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प्रतिबिंब

10 मार्च 2015

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आँखों में उमड़ते आंसुओं को रोकते हुये वह मन भर के अपनी बेटी को निहार रही थी। दुल्हन बनी हुयी उसकी गुड़िया कितनी प्यारी लग रही थी। तभी पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी “बहू कितनी सुंदर है। बिलकुल अपनी माँ पर गयी है।“ सीमा को वह 30 साल पुराना दिन याद आ गया। शादी के 7 साल बाद भी सभी प्रयास करने के बाद उसकी गोद नहीं भरी थी। कितने डॉक्टर, वैद्य, ज्योतिष, पंडे, पुजारी, मंदिर, दरगाह सब घूमने के बाद आखिरकार उसने मान ही लिया था की मातृत्व का सुख उसके जीवन में नहीं है। एक सहेली के कहने से उसने बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया समझी थी और यह जानने के बाद की उसके शहर में ऐसी 3-4 संस्थाएं हैं, वह यह विचार लेकर अपने पति के पास गयी थी। राकेश ने आधे मन से ही सही पर मान लिया था और फिर दोनों साथ में माता पिता के पास गए थे यह बताने की उन्होने बच्चा गोद लेने का फैसला किया है। सीमा को उस मनहूस दिन की एक घड़ी भी भूली नहीं है आज तक। क्या क्या नहीं कहा उसको सबने "बांझ, कुलक्षणी, जाने किसका पाप अपने घर लेकर आएगी, कोई ऐसे ही थोड़े अपना बच्चा सड़क किनारे छोड़ देता है।" उसने रो रोकर भीख मांगी थी "अनाथाश्रम से नहीं तो किसी रिश्तेदार के बच्चे, कोई भी जान पहचान का अनाथ बच्चा गोद ले लेंगे।" पर ससुराल वालों ने उसकी एक न सुनी। राकेश ने भी माँ बाप के आगे उसका खुलकर साथ नहीं दिया। उस पर पहले ही काफी दबाव था की कुल आगे चलना है या नहीं। इस बात के बाद तो जैसे सीमा के सास ससुर को मुंह मांगी मुराद मिल गयी। सीमा के मायके वालों को फोन कर के बुलाया और उसको ले जाने को कहा। सीमा राकेश का इंतज़ार करती रही। वो तो आया नहीं, कुछ महीने बाद तलाकनामा ज़रूर आ गया। सीमा के भाई ने कोर्ट कचहरी करने के लिए बोला। वकीलों ने भी बताया की तलाक लेने के लिए यह कोई वजह नहीं है। अच्छा सेटलमेंट मिल जाएगा। सीमा ने यह सब करने से मना कर दिया। बोला "जिसके मन में मेरे लिए प्यार ही नहीं, उसके रहने न रहने से फर्क क्या पड़ता है।" उसने बिना विरोध के तलाक मंजूर कर लिया। घर वाले उसको समझते रहे "जीवन कैसे बीतेगा, पहाड़ सी ज़िंदगी पड़ी है।" पर सीमा के मन में तो एक अलग ही चाह उत्पन्न हो गयी थी। अपना एक अलग वजूद बनाने की। उसने फिर से पढ़ाई शुरू कर दी और साथ ही साथ नौकरी की तैयार भी करती रही। इधर उसने पोस्ट ग्रेजूएशन पूरा किया, उधर बैंक में उसकी नौकरी लग गयी। जो रिश्तेदार उसको देखकर मुंह फेरने लगे थे उन सबने ही उसकी तारीफ़ों के पुल बांधने शुरू कर दिये। यह जानते हुये भी कि वह माँ नहीं बन सकती कुछ धन के लालची शादी के रिश्ते भी लेकर आने लगे। पर सीमा को सब समझ आता था कि यह सब उसके लिए नहीं उसकी कामयाबी के कारण हो रहा है। अब सीमा के मन में एक ही चाह बची थी - मातृत्व सुख जिसके बिना उसको जीवन अधूरा लगता था। उसने बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया शुरू की। पर हर बार उसकी अर्जी किसी न किसी कारण से ठुकरा दी जाती थी। फिर एक शिशु सदन ने उसको बताया की ऐसा उसके अकेले होने की वजह से हो रहा है। सीमा ने फिर भी हार नहीं मानी। इस संबंध में हर सरकारी दफ्तर से घूमते हुये आखिरकार वह महिला आयोग की शाखा तक जा पहुंची। उसके बाद उसकी अर्जी पर तुरंत विचार होने लगा। पूरे दो वर्ष की भाग-दौड़ के बाद आज वो दिन आ गया था जब सीमा को बच्चा पसंद करने जाना था। उसके मन में यही विचार चल रहा था की इतने बच्चों में किसको ना करेगी और किसको हां। आखिर हर बच्चे को एक अच्छा जीवन पाने का एक जैसा ही अधिकार है। शिशु सदन पहुँच कर उसके मन से यह संशय भी जाता रहा। वहाँ आए बाकी लोगों को देखकर उसे एहसास हुआ की वह अकेली नहीं है। सीमा अपनी बारी आने पर पहले पालने के पास पहुंची और उसमें सोयी बच्ची के माथे पर हाथ फिराया। बच्ची जाग गयी और अपनी नन्ही हथेली में सीमा की उँगलियों को पकड़ लिया। एक साल बाद परी का पहला जन्मदिन था। परी तो सच में परी बनी हुयी थी उस दिन। सफ़ेद फ्रॉक में सजी हुयी, माथे पर मुकुट और गुलाबी पंख लगाए, पालने में बैठी मुसकुराती हुयी। सीमा अपनी बेटी को देखकर बलिहारी हुयी जा रही थी। तभी पीछे से एक आवाज़ आई " सीमा तुम्हारी बेटी तो बिलकुल तुम्हारा प्रतिबिंब है।"
योगिता वार्डे ( खत्री )

