जिसकी मांग हमने लहू से सजाई,
हर वादे पे सजदा कर जिंदगी बिताई।
उस खुशनशीब दिल ने रिश्ते ताक किये,
खूब निभाई गैरों संग कलेजा काट दिये।
भरोसा टूटा रिश्ते टूटे और टूटा दिल,
अब चाह नहीं कहती तड़प कर आ मिल।
कोई बात नहीं मदहोशियां छूट गईं हैं,
ऐतबार की वो गलियां छूट गईं हैं,
न मिलेंगे शायद अब कभी उम्र भर,
सांसें जियें या दम लें शिशकियां बन गईं हैं।
बाबा