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ममता कालिया के बारे में

ममता कालिया एक प्रमुख भारतीय लेखिका हैं। वे कहानी, नाटक, उपन्यास, निबंध, कविता और पत्रकारिता अर्थात साहित्य की लगभग सभी विधाओं में हस्तक्षेप रखती हैं। हिन्दी कहानी के परिदृश्य पर उनकी उपस्थिति सातवें दशक से निरन्तर बनी हुई है। लगभग आधी सदी के काल खण्ड में उन्होंने 200 से अधिक कहानियों की रचना की है। वर्तमान में वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका "हिन्दी" की संपादिका हैं। ममता कालिया का जन्म 02 नवम्बर 1940 को वृन्दावन में हुआ। उनकी शिक्षा दिल्ली, मुंबई, पुणे, नागपुर और इन्दौर शहरों में हुई। उनके पिता स्व विद्याभूषण अग्रवाल पहले अध्यापन में और बाद में आकाशवाणी में कार्यरत रहे। वे हिंदी और अंग्रेजी साहित्य के विद्वान थे। आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं : ‘बेघर’, ‘नरक-दर-नरक’, ‘दौड़’, ‘दुक्खम सुक्खम’, ‘सपनों की होम डिलिवरी’, ‘कल्‍चर-वल्चर’ (उपन्यास); ‘छुटकारा’, ‘उसका यौवन’, ‘मुखौटा’, ‘जाँच अभी जारी है’, ‘सीट नम्बर छह’, ‘निर्मोही’, ‘प्रतिदिन’, ‘थोड़ा-सा प्रगतिशील’, ‘एक अदद औरत’, ‘बोलनेवाली औरत’, ‘पच्‍चीस साल की लड़की’, ‘ख़ुशक़िस्‍मत’, दो खंडों में अब तक की सम्पूर्ण कहानियाँ ‘ममता कालिया की कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘A Tribute to Papa and other Poems’, ‘Poems ’78’, ‘खाँटी घरेलू औरत’, ‘कितने प्रश्न करूँ’, ‘पचास कविताएँ’ (कविता-संग्रह); ‘आप न बदलेंगे’ (एकांकी-संग्रह); ‘कल परसों के बरसों’, ‘सफ़र में हमसफ़र’, ‘कितने शहरों में कितनी बार’, ‘अन्‍दाज़-ए-बयाँ उर्फ़ रवि कथा’ (संस्‍मरण); ‘भविष्‍य का स्‍त्री-विमर्श’, ‘स्‍त्री-विमर्श का यथार्थ’, ‘स्‍त्री-विमर्श के तेवर’ (स्त्री-विमर्श); ‘महिला लेखन के सौ वर्ष’ (सम्‍पादन)। आप ‘व्यास सम्मान’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, ‘यशपाल स्मृति सम्मान’, ‘महादेवी स्मृति पुरस्कार’, ‘राममनोहर लोहिया सम्मान’, ‘कमलेश्वर स्मृति सम्मान’,

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ममता कालिया की पुस्तकें

जीते जी इलाहाबाद

जीते जी इलाहाबाद

एक ऐसा शहर जहाँ बकौल ममता कालिया पैदल चलना किसी निरुपायता का पर्याय नहीं था। साहित्य की वह उर्वर भूमि जिसकी नमी किसी भी कलम को ऊर्जा से भर देती थी, जहाँ का सामाजिक ताना-बाना ही लेखकों-बुद्धिजीवियों से बना था। रचनात्मकता, प्रतिरोध और गंगा-जमुनी अपनेप

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199/-

जीते जी इलाहाबाद

जीते जी इलाहाबाद

एक ऐसा शहर जहाँ बकौल ममता कालिया पैदल चलना किसी निरुपायता का पर्याय नहीं था। साहित्य की वह उर्वर भूमि जिसकी नमी किसी भी कलम को ऊर्जा से भर देती थी, जहाँ का सामाजिक ताना-बाना ही लेखकों-बुद्धिजीवियों से बना था। रचनात्मकता, प्रतिरोध और गंगा-जमुनी अपनेप

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 अंदाज़-ए-बयां उर्फ़ रवि कथा

अंदाज़-ए-बयां उर्फ़ रवि कथा

बेमिसाल कथाकार जोड़ी रवीन्द्र कालिया और ममता कालिया की समूचे भारतीय कथा साहित्य में अमिट जगह है। साथ रहते और लिखते हुए भी दोनों एक.दूसरे से भिन्न गद्य और कहानियाँ लिखते रहे और हिन्दी कथा साहित्य को समृद्ध करते रहे। रवीन्द्र कालिया संस्मरण लेखन के उस्त

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 अंदाज़-ए-बयां उर्फ़ रवि कथा