योगिता वार्डे ( खत्री )

सुन्दर प्रस्तुति....

25 सितम्बर 2015

nathonkar

nathonkar

यह हमारे समाज की विडम्बना है. अगर समस्या लडके में है तो? बच्चे को गोद लेना सही निर्णय है. आज लडकिया इस प्रकार के निर्णय के लिये तैयार हैं और सक्षम भी. सभी बड़ों का कर्तव्य है कि इसके लिए प्रोत्साहित करें।

23 जुलाई 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

मन की धवलता और उजास भी प्रतिबिम्बित है...अत्यंत प्रशस्य लेखन !

23 जून 2015

पारुल त्रिपाठी

पारुल त्रिपाठी

शिखा जी आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए धन्यवाद

21 जून 2015

डॉ. शिखा कौशिक

डॉ. शिखा कौशिक

BAHUT ACHCHHI KAHANI .JEEVAN KO SARTHAKTA PRADAN KARNE KEE PRERNA DETI KAHANI .BADHAI .

21 जून 2015

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महिला दिवस

9 मार्च 2015
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मेरे जीवन में आई हर महिला से मैंने कुछ न कुछ सीखा है। माँ से सीखी प्यार की परिभाषा, दादी ने पढ़ना सिखलाया, नानी से सीखी सहिष्णुता, भाभी से सीखा कि सीखने की उम्र नहीं होती, सहेलियों से सीखा कि बहनें सिर्फ पैदाइश से नहीं होती, काम वाली से सीखा कि बांटने के लिए अधिक पैसों की ज़रूरत नहीं होती, बस दिल बड़ा

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प्रतिबिंब

10 मार्च 2015
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आँखों में उमड़ते आंसुओं को रोकते हुये वह मन भर के अपनी बेटी को निहार रही थी। दुल्हन बनी हुयी उसकी गुड़िया कितनी प्यारी लग रही थी। तभी पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी “बहू कितनी सुंदर है। बिलकुल अपनी माँ पर गयी है।“ सीमा को वह 30 साल पुराना दिन याद आ गया। शादी के 7 साल बाद भी सभी प्रयास करने के बाद उसकी गोद

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सखी री...

29 जुलाई 2015
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कुछ भूली बिसरी यादें कुछ खट्टे-मीठे पल वो हंसी के ठहाके वो बिन रुके बातें याद आती है सखी री और आँखें हो जाती हैं नम होठों पे होती है मुस्कान और दिल में ये ख़्वाहिश की फिर से हो मिलना तुमसे कभी किसी मोड़ पर फिर से बिताएँ संग खूबसूरत से कुछ पल

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मेला

26 अगस्त 2015
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शहर में मेला लगा हुआ था। पिता ने पुत्र को बताया कि वह छुट्टी के दिन उसे मेला दिखाने ले जाएगा। पुत्र सप्ताह भर अत्यंत उत्साहित रहा तथा उत्सुकता से रविवार का इंतज़ार करता रहा। नियत दिन पिता और पुत्र दोनों मेला देखने गए और पिता उसका हाथ पकड़कर उसे पूरे मेले में घुमाने लगा। वाह, क्या सुंदरता थी! तरह तरह

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विरह

30 अगस्त 2015
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तुम चले जाते होपीछे छोड़ जाते हो तन्हाईमन उदास होता हैफिर भी चेहरे पर नकली मुस्कान चिपकाये देती हूँ तुम्हे विदा और फिर बंद दरवाजे के पीछे बहती हैं गंगा जमुना सुबह आँख खुलती हैऔर तुम नहीं होतेतुम्हारी खुशबू होती हैपर तुम नहीं होतेसुबह का उजालालगता है मटमैला सासुरमई शाम भीचुभती है आँखों मेंक्यों चले जा

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समानता की मांग या इस आड़ में कुछ और?

