तुम चले जाते हो
पीछे छोड़ जाते हो तन्हाई
मन उदास होता है
फिर भी
चेहरे पर नकली मुस्कान चिपकाये
देती हूँ तुम्हे विदा
और फिर बंद दरवाजे के पीछे
बहती हैं गंगा जमुना
सुबह आँख खुलती है
और तुम नहीं होते
तुम्हारी खुशबू होती है
पर तुम नहीं होते
सुबह का उजाला
लगता है मटमैला सा
सुरमई शाम भी
चुभती है आँखों में
क्यों चले जाते हो आखिर
मुझे यूँ तनहा, बेबस छोड़कर
दिन तो कट जाता है जैसे तैसे
रात होती है बोझिल
दीवार तकते तकते
पथरा जाती हैं आँखें
ऐसे ही रूखे सूखे
गुज़रते जाते हैं लम्हे
और फिर एक दिन
दरवाज़े की घंटी बजती है
तुम सामने होते हो
लगता है मानो पतझड़ में बहार आ गयी
और सब गिले शिकवे भूलकर
लिपट जाती हूँ तुमसे
पेड़ से लिपटी लता की तरह