मनुष्य का लालच
बहुत बढ़ गया है कि
उसने रिश्ते - नाते, दोस्त, सगे- सम्बन्धी
सबको कहीं किनारे
पीछे ही छोड़ दिया है...
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वह मजबूर नहीं है
पर सबसे
रिश्ते ख़राब कर रहा है
कोई उसकी खुशियों में
दखल न दे
इसलिए बेवजह बहस कर रहा है
पैसे के पीछे भाग रहा है
पत्नी - बच्चे, सब कमा रहे हैं
फिर भी घर
मुश्किलों से चल रहा है
बच्चा बचपन भूल कर, किताबो के बोझ में दबा है
अश्लीलता बाज़ारो में फ़ैल चुकी है
आधुनिकता के नाम पर
मनुष्य संस्कार भूल रहा है
अपनों को गैर
और गैरो को अपना समझ रहा है
अकेला रह खुद को
सफल समझ रहा है