कुछ तो जीते है मकसद के लिए,
कुछ बिना मकसद जिए जा रहे है.
कुछ नहीं कर पाए जो इस जिंदगी में,
मज़हब के नाम पर लड़े जा रहे है.
सत्ता की भूख ने छुड़ाया घर अपना,
अब दुसरो के घर भी छुड़वा रहे है.
जिन्हे फ़िक्र ना थी कभी अपने घर की,
दुनियां की चिंता में मरे जा रहे है.
जो ना दे पाए ख़ुशी अपने घर में,
ज़माने को ख़ुशी के नुक्से बतला रहे है.
बात कर सिर्फ अपने मन, मतलब की ,
दुनियाँ का दिल यूँ बहलाये जा रहे है.
हमें भी ख़ुशी है हमारे लिए वो,
अपने परिवार को भी ठुकरा रहे है. (आलिम)