अंदाज़-ए-बयां उर्फ़ रवि कथा

बेमिसाल कथाकार जोड़ी रवीन्द्र कालिया और ममता कालिया की समूचे भारतीय कथा साहित्य में अमिट जगह है। साथ रहते और लिखते हुए भी दोनों एक.दूसरे से भिन्न गद्य और कहानियाँ लिखते रहे और हिन्दी कथा साहित्य को समृद्ध करते रहे। रवीन्द्र कालिया संस्मरण लेखन के उस्त

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दौड़

दौड़

‘दौड़’ को लघु उपन्यास कहें या लंबी कहानी , इसका रचनात्मक मूल्य किसी भी खांचे में रख भर देने से कतई कम नहीं हो जाता । दरअसल यह रचना उन कृतियों की श्रेणी में आती है जो बार-बार शास्त्रीय या कहें कि तात्विक किस्म की आलोचनात्मक प्रणालियों का सार्थक अतिक्र

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दौड़

‘दौड़’ को लघु उपन्यास कहें या लंबी कहानी , इसका रचनात्मक मूल्य किसी भी खांचे में रख भर देने से कतई कम नहीं हो जाता । दरअसल यह रचना उन कृतियों की श्रेणी में आती है जो बार-बार शास्त्रीय या कहें कि तात्विक किस्म की आलोचनात्मक प्रणालियों का सार्थक अतिक्र

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नरक दर नरक

नरक दर नरक

उपन्यास की भाषा संक्रमण काल के उफनते-खलबलाते जीवन की संवेदनाओं की अभिव्यक्ति के अनुरूप सरल-ओजस्वी लगी। विशेषकर उषा या माँ की सामाजिकता और आवरणरहित स्वाभाविकता। कथानक और उसके अनुषंग मर्मस्पर्श के साथ नए जीवन-संतुलन की चेतना को भी कुरेदते हैं। 'नरक दर

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नरक दर नरक

नरक दर नरक

उपन्यास की भाषा संक्रमण काल के उफनते-खलबलाते जीवन की संवेदनाओं की अभिव्यक्ति के अनुरूप सरल-ओजस्वी लगी। विशेषकर उषा या माँ की सामाजिकता और आवरणरहित स्वाभाविकता। कथानक और उसके अनुषंग मर्मस्पर्श के साथ नए जीवन-संतुलन की चेतना को भी कुरेदते हैं। 'नरक दर

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 बेघर

बेघर

‘बेघर’ ममता कालिया का पहला उपन्यास और उनकी दूसरी पुस्तक है। यह कृति अपनी ताजगी , तेवर और ताप से एक बारगी प्रबुद्ध पाठकों और आलोचकों का ध्यान खींचती है। इस पुस्तक के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, पेपर बैक संक्षिप्त संस्करण भी । हिन्दी उपन्यास

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‘बेघर’ ममता कालिया का पहला उपन्यास और उनकी दूसरी पुस्तक है। यह कृति अपनी ताजगी , तेवर और ताप से एक बारगी प्रबुद्ध पाठकों और आलोचकों का ध्यान खींचती है। इस पुस्तक के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, पेपर बैक संक्षिप्त संस्करण भी । हिन्दी उपन्यास

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खाँटी घरेलू औरत

खाँटी घरेलू औरत

एक लेखक का रचाव और सृजन-माटी जिन तत्वों से बनती है उनमें गद्य, पद्य और नाट्य की समवेत सम्भावनायें छुपी रहती हैं। ममता कालिया ने अपनी रचना-यात्रा का आरंभ कविता से ही किया था। इन वर्षों में वे कथाजगत में होने 56 के बावजूद कविता से अनुपस्थित नहीं रही है

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खाँटी घरेलू औरत

खाँटी घरेलू औरत

एक लेखक का रचाव और सृजन-माटी जिन तत्वों से बनती है उनमें गद्य, पद्य और नाट्य की समवेत सम्भावनायें छुपी रहती हैं। ममता कालिया ने अपनी रचना-यात्रा का आरंभ कविता से ही किया था। इन वर्षों में वे कथाजगत में होने 56 के बावजूद कविता से अनुपस्थित नहीं रही है

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 दो गज़ की दूरी

दो गज़ की दूरी

दो गज़ की दूरी' वरिष्ठ कहानीकार ममता कालिया का नवीन कहानी-संग्रह है।इन कहानियों की विशेषता इनकी सहजता और सरलता है। ये अपनी संवेदनात्मक संरचना में से होते-होते दृश्यों, कथनों, अतिपरिचित मनोभावों के सहारे आगे बढ़ती हैं। ममता कालिया व्यंग्य नहीं, विडम्बना

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 दो गज़ की दूरी

दो गज़ की दूरी

दो गज़ की दूरी' वरिष्ठ कहानीकार ममता कालिया का नवीन कहानी-संग्रह है।इन कहानियों की विशेषता इनकी सहजता और सरलता है। ये अपनी संवेदनात्मक संरचना में से होते-होते दृश्यों, कथनों, अतिपरिचित मनोभावों के सहारे आगे बढ़ती हैं। ममता कालिया व्यंग्य नहीं, विडम्बना

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ममता कालिया के लेख

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