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हम असहिष्णु नहीं हैं

30 नवम्बर 2015

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कार्यालय में हिन्दी पखवाड़े के दौरान हुयी प्रतियोगिताओं का पुरस्कार वितरण समारोह था। समारोह में हर वर्ष हम कुछ नयी रूपरेखा लेकर आते हैं। इस वर्ष मैंने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया था जिसमे प्रतिभागी टीमों को एक शब्द दिया गया था और उस शब्द पर टीम को एक कहानी सोचकर लघु नाटिका की प्रस्तुति करनी थी। समय सीमा थी 15 मिनट। एक टीम को शब्द मिला सिपाही। उस पर टीम ने जो प्रस्तुति की वह रोचक और हास्य से भरपूर होने के साथ साथ एक बड़ा संदेश भी दे गयी।


प्रस्तुति शुरू हुयी सूत्रधार से। सूत्रधार ने दो सिपाहियों के विषय में बताया - एक हिंदुस्तानी तथा एक पाकिस्तानी। दोनों के पास मनोरंजन का साधन था एक-एक रेडियो। अकेले पेट्रोलिंग करते करते मन न ऊबे इसके लिए दोनों हैडफोन लगा कर अपनी अपनी चौकी पर रेडियो सुनते रहते। मज़े की बात यह थी कि दोनों के रेडियो पर भारत का रेडियो नेटवर्क ही आता था और दोनों भारतीय खबरें ही सुनते थे।


सीन 1 : रेडियो पर खबर आती है "कामरान खान वेंकट प्रसाद की बॉल पर आउट हो गए।" यह सुनते ही पाकिस्तानी सिपाही गोलीबारी शुरू कर देता है। भारतीय सिपाही भी जवाबी कार्यवाही शुरू कर देता है।


सीन 2: रेडियो पर ब्रेकिंग न्यूज़ "तानिया अख्तर की शादी हुयी शोएब मिर्ज़ा से।" सुनते ही भारतीय सिपाही गोलीबारी शुरू कर देता है और ज़ाहिर सी बात है पाकिस्तानी सिपाही भी जवाबी हमला कर देता है।


सीन 3: रेडियो पर गरमा गरम बहस चल रही है। भारत में बीफ के नाम पर एक मुसलमान को मार दिया गया, एक पाकिस्तानी गायक को धमकी दी गयी कि वह अपना कार्यक्रम रद्द करे तथा एक और पाकिस्तानी लेखक की पुस्तक के विमोचन में किसी दल ने खलल डाला तथा पूरा कार्यक्रम चौपट कर दिया। बस क्या पूछना था। वापस दोनों पक्षों में गोलीबारी शुरू।


सीन 4: रेडियो पर वापस से एक बहस चल रही है। इस बहस में कोई भी मीडिया वाला नहीं है। हैं तो बस चंद आम आदमी तथा पुलिस और प्रशासन के लोग। इस बहस में खुलासा होता है कि बीफ नहीं बल्कि कुछ आपसी विवाद और रंजिश के कारण वह आदमी मारा गया था, गायक ने खुद ही निजी कारणों से कार्यक्रम रद्द किया था और विमोचन में खलल प्रकाशकों की खुद की चाल थी जिस से किताब को और पब्लिसिटी मिल सके।


यह सुन कर दोनों तरफ के सिपाही समझ जाते हैं कि असली बात कुछ है नहीं। बस मीडिया का फैलाया झूठा मामला है। दोनों गले मिलते हैं और आपसी लड़ाई भूल जाते हैं और नाटक यहीं खत्म होता है।


यह तो काफी सीधा और साधारण उपाय है दोनों पक्षों में सुलह करवाने का और यह काम इतना आसान है नहीं। परंतु इस प्रस्तुति ने मेरे समक्ष कई सवाल खड़े कर दिये।


मीडिया का झूठी खबरों को बढ़ा चढ़ा कर बताना, इक्के-दुक्के वैयक्तिक मामलों को सांप्रदायिक रूप दे देना, किन्ही राजनीतिक कारणों से जहां सीधा सादा सा घटनाक्रम हो उसको ऐसा चक्रव्यूह बना के दिखला देना कि अच्छे अच्छों की बुद्धि घूम जाए - शायद इन्ही कारणों से हमें देश में ऐसा माहौल बना दिख रहा है। अन्यथा ऐसा कभी हो सकता है कि मेरे और आपके जैसे मध्यवर्गीय लोगों ने कभी भी ऐसी किसी परिस्थिति का सामना न किया हो? मैंने अपने सभी मित्रों से पूछा पर किसी के साथ न कभी ऐसी घटना हुयी है और न ही उनके किसी जानने वाले के साथ।


