shabd-logo

महिला दिवस

9 मार्च 2015

521 बार देखा गया 521
मेरे जीवन में आई हर महिला से मैंने कुछ न कुछ सीखा है। माँ से सीखी प्यार की परिभाषा, दादी ने पढ़ना सिखलाया, नानी से सीखी सहिष्णुता, भाभी से सीखा कि सीखने की उम्र नहीं होती, सहेलियों से सीखा कि बहनें सिर्फ पैदाइश से नहीं होती, काम वाली से सीखा कि बांटने के लिए अधिक पैसों की ज़रूरत नहीं होती, बस दिल बड़ा होना चाहिए। इन सभी और जिनका नाम यहाँ ले नहीं पायी उन सबको शुक्रिया, मुझे ज़िंदगी के मायने सिखलाने के लिए।
ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

काम वाली से सीखा कि बांटने के लिए अधिक पैसों की ज़रूरत नहीं होती....मन की संवेदनाओं को सहज ही छू जाते हैं ये विचार....अनुपम !

23 जून 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

.....सच है पारुल जी , आपके विचार बहुत ही अच्छे है। कुछ शब्दो मे अपने एक बहुत ही सुंदर लेख लिख दिया । प्रियंका - शब्दनगरी संगठन .

9 मार्च 2015

1

महिला दिवस

9 मार्च 2015
0
5
2

मेरे जीवन में आई हर महिला से मैंने कुछ न कुछ सीखा है। माँ से सीखी प्यार की परिभाषा, दादी ने पढ़ना सिखलाया, नानी से सीखी सहिष्णुता, भाभी से सीखा कि सीखने की उम्र नहीं होती, सहेलियों से सीखा कि बहनें सिर्फ पैदाइश से नहीं होती, काम वाली से सीखा कि बांटने के लिए अधिक पैसों की ज़रूरत नहीं होती, बस दिल बड़ा

2

प्रतिबिंब

10 मार्च 2015
0
7
5

आँखों में उमड़ते आंसुओं को रोकते हुये वह मन भर के अपनी बेटी को निहार रही थी। दुल्हन बनी हुयी उसकी गुड़िया कितनी प्यारी लग रही थी। तभी पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी “बहू कितनी सुंदर है। बिलकुल अपनी माँ पर गयी है।“ सीमा को वह 30 साल पुराना दिन याद आ गया। शादी के 7 साल बाद भी सभी प्रयास करने के बाद उसकी गोद

3

सखी री...

29 जुलाई 2015
0
6
1

कुछ भूली बिसरी यादें कुछ खट्टे-मीठे पल वो हंसी के ठहाके वो बिन रुके बातें याद आती है सखी री और आँखें हो जाती हैं नम होठों पे होती है मुस्कान और दिल में ये ख़्वाहिश की फिर से हो मिलना तुमसे कभी किसी मोड़ पर फिर से बिताएँ संग खूबसूरत से कुछ पल

4

मेला

26 अगस्त 2015
0
9
2

शहर में मेला लगा हुआ था। पिता ने पुत्र को बताया कि वह छुट्टी के दिन उसे मेला दिखाने ले जाएगा। पुत्र सप्ताह भर अत्यंत उत्साहित रहा तथा उत्सुकता से रविवार का इंतज़ार करता रहा। नियत दिन पिता और पुत्र दोनों मेला देखने गए और पिता उसका हाथ पकड़कर उसे पूरे मेले में घुमाने लगा। वाह, क्या सुंदरता थी! तरह तरह

5

विरह

30 अगस्त 2015
0
7
1

तुम चले जाते होपीछे छोड़ जाते हो तन्हाईमन उदास होता हैफिर भी चेहरे पर नकली मुस्कान चिपकाये देती हूँ तुम्हे विदा और फिर बंद दरवाजे के पीछे बहती हैं गंगा जमुना सुबह आँख खुलती हैऔर तुम नहीं होतेतुम्हारी खुशबू होती हैपर तुम नहीं होतेसुबह का उजालालगता है मटमैला सासुरमई शाम भीचुभती है आँखों मेंक्यों चले जा

6

समानता की मांग या इस आड़ में कुछ और?

