शहर में मेला लगा हुआ था। पिता ने पुत्र को बताया कि वह छुट्टी के दिन उसे मेला दिखाने ले जाएगा। पुत्र सप्ताह भर अत्यंत उत्साहित रहा तथा उत्सुकता से रविवार का इंतज़ार करता रहा। नियत दिन पिता और पुत्र दोनों मेला देखने गए और पिता उसका हाथ पकड़कर उसे पूरे मेले में घुमाने लगा। वाह, क्या सुंदरता थी! तरह तरह की जगमगाती लाइटें, इतने सारे झूले, इतने स्टॉल - खाने के, खिलोनों के, परिधानों के। अलग अलग शहरों की खास वस्तुएं प्रदर्शित थीं। इतना मोहक वातावरण हो रहा था! पिता सब कुछ देखकर अत्यंत ही प्रसन्न था तथा अपने पुत्र को सभी चीजों के बारे में विस्तार से बता रहा था।
आश्चर्यजनक बात यह थी कि पुत्र की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी सिवाय रोने के। पिता को झुंझलाहट हो रही थी कि इतना अच्छा माहौल है, इतनी खूबसूरत चीज़ें लगी हैं, सब कुछ है पर इस बच्चे को कुछ भी आनंददायक नहीं लग रहा। उसे यह लगने लगा था कि बेकार ही पुत्र को ले आया। न तो वह खुद किसी बात से आनंदित हो रहा था न ही पिता को ठीक से सब देखने दे रहा था।
चलते चलते पुत्र के जूते के फीते खुल गए। उसने पिता से बांधने के लिए कहा। देखा पाठकों, उस बच्चे की उम्र इतनी कम थी कि वह अपने जूते के फीते भी खुद से नहीं बांध सकता था! बहरहाल, पिता फीते बांधने झुका और तभी उसको समझ आ गया कि बच्चा उसके साथ मेले का आनंद क्यों नहीं ले पा रहा था। नीचे ज़मीन पर अंधेरा था। उसके पुत्र को सिर्फ लोगों की पीठ दिखाई दे रही थी। धूल और पसीने की गंध से उसका दम घुटा जा रहा था। उसके लिए कोई रौनक नहीं थी वहाँ, कोई खूबसूरत लाइटें नहीं थीं, कोई मोहक चीज़ उसे नहीं दिखाई दे रही थी। तो वह भला क्या आनंद लेता।
पिता को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसकी आँखों से आँसू की दो बूंदें छलक गईं। उसने पुत्र के जूते के फीते बांधे तथा उसको उठाकर अपने कंधे पर बैठा लिया। और बस कुछ पलों की ही देर थी कि बच्चा चहकने लगा और अपने पिता को बताने लगा कि उसे क्या क्या देखना है, क्या खाना है और किन झूलों पर बैठना है।
पाठकों आप सब को यह नहीं लगता कि ऐसा हमारी ज़िंदगी में कई बार होता है? हम बिना दूसरों की परेशानी समझे उनकी तकलीफ को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। कार्यालय में कोई खराब मिजाज में है तो उससे दूर चलने में भलाई समझते हैं। घर में बच्चा पढ़ नहीं पा रहा तो उसको डांट देते हैं कि तुम्हारा पढ़ाई में मन नहीं लगता कभी। ऐसे और काफी मौके आते हैं जहां थोड़ी सी संवेदना और सहानुभूति से बात करने से शायद सामने वाले को अपार सुकून पहुंचे पर हम दो मिनट नहीं निकाल पाते किसी की समस्या जानने के लिए।
आइये क्यों न हम थोड़े दयालु तथा संवेदनशील बनें तथा सबके लिए इस दुनिया को इतना ही खूबसूरत बनाएँ जितनी यह हमारे लिए है।