आँखों में उमड़ते आंसुओं को रोकते हुये वह मन भर के अपनी बेटी को निहार रही थी। दुल्हन बनी हुयी उसकी गुड़िया कितनी प्यारी लग रही थी। तभी पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी “बहू कितनी सुंदर है। बिलकुल अपनी माँ पर गयी है।“
सीमा को वह 30 साल पुराना दिन याद आ गया। शादी के 7 साल बाद भी सभी प्रयास करने के बाद उसकी गोद नहीं भरी थी। कितने डॉक्टर, वैद्य, ज्योतिष, पंडे, पुजारी, मंदिर, दरगाह सब घूमने के बाद आखिरकार उसने मान ही लिया था की मातृत्व का सुख उसके जीवन में नहीं है। एक सहेली के कहने से उसने बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया समझी थी और यह जानने के बाद की उसके शहर में ऐसी 3-4 संस्थाएं हैं, वह यह विचार लेकर अपने पति के पास गयी थी। राकेश ने आधे मन से ही सही पर मान लिया था और फिर दोनों साथ में माता पिता के पास गए थे यह बताने की उन्होने बच्चा गोद लेने का फैसला किया है।
सीमा को उस मनहूस दिन की एक घड़ी भी भूली नहीं है आज तक। क्या क्या नहीं कहा उसको सबने "बांझ, कुलक्षणी, जाने किसका पाप अपने घर लेकर आएगी, कोई ऐसे ही थोड़े अपना बच्चा सड़क किनारे छोड़ देता है।" उसने रो रोकर भीख मांगी थी "अनाथाश्रम से नहीं तो किसी रिश्तेदार के बच्चे, कोई भी जान पहचान का अनाथ बच्चा गोद ले लेंगे।" पर ससुराल वालों ने उसकी एक न सुनी। राकेश ने भी माँ बाप के आगे उसका खुलकर साथ नहीं दिया। उस पर पहले ही काफी दबाव था की कुल आगे चलना है या नहीं। इस बात के बाद तो जैसे सीमा के सास ससुर को मुंह मांगी मुराद मिल गयी।
सीमा के मायके वालों को फोन कर के बुलाया और उसको ले जाने को कहा। सीमा राकेश का इंतज़ार करती रही। वो तो आया नहीं, कुछ महीने बाद तलाकनामा ज़रूर आ गया। सीमा के भाई ने कोर्ट कचहरी करने के लिए बोला। वकीलों ने भी बताया की तलाक लेने के लिए यह कोई वजह नहीं है। अच्छा सेटलमेंट मिल जाएगा। सीमा ने यह सब करने से मना कर दिया। बोला "जिसके मन में मेरे लिए प्यार ही नहीं, उसके रहने न रहने से फर्क क्या पड़ता है।" उसने बिना विरोध के तलाक मंजूर कर लिया। घर वाले उसको समझते रहे "जीवन कैसे बीतेगा, पहाड़ सी ज़िंदगी पड़ी है।"
पर सीमा के मन में तो एक अलग ही चाह उत्पन्न हो गयी थी। अपना एक अलग वजूद बनाने की। उसने फिर से पढ़ाई शुरू कर दी और साथ ही साथ नौकरी की तैयार भी करती रही। इधर उसने पोस्ट ग्रेजूएशन पूरा किया, उधर बैंक में उसकी नौकरी लग गयी। जो रिश्तेदार उसको देखकर मुंह फेरने लगे थे उन सबने ही उसकी तारीफ़ों के पुल बांधने शुरू कर दिये। यह जानते हुये भी कि वह माँ नहीं बन सकती कुछ धन के लालची शादी के रिश्ते भी लेकर आने लगे। पर सीमा को सब समझ आता था कि यह सब उसके लिए नहीं उसकी कामयाबी के कारण हो रहा है।
अब सीमा के मन में एक ही चाह बची थी - मातृत्व सुख जिसके बिना उसको जीवन अधूरा लगता था। उसने बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया शुरू की। पर हर बार उसकी अर्जी किसी न किसी कारण से ठुकरा दी जाती थी। फिर एक शिशु सदन ने उसको बताया की ऐसा उसके अकेले होने की वजह से हो रहा है। सीमा ने फिर भी हार नहीं मानी। इस संबंध में हर सरकारी दफ्तर से घूमते हुये आखिरकार वह महिला आयोग की शाखा तक जा पहुंची। उसके बाद उसकी अर्जी पर तुरंत विचार होने लगा।
पूरे दो वर्ष की भाग-दौड़ के बाद आज वो दिन आ गया था जब सीमा को बच्चा पसंद करने जाना था। उसके मन में यही विचार चल रहा था की इतने बच्चों में किसको ना करेगी और किसको हां। आखिर हर बच्चे को एक अच्छा जीवन पाने का एक जैसा ही अधिकार है। शिशु सदन पहुँच कर उसके मन से यह संशय भी जाता रहा। वहाँ आए बाकी लोगों को देखकर उसे एहसास हुआ की वह अकेली नहीं है। सीमा अपनी बारी आने पर पहले पालने के पास पहुंची और उसमें सोयी बच्ची के माथे पर हाथ फिराया। बच्ची जाग गयी और अपनी नन्ही हथेली में सीमा की उँगलियों को पकड़ लिया।
एक साल बाद परी का पहला जन्मदिन था। परी तो सच में परी बनी हुयी थी उस दिन। सफ़ेद फ्रॉक में सजी हुयी, माथे पर मुकुट और गुलाबी पंख लगाए, पालने में बैठी मुसकुराती हुयी। सीमा अपनी बेटी को देखकर बलिहारी हुयी जा रही थी। तभी पीछे से एक आवाज़ आई " सीमा तुम्हारी बेटी तो बिलकुल तुम्हारा प्रतिबिंब है।"