दीपावली महोत्सव पांच दिनों का होता है, जिसमें प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व और परंपरा है। इस महापर्व पर अपने विचार कविता या कहानी के माध्यम से लिखें।
सुखद यादें दीवाली की*****दिवाली के 3 दिन ही बचे थे सबके घरों में सफेदी,रंगाई-पुताई हो चुकी थी । मैंने भी रंग-रोगन तो नहीं पर साफ-सफाई अपने हिसाब से निपटा ही ली थी । गृहनगर के कस्बे में हम दोनों पति-पत
दीपावली, जिसे हम लोग प्यार से 'दिवाली' कहते हैं, भारतीय उपमहाद्वीप में एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है। यह पर्व आशीर्वाद, समृद्धि, और प्रकाश का संकेत है।दीपावली का आयोजन हर साल कार्तिक मास की
आँधियों की रात, दीपों का त्योहार है,आसमान में खिले तारे, रौंगतें बिखेरे प्यार है।रौशनी की रौशनी, बहुत सी कहानियाँ कहती,राम और सीता का मिलन, खुशी से दिल भर जाती।लक्ष्मी माता की कृपा, घरों में बरसाएं धन
दीपावली का महोत्सव, हर दिल में खुशियों का उत्सव, दीपकों की रौशनी, सबको आपकर्षित करती है खिलखिलाती मुस्कान। रोशनी की किरणें, घरों में खुशियाँ बिखे, सजीव हो जाते हैं सभी दीपक, बजते हैं शहनाई। दु
दीपावली का त्योहार है खुशियों का, आओ सब मिलकर मनाएं यह बड़ा उत्सव। दिए जलाकर घर-घर में रौनक, खुशियों की बौछार हो, दुःखों का अंत। मिठाईयों की खुशबू फैली खुशियों की बातें, खुशियों का त्योहार है ये,
" वायविन्द्रश्च सुन्वत आ यातमुप निष्कृतम् । मक्ष्वित्था धिया नरा । " हे वायुदेव ! हे इन्द्रदेव ! आप दोनों बड़े सामर्थ्यशाली हैं। आप यजमान द्वारा बुद्धिपूर्वक निष्पादित सोम के पास अति श
सूत्रधार- प्रख्यात व्यंगकार श्रद्धेय श्री हरिशंकर परसाई जी की कृति भोलाराम का जीव तो आपने पढ़ा ही होगा । अगर नहीं पढ़ा तो इसी ऑफिस में हुआ नाट्यमंचन तो याद होगा। चलिये कोई बात नहीं हम संक्षिप्त में ब
दीपावली के दिन महालक्ष्मी के साकार रूप का पूजन करने का विधान है। इस पूजन में उनके रूप के विषय में कुछ बातें अवश्य ध्यान देने योग्य हैं। महालक्ष्मी के अकेले का पूजन नहीं किया जाना चाहिए। उनके साथ
दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत आओ सौगंध लें, आओ लें आज व्रत । दीप ऐसे जलें, न अन्धेरा रहे शाम हो न कभी, बस सवेरा रहे, रौशनी की कड़ी से कड़ी सब जुड़ें रौशनी प्यार की बिखरी हो हर तरफ । दीप ज
" वायविन्द्रश्च चेतथः सुतानां वाजिनीवसू । तावा यातमुप द्रवत् । " हे वायुदेव ! हे इन्द्रदेव ! आप दोनों अन्नादि पदार्थों और धन से परिपूर्ण हैं एवं अभिषुत सोमरस की विशेषता को जानते हैं। अत: आप दो
" इन्द्रवायू इमे सुता उप प्रयोभिरा गतम् । इन्दवो वामुशन्ति हि। " हे इन्द्रदेव ! हे वायुदेव ! यह सोमरस आपके लिये अभिषुत किया (निचोड़ा) गया है। आप अन्नादि पदार्थों के साथ यहाँ पधारें, क्यो
" वायो तव प्रपृञ्चती धेना जिगाति दाशुषे । उरूची सोमपीतये । " हे वायुदेव ! आपकी प्रभावोत्पादक वाणी, सोमयाग करने वाले सभी यजमानों की प्रशंसा करती हुई एवं सोमरस का विशेष गुणगान करती हुई, सो
वाय उक्थेभिर्जरन्ते त्वामच्छा जरितारः । सुतसोमा अहर्विदः । हे वायुदेव ! सोमरस तैयार करके रखने वाले, उसके गुणों को जानने वाले स्तोतागण स्तोत्रों से आपकी उत्तम प्रकार से स्तुति करते हैं।
वायवा याहि दर्शतेमे सोमा अरंकृताः । तेषां पाहि श्रुधी हवम् । हे प्रियदर्शी वायुदेव ! हमारी प्रार्थना को सुनकर आप यज्ञस्थल पर आयें। आपके निमित्त सोमरस प्रस्तुत है, इसका पान करें। हे वायुद