कुछ मीठी,कुछ खट्टी,कुछ कड़वी,कुछ रंगीन,कुछ बचपन की,कुछ जवानी की,कुछ संगीन।ये ही तो हैं वो यादें,जो भूले ना भुलायी जा सकी;कुछ यादें पूरी याद रही,याद रह गयी अधूरी बाकी।कुछ यादें तड़पाती है,कुछ प्रफुल्लित कर जाती है;यादें तो यादें हैं ,जो
कुछ तो जीते है मकसद के लिए, कुछ बिना मकसद जिए जा रहे है. कुछ नहीं कर पाए जो इस जिंदगी में, मज़हब के नाम पर लड़े जा रहे है. सत्ता की भूख ने छुड़ाया घर अपना, अब दुसरो के घर भी छुड़वा रहे है. जिन्हे फ़िक्र ना थी कभी अपने घर की, दुनिया