बे मतलब के ख्वाब!
बे-मतलब के ख्वाबनींद की गहराई में नहींखुली आँखों से देखे हैउन्हें पूरा करने की कोशिश मन में खौफ पैदा करती हैयह ही सोचकर कदम आगे नहीं बढ़ाता कहीं दायरे न लाँघ जाऊंदायरे, ईट-दीवारों की नहींसामाजिक परम्पराओं की हैपारिवारिक उसूलो की हैमानो पिंजड़े में कैदएक पंख फड़फड़ाता पंछीखुले आसमान मेंउड़ना चाहता हैपर ड