रामराज्य का आदर्श प्रस्तुत करने के लिए केवल श्रीराम ही नहीं राम चरित्र मानस के प्रत्येक पात्र की अपनी एक अहम भूमिका रही है। इसमें महारानी सुमित्रा का त्याग भी कुछ कम नहीं है। महारानी सुमित्रा त्याग की साक्षात प्रतिमा थीं। जब भगवान श्रीराम वन जाने लगे तब लक्ष्मण जी ने भी उनसे स्वयं को साथ ले चलने का अनुरोध किया। पहले भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी को अयोध्या में रहकर माता-पिता की सेवा करने का आदेश दिया लेकिन लक्ष्मण ने किसी प्रकार से श्रीराम के बिना अयोध्या में रुकना स्वीकार नहीं किया। अन्त में श्रीराम ने लक्ष्मण को माता सुमित्रा से आज्ञा लेकर अपने साथ चलने को कहा। उस समय विदा माँगने के लिये उपस्थित लक्ष्मण को माता सुमित्रा ने जो उपदेश दिया। उसमें भक्ति, प्रीति, त्याग, पुत्र-धर्म का स्वरूप, समर्पण आदि श्रेष्ठ भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है।
माता सुमित्रा ने लक्ष्मण को उपदेश देते हुए कहा- बेटा! विदेह नन्दिनी श्रीजानकी ही तुम्हारी माता हैं और सब प्रकार से स्नेह करने वाले श्रीराम ही तुम्हारे पिता हैं। जहाँ श्रीराम हैं, वहीं अयोध्या है और जहाँ सूर्य का प्रकाश है वहीं दिन है...यदि सीता-राम वनको जा रहे हैं तो अयोध्या में तुम्हारा कुछ भी काम नहीं है।
जगत में जितने भी पूजनीय सम्बन्ध हैं। वे सब श्रीराम के नाते ही पूजनीय और प्रिय मानने योग्य हैं। संसार में वही युवती पुत्रवती कहलाने योग्य है। जिसका पुत्र श्रीराम का भक्त है। श्रीराम से विमुख पुत्र को जन्म देने से निपूती रहना ही ठीक है। तुम्हारे ही भाग्य से श्रीराम वन को जा रहे हैं। हे पुत्र! इसके अतिरिक्त उनके वन जाने का अन्य कोई कारण नहीं है।
समस्त पुण्यों का सबसे बड़ा फल श्रीराम-सीता के चरणों में स्वाभाविक प्रेम है। हे पुत्र! राग, रोष, ईर्ष्या, मद आदि समस्त विकारों पर विजय प्राप्त करके मन, वचन और कर्म से श्रीराम- सीता की सेवा करना इसी में तुम्हारा परम हित है।
श्रीराम और सीता...लक्ष्मण के साथ वन चले गये। अब हर तरह से माता कौसल्या को सुखी बनाना ही सुमित्राजी का उद्देश्य हो गया। वे उन्हीं की सेवा में रात-दिन लगी रहती थी। अपने पुत्रों के विछोह के दुःख को भूलकर कौसल्याजी के दुःख में दुखी और उन्हीं के सुख में सुखी होना माता सुमित्रा का स्वभाव बन गया।
जिस समय उन्हें लक्ष्मण को शक्ति लगने का संदेश मिलता है...तब उनका रोम-रोम खिल उठता है। वे प्रसन्नता और उत्सर्ग के आवेश में बोल पड़ती हैं- लक्ष्मण ने मेरी कोख से जन्म लेकर उसे सार्थक कर दिया। उसने मुझे पुत्रवती होने का सच्चा गौरव प्रदान किया है। इतना ही नहीं, वे श्रीराम की सहायता के लिये शत्रुघ्न को भी युद्ध में भेजने के लिये तैयार हो जाती हैं। माता सुमित्रा के जीवन में सेवा, संयम और सर्वस्व-त्याग का अद्भुत समावेश है। माता सुमित्रा जैसी देवियाँ ही भारतीय कुल की गरिमा और आदर्श हैं।
डॉ. निशा नंंदिनी भारतीय की अन्य किताबें