ऐसा लगता है आजकल हर किसी में होड़ लगी है देश तथा देशवासियों और खासकर हिंदुओं को असहिष्णु सिद्ध करने की। मैं कभी भी धर्म और अपनी धार्मिक पहचान को लेकर कुछ खास चेतन नहीं थी। ठीक है तीज त्योहार मनाए, व्रत रखे पर इन सबका ज्यादा मतलब इसलिए था कि बचपन से यह सब देखते आए हैं और यह जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। परंतु आजकल के रोज़ रोज़ के प्रहारों को देख-सहकर मेरे मन में भी हिन्दुत्व की एक भावना जागृत होने लग गयी है। वैसे हम सब विदेशी कंपनी के हर उत्पाद का इस्तेमाल करेंगे। परंतु पतंजलि का विरोध ज़रूर करेंगे क्योंकि वह एक हिन्दू बाबा की संस्था है। यह एक अलग ही विषय है तथा इस पर चर्चा फिर कभी।


तो विषय जिस से मैं कुछ भटक गयी यह था कि कहीं न कहीं हिंदुओं को असहिष्णु दिखाने की मीडिया में होड़ लग गयी है। इस देश का तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताना बना इसलिए टूटने लगा है कि अब हिन्दू भी आवाज़ उठाने लगे हैं। जितना देखती पढ़ती हूँ उतना ही मेरे इस विचार की और पुष्टि होती जाती है। हर कोई उठता है और कह देता है कि देश असहिष्णु हो चला है, हिन्दूवादी सरकार है इसलिए हिन्दू असहिष्णु हो चले हैं। 


जब इसी देश में मुहर्रम के कारण दुर्गा विसर्जन को दो दिन तक रोक दिया जाता है, जब इसी देश के किसी कोने में धर्म विशेष कि भावनाओं को चोट नहीं पहुँचने के लिए हिंदुओं को दुर्गा पूजा करने की अनुमति नहीं दी जाती, जब इसी देश में दुर्गा या गणेश विसर्जन के लिए जाते हुये लोगों पर पथराव होता है एक धर्म विशेष के लोगों द्वारा और मीडिया कुछ भी नहीं कहता, जब इस देश के लोगों ने जिन्हें सर माथे पर बैठाया हुआ है वह कलाकार डंके की चोट पर कहते हैं कि देश का माहौल रहने लायक नहीं रह गया, जब इस देश में बहुसंख्यक समाज ही खुद को दीन हीन महसूस करने लगता है तब भी लोगों को लगता है असहिष्णुता बढ़ रही है।


बस इतना ही कहना चाहूंगी ऐसे सभी लोगों से जिन्हें लगता है कि असहिष्णुता बढ़ रही है और देश का माहौल रहने लायक नहीं रह गया - ज़रा आस पास नज़र घूमा कर देख लें कि ऐसा कौन है उनके इर्द गिर्द जो ऐसा कुछ कर रहा है कि देश का माहौल खराब हो रहा है और सबको देखने के बाद एक बार आईना भी देख लें। शायद कुछ जवाब मिल जाए।

1 दिसम्बर 2015

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

जी हां , हमें पहले अपने आस पास देखना चाहिए .... हम सब खुशनसीब हैं जो हमारी जन्म भूमि भारत है .

1 दिसम्बर 2015

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महिला दिवस

9 मार्च 2015
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मेरे जीवन में आई हर महिला से मैंने कुछ न कुछ सीखा है। माँ से सीखी प्यार की परिभाषा, दादी ने पढ़ना सिखलाया, नानी से सीखी सहिष्णुता, भाभी से सीखा कि सीखने की उम्र नहीं होती, सहेलियों से सीखा कि बहनें सिर्फ पैदाइश से नहीं होती, काम वाली से सीखा कि बांटने के लिए अधिक पैसों की ज़रूरत नहीं होती, बस दिल बड़ा

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प्रतिबिंब

10 मार्च 2015
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आँखों में उमड़ते आंसुओं को रोकते हुये वह मन भर के अपनी बेटी को निहार रही थी। दुल्हन बनी हुयी उसकी गुड़िया कितनी प्यारी लग रही थी। तभी पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी “बहू कितनी सुंदर है। बिलकुल अपनी माँ पर गयी है।“ सीमा को वह 30 साल पुराना दिन याद आ गया। शादी के 7 साल बाद भी सभी प्रयास करने के बाद उसकी गोद

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सखी री...