3 सितम्बर 2015
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यह बंधु कौन हैं मैं जानती नहीं और इन्होने जो लिखा है उसको पढ़ कर जानने की इच्छा रह भी नहीं गयी। बस ट्विटर पर यह दिखा और मन उद्वेलित हो उठा। क्या सच में यह स्त्रियॉं के लिए समानता की बात कर रहे हैं? क्या इन्हे यह लग रहा है कि राखी बांधने से एक लड़की तथा लड़के में असमानता हो गयी? इनको राखी जैसे पवित्र त्

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आस

6 सितम्बर 2015
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अलसायी शाम नेझपकाई बोझल पलकेंऔर घिर आई रातघनी, काली, अँधेरीतेरी यादों की तरहफिर आये तारेऔर छा गयीचमचमाती सीएक चादरऔर इसके साथ हीमन में जगी आसकि तू भी आएइक रोज़औ' बैठें हम साथतारों की चादर तले

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लाली

15 नवम्बर 2015
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रोज़ की तरह सुबह दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोलकर देखा तो मेरी काम वाली उर्मिला थी और उसके पल्लू के पीछे सिमटी हुई खड़ी थी एक नन्ही सी बच्ची।“दीदी ये है लाली। मेरे भाई की लड़की है। भाभी तो रही नहीं पता ही है आपको। भाई सुबह काम पर निकल जाता है। बाकी कोई ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं तो मैं ही इसे अपने स

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हम असहिष्णु नहीं हैं

30 नवम्बर 2015
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कार्यालयमें हिन्दी पखवाड़े के दौरानहुयी प्रतियोगिताओं का पुरस्कारवितरण समारोह था। समारोह मेंहर वर्ष हम कुछ नयी रूपरेखालेकर आते हैं। इस वर्ष मैंनेएक प्रतियोगिता का आयोजन कियाथा जिसमे प्रतिभागी टीमों कोएक शब्द दिया गया था और उस शब्दपर टीम को एक कहानी सोचकर लघुनाटिका की प्रस्तुति करनीथी। समय सीमा थी 15

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सत्ता का दुरुपयोग

14 फरवरी 2016
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आज कार में एफ एम ऑन किया तो सुनाई दिया "पहला साल बेमिसाल, दिल्ली सरकार"। आश्चर्य हुआ क्योंकि मैं रहती हूँ गुजरात में। आज तक मैंने केंद्र सरकार के भी सिर्फ जनहित से संबन्धित प्रचार ही सुने हैं - सफाई, शिक्षा, कन्या शिक्षा आदि से संबन्धित, और सुने हैं मध्य प्रदेश के टूरिस्म से संबन्धित प्रचार। थोड़ा बह

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अजनबी - भाग 1

4 अगस्त 2016
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काफीसमय बाद वह घर आया था बड़ी बहन की शादी में। घर में गहमा गहमी का माहौल था। काफीचहल पहल थी। ढेर सारे रिश्तेदार, गाना बजाना, नाचना लगा हुआ था। कहीं मेहंदी लग रही है, कहीं साड़ी में गोटा।कहीं दर्जी नाप ले रहा है, कोई हलवाई को मिठाइयों के नाम लिखवा रहा है। एक तरफ फूलमाला वाले की गुहार, एक तरफ बैंड-बाजा

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गुलाबी फ्रॉक

6 अगस्त 2016
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मुन्नी ख़ुशी से उछल रही थी। माँ  ने आखिर आज उसकी गुलाबी फ्रॉक जो बना दी थी। बस इस्त्री होते ही पहन कर सारी सहेलियों को दिखा कर आएगी। पुरानी, पैबंद लगी फ्रॉक के लिए सब मज़ाक उड़ाते थे। अब कोई नहीं उड़ाएगा।  फ्रॉक इस्त्री हो गयी और मुन्नी उसको पहनकर इठलाती हुयी खेलने चली गयी। अगले दिन सुबह कचरे वाला गुलाब

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