मड़फा पहाड़********
भरतकूप क्षेत्र में बीहड़ जंगल में लगभग ढाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित मरपा पहाड़ है इसी पहाड़ पर मांडव ऋषि का आश्रम था जिसके कारण इसका मांडव ऋषि का अपभ्रंश रूप होकर मड़फा पहाड़ के नाम से जाना जाने लगा । यहां पर भगवान शिव की नृत्य रत मुद्रा मे पंचमुखी बहुत ही प्राचीन प्रतिमा है । मान्यता है कि इनके दर्शन से प्राणी को पुनर्जन्म से मुक्ति मिल जाती है ।
एक समय इस स्थान में कण्व ऋषि का आश्रम था । ऋषि विश्वामित्र मेनका पुत्री शकुंतला उनकी पालित पुत्री थी । शकुंतला ने यहीं पर भरत को जन्म दिया था । एक तालाब भी है जिसमें स्नान की मान्यता है यह तालाब भी अपने आप में एक तीर्थ स्थान कहा गया है ।
कहा जाता है कि जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान आदिनाथ भी यहां पर तपस्या के लिए उस दिन ठहरे थे । इस समय मंदिर पुरातत्व विभाग की प्राचीन धरोहर में आ गया है । यहां न्यग्रोध कुंड है । हर सोमवार को धार्मिक ऐतिहासिक पौराणिक महत्व का होने के कारण यहां पर मेला लगता है ।
यहां पर ब्रह्मा ,अत्रि , अगस्त व बाल्मीकि सभी ने तप किया है । इसी क्षेत्र के कारण ब्रह्मांड के सबसे श्रेष्ठ स्थल के रूप में चित्रकूट का नाम लिया जाता है
सुतीक्ष्ण आश्रम ********
ये अगस्त ऋषि के शिष्य थे । ये बहुत ही सरल हृदय गुरूभक्त थे ।
मुनि अगस्ति कर शिष्य सुजाना ।नाम सुतीछन रति भगवाना (अरण्यकाण्ड)
भगवान राम जब इनके आश्रम आये तो इन्होने उनके आगमन की सूचना अपने गुरू अगस्त्य ऋषि को दी थी ।
तुरत सुतीक्षण गुरु पहिं गयउ ,
करि दंडवत कहत अस भयउ ( मानस अरण्यकांड
सरभंग आश्रम *********
रामायण मे भी सरभंग आश्रम का वर्णन आता है । वनवास काल में भगवान राम जी के दर्शन कर स्वयं चिता सजा योगाग्नि से प्राण त्याग ब्रह्मलीन हो गये थे ।
सुतीक्ष्ण आश्रम से 4 किलोमीटर दूर सरभंगाश्रम है ।चित्रकूट से 40 किमी है। यहां पर 2 कुंड है । एक ब्रह्म कुंड है ब्रह्मा जी ने स्नान कर कहा था****
बार-बार गंगा तो एक बार सरभंगा
संभार पर्वत के पूरब में दुधमुनिया कुंड है । सरभंग ऋषि ने दूध की धारा उत्पन्न की थी इसका जल दूध जैसा है । यहां पर मंदिर में राम, लक्ष्मण व सीता जी की मूर्तियां है ।बरसात मे बहुत सुहावने प्राकृतिक झरना बहते हैं ।प्राचीन पत्थर के शिवलिंग भी हैं । सरभंग ऋषि की मूर्ति भी है ,ये प्राचीनकाल की ही प्रतीत होती है । बहुत मनोरम स्थान है ।
सिद्धा पहाड़*******
सरभंगा आश्रम से जैतवारा की ओर जाने पर 1 किलोमीटर पर सिद्ध पहाड़ है यहां पर एक राक्षस ने तपस्यारत तपस्वियों को खाकर हड्डियों का ढेर लगा दिया था । आज भी खुदाई में अस्थियों के अवशेष मिलते हैं रामचरितमानस में भी कहा गया है
अस्थि समूह देखि रघुराया ।
पूंछिहि मुनिहि लागि अति दाया ।
निश्चरहीन करहु महि भुज उठाइ पन कीन्ह ।
सकल मुनिन्ह आश्रमन्हि जाइ-जाइ पन कीन्ह