29 जुलाई 2015
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कुछ भूली बिसरी यादें कुछ खट्टे-मीठे पल वो हंसी के ठहाके वो बिन रुके बातें याद आती है सखी री और आँखें हो जाती हैं नम होठों पे होती है मुस्कान और दिल में ये ख़्वाहिश की फिर से हो मिलना तुमसे कभी किसी मोड़ पर फिर से बिताएँ संग खूबसूरत से कुछ पल

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मेला

26 अगस्त 2015
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शहर में मेला लगा हुआ था। पिता ने पुत्र को बताया कि वह छुट्टी के दिन उसे मेला दिखाने ले जाएगा। पुत्र सप्ताह भर अत्यंत उत्साहित रहा तथा उत्सुकता से रविवार का इंतज़ार करता रहा। नियत दिन पिता और पुत्र दोनों मेला देखने गए और पिता उसका हाथ पकड़कर उसे पूरे मेले में घुमाने लगा। वाह, क्या सुंदरता थी! तरह तरह

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विरह

30 अगस्त 2015
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तुम चले जाते होपीछे छोड़ जाते हो तन्हाईमन उदास होता हैफिर भी चेहरे पर नकली मुस्कान चिपकाये देती हूँ तुम्हे विदा और फिर बंद दरवाजे के पीछे बहती हैं गंगा जमुना सुबह आँख खुलती हैऔर तुम नहीं होतेतुम्हारी खुशबू होती हैपर तुम नहीं होतेसुबह का उजालालगता है मटमैला सासुरमई शाम भीचुभती है आँखों मेंक्यों चले जा

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समानता की मांग या इस आड़ में कुछ और?

3 सितम्बर 2015
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यह बंधु कौन हैं मैं जानती नहीं और इन्होने जो लिखा है उसको पढ़ कर जानने की इच्छा रह भी नहीं गयी। बस ट्विटर पर यह दिखा और मन उद्वेलित हो उठा। क्या सच में यह स्त्रियॉं के लिए समानता की बात कर रहे हैं? क्या इन्हे यह लग रहा है कि राखी बांधने से एक लड़की तथा लड़के में असमानता हो गयी? इनको राखी जैसे पवित्र त्

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आस

6 सितम्बर 2015
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अलसायी शाम नेझपकाई बोझल पलकेंऔर घिर आई रातघनी, काली, अँधेरीतेरी यादों की तरहफिर आये तारेऔर छा गयीचमचमाती सीएक चादरऔर इसके साथ हीमन में जगी आसकि तू भी आएइक रोज़औ' बैठें हम साथतारों की चादर तले

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लाली

15 नवम्बर 2015
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रोज़ की तरह सुबह दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोलकर देखा तो मेरी काम वाली उर्मिला थी और उसके पल्लू के पीछे सिमटी हुई खड़ी थी एक नन्ही सी बच्ची।“दीदी ये है लाली। मेरे भाई की लड़की है। भाभी तो रही नहीं पता ही है आपको। भाई सुबह काम पर निकल जाता है। बाकी कोई ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं तो मैं ही इसे अपने स

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सत्ता का दुरुपयोग

14 फरवरी 2016
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आज कार में एफ एम ऑन किया तो सुनाई दिया "पहला साल बेमिसाल, दिल्ली सरकार"। आश्चर्य हुआ क्योंकि मैं रहती हूँ गुजरात में। आज तक मैंने केंद्र सरकार के भी सिर्फ जनहित से संबन्धित प्रचार ही सुने हैं - सफाई, शिक्षा, कन्या शिक्षा आदि से संबन्धित, और सुने हैं मध्य प्रदेश के टूरिस्म से संबन्धित प्रचार। थोड़ा बह

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अजनबी - भाग 1

4 अगस्त 2016
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काफीसमय बाद वह घर आया था बड़ी बहन की शादी में। घर में गहमा गहमी का माहौल था। काफीचहल पहल थी। ढेर सारे रिश्तेदार, गाना बजाना, नाचना लगा हुआ था। कहीं मेहंदी लग रही है, कहीं साड़ी में गोटा।कहीं दर्जी नाप ले रहा है, कोई हलवाई को मिठाइयों के नाम लिखवा रहा है। एक तरफ फूलमाला वाले की गुहार, एक तरफ बैंड-बाजा

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गुलाबी फ्रॉक

6 अगस्त 2016
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मुन्नी ख़ुशी से उछल रही थी। माँ  ने आखिर आज उसकी गुलाबी फ्रॉक जो बना दी थी। बस इस्त्री होते ही पहन कर सारी सहेलियों को दिखा कर आएगी। पुरानी, पैबंद लगी फ्रॉक के लिए सब मज़ाक उड़ाते थे। अब कोई नहीं उड़ाएगा।  फ्रॉक इस्त्री हो गयी और मुन्नी उसको पहनकर इठलाती हुयी खेलने चली गयी। अगले दिन सुबह कचरे वाला गुलाब

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