझको.
हर लूँगा तेरी हर पीर,
पौंछ ले तू नैनों का नीर.’
आश्वस्त हो माँ,
बोली, ‘आच्छा है तू आगया,
समय पर जाग गया,
फूँक दे बेटा,
यह जागरण का शंख,
जन-जन जागे
मेरी यह पीर भागे,
मैं आहत हूँ,
पर, आश्वस्त हूँ अब
तू ले आएगा,
अवश्य यह क्रान्ति,
ओम् शांति, ओम् शांति.
-------------------------------मंजु महिमा.