माँ! तुम्हारी बस इतनी सी कहानी।
दर्द-दुख-सुख-बच्चे औ, कुर्बानी।
जन्म देकर जननी जब तुम बन गई।
मानो खुद की खुद से ही ठन गई।
अपने सपने और शौक हुए पुराने।
बच्चों के सुख-दुख निज तुमने माने।
नौ माह कोख और जनन की पीड़ा।
तुम सह गए समझ प्रिय-बाल-क्रीड़ा।
तुमने समझ सही मारे और समझाए।
जब-जब पैर हमारे थे कुमार्ग पे आए।
इस दुनिया की सुंदरता और मेरा अस्तित्व।
तुमसे ही सम्भव है, जो कुछ मैं व्यक्तित्व।