प्रेम रूप है शीतल जल का जो प्यासे की प्यास भुजा
प्रेम रूप उस बड़े वृक्ष का जो मीठे फल बरसाए
प्रेम रूप है मृध वर्षा का को किसान को रह दिखाए
प्रेम रूप तो माँ में बस्ता जो अंचल में अपने छुपाए
प्रेम रूप बरसता सब पे, सब मानुष है प्रेम के भूके
जहां प्रेम की आस दिखाई, वही चले सब रब दे बन्दे
प्रेम प्रेम करता है कोई, प्रेम समझ न पाया कोई
ढाई आखर प्यार है , पढ़ले तो पंडित भयो न पढ़ पाए हर कोई
प्रेम रूप ममता की मूरत
प्रेम रूप मैय्या की सूरत
प्रेम रूप लेती है औरत
प्रेम रूप देवो की मूरत
हम तो भए नन्हे से बालक रोते, बिलकते थप थप चलते
जहां दिखी करुणा की मूरत वही चले हम प्रेम भाव से
हर मनुष्य की यही कहानी
प्रेम भाव का भूखा प्राणी
जहां दिखी करुणा की मूरत
जहां दिखी ममता की सूरत
वही चले हम प्रेम भाव से ||