9 मार्च 2015
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खुशमिज़ाज तथा परले दर्जे की बातूनी। नयी जगहें देखना, नए लोगों से मिलना, दोस्त बनाना, छायाचित्रकारी - इन सब में रूचि रखती हूँ। D
काम वाली से सीखा कि बांटने के लिए अधिक पैसों की ज़रूरत नहीं होती....मन की संवेदनाओं को सहज ही छू जाते हैं ये विचार....अनुपम !
23 जून 2015
.....सच है पारुल जी , आपके विचार बहुत ही अच्छे है। कुछ शब्दो मे अपने एक बहुत ही सुंदर लेख लिख दिया । प्रियंका - शब्दनगरी संगठन .
9 मार्च 2015