3 सितम्बर 2015
0
8
3

यह बंधु कौन हैं मैं जानती नहीं और इन्होने जो लिखा है उसको पढ़ कर जानने की इच्छा रह भी नहीं गयी। बस ट्विटर पर यह दिखा और मन उद्वेलित हो उठा। क्या सच में यह स्त्रियॉं के लिए समानता की बात कर रहे हैं? क्या इन्हे यह लग रहा है कि राखी बांधने से एक लड़की तथा लड़के में असमानता हो गयी? इनको राखी जैसे पवित्र त्

7

आस

6 सितम्बर 2015
0
4
3

अलसायी शाम नेझपकाई बोझल पलकेंऔर घिर आई रातघनी, काली, अँधेरीतेरी यादों की तरहफिर आये तारेऔर छा गयीचमचमाती सीएक चादरऔर इसके साथ हीमन में जगी आसकि तू भी आएइक रोज़औ' बैठें हम साथतारों की चादर तले

8

लाली

15 नवम्बर 2015
0
11
5

रोज़ की तरह सुबह दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोलकर देखा तो मेरी काम वाली उर्मिला थी और उसके पल्लू के पीछे सिमटी हुई खड़ी थी एक नन्ही सी बच्ची।“दीदी ये है लाली। मेरे भाई की लड़की है। भाभी तो रही नहीं पता ही है आपको। भाई सुबह काम पर निकल जाता है। बाकी कोई ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं तो मैं ही इसे अपने स

9

हम असहिष्णु नहीं हैं

30 नवम्बर 2015
0
8
2

कार्यालयमें हिन्दी पखवाड़े के दौरानहुयी प्रतियोगिताओं का पुरस्कारवितरण समारोह था। समारोह मेंहर वर्ष हम कुछ नयी रूपरेखालेकर आते हैं। इस वर्ष मैंनेएक प्रतियोगिता का आयोजन कियाथा जिसमे प्रतिभागी टीमों कोएक शब्द दिया गया था और उस शब्दपर टीम को एक कहानी सोचकर लघुनाटिका की प्रस्तुति करनीथी। समय सीमा थी 15

10

सत्ता का दुरुपयोग

14 फरवरी 2016
0
4
1

आज कार में एफ एम ऑन किया तो सुनाई दिया "पहला साल बेमिसाल, दिल्ली सरकार"। आश्चर्य हुआ क्योंकि मैं रहती हूँ गुजरात में। आज तक मैंने केंद्र सरकार के भी सिर्फ जनहित से संबन्धित प्रचार ही सुने हैं - सफाई, शिक्षा, कन्या शिक्षा आदि से संबन्धित, और सुने हैं मध्य प्रदेश के टूरिस्म से संबन्धित प्रचार। थोड़ा बह

11

अजनबी - भाग 1

4 अगस्त 2016
0
3
0

काफीसमय बाद वह घर आया था बड़ी बहन की शादी में। घर में गहमा गहमी का माहौल था। काफीचहल पहल थी। ढेर सारे रिश्तेदार, गाना बजाना, नाचना लगा हुआ था। कहीं मेहंदी लग रही है, कहीं साड़ी में गोटा।कहीं दर्जी नाप ले रहा है, कोई हलवाई को मिठाइयों के नाम लिखवा रहा है। एक तरफ फूलमाला वाले की गुहार, एक तरफ बैंड-बाजा

12

गुलाबी फ्रॉक

6 अगस्त 2016
0
4
0

मुन्नी ख़ुशी से उछल रही थी। माँ  ने आखिर आज उसकी गुलाबी फ्रॉक जो बना दी थी। बस इस्त्री होते ही पहन कर सारी सहेलियों को दिखा कर आएगी। पुरानी, पैबंद लगी फ्रॉक के लिए सब मज़ाक उड़ाते थे। अब कोई नहीं उड़ाएगा।  फ्रॉक इस्त्री हो गयी और मुन्नी उसको पहनकर इठलाती हुयी खेलने चली गयी। अगले दिन सुबह कचरे वाला गुलाब

---

किताब पढ़िए