हिंदी साहित्य को समर्पित शिक्षाविद एवं साहित्यकार डॉ. निशा गुप्ता उर्फ (डॉ.निशा नंदिनी भारतीय) का जन्म रामपुर(उत्तर प्रदेश) में 13 सितंबर 1962 में हुआ। आपने साहित्य के साथ-साथ शिक्षा जगत व समाज सेविका के रूप में भी एक अलग पहचान बनाई है। आपने तीन विषयों ( हिन्दी,समाजशास्त्र व दर्शनशास्त्र) में एम.ए तथा बी.एड
की शिक्षा प्राप्त की है। 40 वर्षों से निरंतर आपका लेखन चल रहा है।
लेखन क्षेत्र में आपने लगभग हर विधा पर अपनी कलम चलाई है।
कविता,गीत,उपन्यास,कहानियां, यात्रा वृतांत, जीवनियाँ तथा बाल साहित्य आदि अनेक विधाओं में आपकी लेखनी का प्रभाव माना गया है। आपके साहित्य से समाज व राष्ट्र में एक नई जागृति आई है।
आपकी अधिकतर रचनाएं राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत है।
विश्वविद्यालय स्तर पर आपके साहित्य को कोर्स में पढ़ाया जा रहा है। आपके साहित्य पर एम.फिल हो चुकी है और कुछ शोधार्थी शोधकार्य भी कर रहे हैं। 30 वर्ष तक आप शिक्षण कार्य करते हुए लेखन व समाजसेवा से भी जुड़ी रही हैं।आपकी अब तक विभिन्न विषयों पर 6 दर्जन से भी अधिक पुस्तकें, विभिन्न प्रतिष्ठित प्रकाशनों द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं। आप की पुस्तकें भारतीय समाज को दिशा निर्देशित कर प्रेरित करती हैं। यही कारण है कि आपकी अनेकानेक पुस्तकों पर आपको देश-विदेश की विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है। आपके सराहनीय कार्यों के लिए अब तक आपको साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा लगभग 4 दर्जन सम्मान एवं पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। डॉ.निशा गुप्ता
समाज सेविका के रूप में भी अपने कर्तव्य का निर्वाह बड़ी निष्ठा और ईमानदारी से करती हैं। आपने अपने जीवन में रचनात्मकता को विशेष महत्व दिया है,यही कारण है कि देश की प्रतिष्ठित संस्था "प्रकृति फाउंडेशन" द्वारा प्रकाशित "इंडियन रिकॉर्ड बुक" में आपके नाम को तीन बार चयनित किया गया है। जिसके लिए आपको " Indian record book" द्वारा मेडल तथा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित भी किया गया है। इसके अतिरिक्त आप अनेकानेक प्रतिष्ठित सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर भारतीय समाज को एक नई दिशा प्रदान कर रही हैं। आप विभिन्न संस्थाओं में प्रतिष्ठित पद पर भी आसीन हैं। "विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ" द्वारा आपको विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है।महान संत "कबीर" पर आपने शोध कार्य किया है।
आपके सामाजिक मूल्यों पर आधारित अनेक आलेख,गीत, कथा-कहानियां देश-विदेश की लगभग 5 दर्जन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं, और निरंतर हो रही हैं। आपकी कुछ पुस्तकों का अनुवाद अन्य भारतीय भाषाओं में भी हो चुका है। इसके साथ ही आपकी रचनाओं, कहानियों, नाटक आदि का प्रसारण रामपुर,असम तथा दिल्ली आकाशवाणी से भी हो चुका है। दूरदर्शन के "कला संगम" कार्यक्रम में आप का साक्षात्कार भी लिया जा चुका है।D